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Sahitya AajTak 2022: जिंदगी स्त्री के चारों तरफ घूमती है, उसकी इज्जत करो, वह आपकी बाईं पसली है: नासिरा शर्मा

दो साल बाद दिल्ली में शब्द-सुरों का महाकुंभ साहित्य आजतक 2022 शुरू हो गया है. 18 नवंबर से 20 नवंबर तक दिल्ली में ये साहित्य का मेला चलेगा. इस आयोजन में पहले दिन मशहूर लेखिका नासिरा शर्मा, जाने-माने लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह और मशहूर उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल ने साहित्य पर चर्चा की.

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साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद लेखिका नासिरा शर्मा, भगवानदास मोरवाल व अब्दुल बिस्मिल्लाह.
साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद लेखिका नासिरा शर्मा, भगवानदास मोरवाल व अब्दुल बिस्मिल्लाह.

Sahitya Aaj Tak 2022: दिल्ली में आज से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक' शुरू हो गया है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई जाने-माने मेहमान शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2022' के मंच से पहले दिन तीसरे स्टेज में 'कतरा-कतरा किस्सा' सेशन में जाने ऑथर शामिल हुए. इनमें साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह और लेखक व उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल ने साहित्य पर चर्चा की.

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इस दौरान लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा कि दुनिया के शोर शराबे में लेखक की आवाज दब जाती है या दबा दी जाती है. उन्होंने कहा कि जब मैंने लिखना शुरू किया तो बच्चों की राइटिंग से शुरुआत की थी. पहली कहानी तीसरी क्लास में लिखी थी. इसी तरह से लिखने का सिलसिला शुरू हुआ. अपनी किताब 'अदब में बाईं पसली' पर चर्चा करते हुए कहा कि स्त्री विमर्श को लेकर इस पर लिखा था.

उन्होंने कहा कि जिंदगी स्त्री के चारों तरफ घूमती है. कायनात में सबसे खूबसूरत सांस लेने वाली स्त्री होती है. स्त्री की इतनी इज्जत करो, क्योंकि वह आपकी बाईं पसली है. बाईं पसली थोड़ी टेढ़ी होती है. उसके साथ बेहतर बर्ताव करें.

नासिरा शर्मा ने कहा कि सियासत से उपजी तकलीफों को लेखन में उठाया है. इस दौरान ईरान और इराक से जुड़े उपन्यास 'अजनबी जजीरा' के बारे में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि मेरी सोच में बाहर सोच क्यों आए, ये नहीं बता सकती.

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बनारस में झेलना पड़ा था भेदभावः अब्दुल बिस्मिल्लाह

वहीं इस दौरान मशहूर लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि मेरा उपन्यास 'झीनी झीनी बीनी चदरिया' कबीर से प्रेरित है. उन्होंने कहा कि पहला उपन्यास मैंने कल्पना पर आधारित लिखा था. इसके बाद अहसास हुआ कि सच्चाई से जुड़कर ही लेखन करना है.

इस दौरान उन्होंने कहा कि एमए करने के बाद जब नौकरी के लिए बनारस गया तो ये दुर्भाग्य रहा कि मुझे मुसलमानों के मोहल्ले में ही रहने के लिए मकान मिला. वहां रहकर तमाम मुश्किलों के बीच लेखन को जारी रखा और सच्चाई को कलम में उतारता गया. उन्होंने कहा कि मेरा बचपन मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाके में गुजरा है.

उन्होंने कहा कि आठवीं तक की पढ़ाई वहीं की. जब 12वीं क्लास में लिखना शुरू कर दिया था. बीए करने के दौरान कविता कहानियां छपने लगी थीं. अपने जीवन के अनुभवों को लिखना शुरू कर दिया और इसका नाम 'रेवा तट' यानी नर्मदा के किनारे की गाथा रखा, लेकिन अपना लिखा पसंद नहीं आया, कई बार लिखने के बाद उसे प्रकाशन योग्य माना. उन्होंने कहा कि पुरुष से अधिक स्त्री दुख झेलती है. इसे अपने लेखन में उतारा है. 

उन्होंने बताया कि शुरू से ही पढ़ने की ललक थी. फुटपाथ से किताबें खरीदकर लाकर पढ़ता था. बांग्ला के बड़े कथाकार शरतचंद्र के उपन्यास परिणीता पढ़कर लगा कि मैं भी लिख सकता हूं. इसके बाद लिखना शुरू कर दिया.

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साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद लेखिका नासिरा शर्मा, भगवानदास मोरवाल व अब्दुल बिस्मिल्लाह.

समाज की समस्याओं को लेखन में उतारा, उपन्यास लिखना स्वेटर बुनने जैसा हैः भगवानदास मोरवाल

इसी दौरान लेखक भगवानदास मोरवाल ने कहा कि जब मैंने उपन्यास पढ़ना शुरू किया तो लगा कि जो समाज और परिवेश इन रचनाओं में है, वही समाज हमारे बीच है. इसके बाद ही लेखन के प्रति जुड़ाव हो गया.

उन्होंने कहा कि उपन्यास छोटे-छोटे किस्सों का एक पुंज होता है. उन्होंने कहा कि अगर आपको उस मेवात को देखना है तो उपन्यास 'काला पहाड़' पढ़ लीजिए. तमाम सामाजिक समस्याओं को अपने लेखन में उतारने की कोशिश करते हैं. उन्होंने कहा कि एकाध उपन्यास हर लेखक के जीवन में होता है. किसी भी लेखक के लिए असली चुनौती अपने स्वभाव से बाहर निकलने में होती है.

लेखक भगवानदास मोरवाल ने उपन्यास पर विस्तार से चर्चा की. छोटे-छोटे किस्सों को लेखक अपने किस्सों में पिरोने को कोशिश करता है. उपन्यास लिखना स्वेटर बुनने की तरह होता है. इस दौरान कार्यक्रम के अंत में कहानी संग्रह का लोकार्पण भी किया गया.

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