Sahitya AajTak Lucknow 2024: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आज 'साहित्य आजतक-लखनऊ' के दूसरे संस्करण का दूसरा दिन है. यह आयोजन शनिवार को शुरू हुआ था. ये आयोजन अंबेडकर मेमोरियल पार्क गोमती नगर में हो रहा है. इस दो दिवसीय कार्यक्रम में जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के महामंच पर दूसरे दिन 'अनंत कथा श्रीराम की...' सेशन आयोजित किया गया. इस सत्र में जाने-माने लेखक अमीश त्रिपाठी बतौर अतिथि शामिल हुए. उन्होंने इस दौरान श्रीराम, राममंदिर और भारतीय संस्कृति के गौरवपूर्ण अहसास की वजह बताई, साथ ही कहा कि आज भारत की स्थिति बदल चुकी है. दुनिया में सिर्फ यही देश ऐसा है कि जिसकी संस्कृति जिंदा है.
शिव रचना त्रयी और रामचंद्र सिरीज लिखकर लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले लेखक अमीश त्रिपाठी रविवार को लखनऊ में साहित्य आजतक के मंच पर मौजूद थे. उन्होंने कहा कि, 'मैं मूलरूप से उत्तर प्रदेश, काशी का हूं. मेरा जन्म मुंबई में भले ही हुआ पर यूपी और वाराणसी से एक लगाव-जुड़ाव हमेशा बना रहा. तो जो आज मैं बदलाव देख पा रहा हूं तो पहला तो बदलाव यह है कि बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी बदलाव हुआ है. सड़कें, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन ये सबकुछ काफी बदल चुका है. इस जमीन पर ये विकास का बदलाव है.
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उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि, 'वैसे भी इतिहास गवाह है कि, जब भी गंगा के तटवर्ती इलाकों की जमीन विकसित या धनी रही है, हमारे देश ने दुनिया पर राज किया है, लेकिन जब ये जमीन, गंगा किनारे वाली थोड़ी भी निर्धन हुई या इसके वैभव में गिरावट आई तो देश का भी भाग्य बदला. ऐसा इतिहास के कई उदाहरणों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं. आर्थिक सुधार बेहद जरूरी हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि हम जीते क्यों हैं? उन्होंने उत्तर में कहा कि अपनी संस्कृत के लिए, अपनी सभ्यता के लिए.
कांस्य युग से भी देखा जाए तो सिर्फ हमारी ही संस्कृति जिंदा है. बल्कि दुनिया की हर संस्कृति एक समय के बाद मिटती चली गई. हमारी संस्कृति सिर्फ इसलिए जिंदा रही क्योंकि हमारे पूर्वजों ने कभी हार नहीं मानी. पिछले 2000 वर्षों में एक बहाव रहा है. जो मूर्ति पूजक संस्कृतियां थीं, वो एक-एक करके मार दी गईं. किसी भी मूर्ति पूजक सभ्यता का मंदिर तोड़ दिया गया तो वह उसे दोबारा नहीं बना पाए. भारत ही एक देश है, जहां मूर्ति पूजकों ने फिर से अपना मंदिर बनाया और ऐसा सिर्फ रामजन्मभूमि में हो रहा है. युद्ध में हार-जीत होती रहती है, लेकिन सभ्यता मरती कब है, जब लोग हार मान लें और सभ्यता को छोड़ दें.
भारत की आजादी के लिए तीन प्रमुख कैलेंडर पड़ाव हैं और इन तीन वर्षों का जिक्र करना बेहद जरूरी है. साल 1947, जब हमने राजनीतिक आजादी पाई. इसके बाद आता है साल 1991, जब हमें आर्थिक आजादी मिली और फिर आता है साल 2024, जब हमने सांस्कृतिक आजादी पाई. अगर हम सभी भारतीय कंधा लगाएं तो हम फिर से उसी दौर में लौट सकते हैं, जो दुनियाभर में भारत की अग्रणी स्थिति थी. अगले 20-25 साल में हम फिर से उसी अग्रणी स्थिति में पहुंच सकते हैं.
अगर 500 साल बाद इस युग को देखेंगे तो या तो हम इसे एक विवाद के तौर पर देख सकते हैं. या फिर, इसे उस एक कदम के तौर पर देख सकते हैं, जहां हम श्रीराम के बनाए एक युग के तौर पर उनकी अच्छाइयों को अपनाने की शुरुआत के तौर पर भी देख सकते हैं. उन्होंने ASI चीफ रहे केके मोहम्मद का जिक्र करते हुए कहा कि आप किसी को विरोधी नहीं कह सकते हैं. उन्होंने कहा था बाबर बाहर से आया, मीक बाकी बाहर से आया, मैं तो भारतीय मुसलमान हूं, मुझे उनसे क्या लेनादेना है.
अमीश त्रिपाठी ने कहा कि, प्रभु श्रीराम से कानून मानना सीखना चाहिए. लाल बत्ती पर रुकना चाहिए. लाइन नहीं तोड़नी चाहिए. प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है. हमारी संस्कृति में देवी-देवता रोल मॉडल होते हैं. श्रीराम की मर्यादा के लाभ हैं और कठिनता भी हैं. भारत में वोट उसी लीडर को जाता है जिसे देखकर लोगों को लगता है कि वह परिवार से ऊपर देश को रखेगा. यही सिर्फ श्रीराम में नहीं दिखता, बल्कि बुद्ध में भी दिखता है, और आप देखेंगे कि जो भी पॉवरफुल लीडर हैं, वो सिंगल हैं. हम अपने नेताओं में श्रीराम को देखते हैं. आचार्य चाणक्य ने कहा था, सभी सुख का मूल धन है. अगर आपके पास धन है, शक्ति है, तो दुनिया अलग नजर से देखती है. आज भारत उठकर दुनिया के सामने खड़ा है. झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए.