scorecardresearch
 

Sahitya AajTak 2022: विकास की गति में कराह रही है प्रकृति..., सोचने पर मजबूर कर देंगी ये कविताएं

Sahitya AajTak 2022: दिल्ली में 18 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2022' चल रहा है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2022' के मंच से तीसने दिन कई हस्तियों ने भाग लिया.

Advertisement
X
साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद जानी-मानी लेखिकाएं.
साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद जानी-मानी लेखिकाएं.

Sahitya AajTak 2022: साहित्य आजतक के मंच पर तीसरे दिन 'सभ्यता का संघर्ष' सेशन में देश की जानी मानी लेखिकाओं ने साहित्य, लेखन और मौजूदा परिदृश्य पर चर्चा की. इनमें 'ईश्वर और बाजार' के लेखिका और कवयित्री जसिंता केरकेट्टा, 'मछलियां गाएंगी एक दिन पांडुमगीत' की लेखिका और कवयित्री पूनम वासम के साथ ही 'छुप्पी वाले दिन' की लेखिका मालिनी गौतम शामिल रहीं. सभी ने सभ्यता को लेकर तमाम बातें कीं.

Advertisement

आदिवासी समाज अपनी सभ्यता, संस्कृति, मर्यादा, भाषा, जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए हमेशा से संघर्षरत रहा है. आदिवासी इन्हें पूर्वजों की धरोहर समझते हैं. इसी विषय पर इस सेशन में गंभीर चर्चा की गई.

जसिंता केरकेट्टा की कई किताबों का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. पूनम वासम ने जड़, जमीन और जंगल किताब लिखी हैै, जिसमें बस्तर के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन पर कई बातें कही गई हैं. मालिनी गौतम ने भी मानव जीवन से जुड़ी समस्याओं को अपनी कविताओं में उतारा है.

इस दौरान जसिंता केरकेट्टा ने कार्यक्रम की शुरुआत एक कविता से की. उन्होंने कहा कि -

साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद जानी-मानी लेखिकाएं.

जहां कुछ नहीं पहुंचता,
पहाड़ पर लोग पहाड़ का पानी पीते हैं,
सरकार का पानी वहां तक नहीं पहुंचता,
बिजली नहीं पहुंचती, इंटरनेट नहीं पहुंचता,
जहां कुछ नहीं पहुंचता,

वहां नफरत कैसे पहुंच जाती है ...

Advertisement

उन्होंने कहा कि मैं झारखंड से आती हूं, वहां एशिया का बड़ा जंगल है. देश में जितने भी जंगल और पहाड़ हैं, मैंने पहाड़ों और जमीनों को बचाने के लिए संघर्ष करने वाले लोगों और उनके जीवन पर कविताएं लिखी हैं. भारत में जल जंगल जमीन से जुड़े लोग ही सभ्यता का संघर्ष कर रहे हैं. जब ये सारी चीजें उजड़ती हैं तो आदिवासियों का अस्तित्व उजड़ता है. प्रकृति और पृथ्वी विकास की गति से कराह रही हैं.

उन्होंने पढ़ा कि...
पहाड़ों के लिए थोड़े से पैसे के लिए जो अपना ईमान बेचते हैं

वे क्या समझेंगे कि लोग पहाड़ो के लिए क्यों अपनी जान देते हैं.

इसी के साथ उन्होंने कविता सुनाई...

लोग ईश्वर को राजा मानते रहे
और राजा में ईश्वर को ढूंढ़ते रहे

राजा ने खुद को एक दिन
ईश्वर का कारिंदा घोषित कर दिया
और प्रजा की सारी संपत्ति को
ईश्वर के लिए
भव्य प्रार्थना-स्थल बनाने में लगा दिया
उसके नाम पर बाजार सजा दिया

भूखी असुरक्षित बेरोजगार पीढ़ियां
अपने पुरखों की संपत्ति
और समृद्धि वापस मांगते हुए
उन भव्य प्रार्थना-स्थलों के दरवाजों पर
अब सिर झुकाए बैठी हैं...

इस दौरान कवयित्री पूनम वासम ने कहा कि...

साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद जानी-मानी लेखिकाएं.

एक ऐसी जगह है जहां गुफाएं हैं
जहां गुफाओं में मझलियां हैं
जहां नदियां हैं, जंगल हैं, पहाड़ हैं...
कविता सुनाकर दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया.

Advertisement

इस दौरान उन्होंने कुटुमसर की मछलियों पर कविता सुनाई

झपटकर धर नहीं लेतीं 
कुटुमसर की गुफा में दुबक कर बैठीं अंधी मछलियां 
अपनी जीभ पर
समुद्र के खारे पानी का स्वाद
इनकी गलफड़ों पर अब भी चिपका है वही
हजारों वर्ष पूर्व का इतिहास... कविता सुनाई.

वहीं कवयित्री मालिनी गौतम ने कहा कि जहां बहुत ज्यादा शांति है, वहां समझ लेना चाहिए कि बहुत ज्यादा आक्रोश है, इन्हीं बातों को लेकर चुप्पी वाले दिन कविता संग्रह लिखा है. उन्होंने इस दौरान कविता सुनाई.

जब सब कर रहे थे जमीन तैयार
मक्की और धान के लिए
ताक रहे थे धूप और बादलों के लिए
जैसे प्रेम अंधेरों के लिए उनका जगनू है
लली गुजराती में उसे प्रेम से आदू पुकारती है
लली के सपने आदू खिलता है ब्रह्मकमल की तरह
सपनों का कोई मोलभाव नहीं होता... 
 सुनाई.

मालिनी गौतम ने कहा कि विकास ये सिखाना जरूरी नहीं समझता कि आगे बढ़ो लेकिन अपनी परंपराओं को मत छोड़ो. आदिवासी अगर चाहे तो जंगल काटकर घर बना ले, लेकिन वह प्रकृति को पूजता है. आदिवासियों के लिए अधिकार तो बनाए गए हैं, लेकिन उन्हें इसके बावजूद इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह तंग आ जाता है.

उन्होंने कहा कि आदिवासियों के बच्चे अब खुद को आदिवासी कहलाना पसंद नहीं करते. आदिवासियों की वेदना को कोई समझना नहीं चाहता. सामाजिक रूप से जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन एक प्रयास ये भी होना चाहिए कि परंपराओं को छोड़कर विकास की राह पर न जाएं.

Advertisement

इस दौरान मालिनी गौतम ने इतना सा मनुष्य होना कविता भी सुनाई...

साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद जानी-मानी लेखिकाएं.

शहर की बड़ी सब्जी मंडी में
एक किनारे टाट का बोरा बिछाकर
अपने खेत की दो-चार ताजी सब्जियां
लिए बैठी रमैया
अक्सर छुट्टे पैसों के हिसाब में
करती है गड़बड़

न…न… यह समझ लेने की भूल मत करना
कि रमैया को नहीं आता
इतना भर गणित
हां बेशक दो-पांच रुपए बचाकर
महल बांधने का गणित
नहीं सीखा उसने...

कार्यक्रम में चर्चा के दौरान कहा गया कि खेती की जमीन पर मल्टीफ्लेक्स खोले जा रहे हैं. रासायनिक खादों से अधिक और जल्दी फसल पैदा करने के लालच में भूमि को जहरीला बना दिया जा रहा है.

नदियों को सुखाकर आवासीय कॉलोनियां बना दी जा रही हैं. जंगलों को काटा जा रहा है. इन्हीं सारी चीजों ने पृथ्वी को सबसे ज्यादा दुखी और आहत किया है. पृथ्वी के प्राकृतिक वनों का घोर विनाश हुआ, इसी के चलते मौसम में बदलाव आया. इन पर सोचने की जरूरत है.

इस दौरान कार्यक्रम में मॉडरेटर सईद अंसारी ने विकास की गति के बीच कराहती प्रकृति और पृथ्वी को लेकर गंभीर सवाल उठाते हुए लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया.

Advertisement
Advertisement