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साहित्य आजतक: कुमार विश्वास ने अपनी कविताओं से बांधा समां

कवि और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने 'साहित्य आजतक' के मंच में पहुंचते ही अपने परिचित अंदाज में सभी का अभिवादन किया.

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साहित्य आजतक 2016
साहित्य आजतक 2016

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कवि और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास ने 'साहित्य आजतक' के मंच में पहुंचते ही अपने परिचित अंदाज में सभी का अभिवादन किया. कुमार विश्वास ने कहा कि आपकी जुबान आपके संस्कार बताती है और इसका सही होना बहुत जरूरी है. कुमार ने कहा कि फिल्मों की शब्दावली बदल रही है और अब अच्छे गाने लिखे जाने लगे हैं.

कुमार विश्वास ने अपने चिर परिचित अंदाज में कविताओं को पढना शुरू किया तो माहौल में रंग भरने लगे. इसी के साथ आजतक के 'साहित्य आजतक' कार्यक्रम में विश्वास ने अपनी कुछ नई कविताएं भी पेश की.

सत्ता के खेल पर कुछ शब्द-
सियासत में तेरा खोया या पाया हो नहीं सकता,
तेरी शर्तों पे गायाब या नुया हो नहीं सकता,
भले साजिश में गहरे दफन मुझको कर भी दो तो सजृन का बीज हूं मिट्टी में ज़ाया हो नहीं सकता.

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पहली नजर के प्यार के लिए-
उठा पलकों को जिसने दिन उगाया था फलक पर,
उसी की जुल्फ का रातों पर साया हो गया,
नजर का एक टुकड़ा छत पर फेंका था किसी ने जिसे पढ़ने में पूरा चांद ज़ाया हो गया है.

मान-सम्मान पर दो लाइनें-
अपमानों की सरस कहानी जगभर को है याद जबानी,
और विजय के उद्घोषों पर दुनिया की यूं आनाकानी,
खुद से अलग लड़े युद्धों में जीत मिली पर जीत नहीं है, ये सब सच है गीत नहीं है.

प्यार के लिए कुछ पक्तियां-
1. कि फिर मेरी याद आ रही होगी, फिर वो दीपक बुझा रही होगी.
अपने बेटे का चूमकर माथा, फिर उसी ने उसे छुआ होगा, फिर उसी से निभा रही होगी.
जिस्म चादर बिछ गया होगा, रूह सिलवट हटा रही होगी.

2. खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना,
इश्क तो करना मगर देवदास मत होना.

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