साहित्य आजतक 2019 के मंच पर प्रख्यात अभिनेता, थिएटर आर्टिस्ट पंकज कपूर के पहले उपन्यास 'दोपहरी' का शुक्रवार को विमोचन किया गया. इस अवसर पर इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई से बात करते हुए पंकज कपूर ने अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि करियर के मामले में उनके बेटे शाहिद कपूर उनसे ज्यादा समझदार हैं.
उन्होंने कहा, 'करियर के मामले में शाहिद मुझसे ज्यादा समझदार है. वह पहले स्टार बना और उसके बाद अपने पसंद के रोल लेने शुरू किए. मैं समझता हूं कि यह उसका स्मार्ट कदम था. हम तो थिएटर में प्रशिक्षित थे, इसलिए हम हमेशा कैरेक्टर और अच्छे स्क्रिप्ट की तलाश करते थे. हमारी अपनी यात्रा थी, इस पीढ़ी की अपनी यात्रा है. वह अपनी पीढ़ी के बेस्ट अभिनेताओं में से है और उसने हैदर, कबीर सिंह, पद्मावत जैसी फिल्मों से यह साबित भी किया है.'
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क्या खास है दोपहरी में
पंकज ने बताया, 'यह एक ऐसा नॉवेल है जो कि एक फिल्म की तरह है. यह एक अकेली औरत की कहानी है और फिल्म यात्रा के द्वारा उसकी खुद की तलाश है. यह नॉवेल आपको विजुअल की तरह लगेगा. यह अम्मा बी की कहानी है, जो लखनऊ में रहती हैं. मैंने यह पूरी कहानी 4 दिन में लिखी है.'
कहां से मिली लेखन की प्रेरणा
उन्होंने बताया, इसका काफी श्रेय मेरे पिता को जाता है. वे हमें राजा आर्थर और विलियम शेक्सपियर की कहानी सुनाया करते थे. वह हमें इन कहानियों को पंजाबी में अनुवाद करके सुनाया करते थे, क्योंकि मैं तब अंग्रेजी नहीं समझता था.'
अपने थिएटर के दिनों के बारे में उन्होंने बताया, 'मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में 10 साल (1973 to 1983) अपने को एजुकेट करने में लगाया. वे जबरदस्त साल थे. मैंने वहां काफी कुछ सीखा. वे मेरे जीवन के सबसे शिक्षाप्रद जीवन थे. तब लोग ग्लैमरस दुनिया में जाने से ज्यादा रुचि एक्टिंग में दिखाते थे. तब एनएसडी में इब्राहीम अल्काजी थे जो आर्ट के फील्ड में बेस्ट टीचर्स में से थे.' उन्होंने कहा, 'सिनेमा भी एक बेहतरीन माध्यम है. आप कौन से माध्यम चुनते हैं यह आपका अपना विकल्प है.'
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जिंदगी से बहुत संतुष्ट हैं
पंकज कपूर ने कहा, 'एक्टिंग मेरा पहला प्यार है. जब आपको यह लगता है कि आप जो कुछ चाहते हैं, वह आपके करीब है तो इससे आपको जबरदस्त संतुष्टि मिलती है.' उन्होंने कहा, 'यदि आप अपने कैरेक्टर पर अच्छे से काम करते हैं और डायरेक्टर इसे अच्छे से समझता है, तो सिनेमा से आपको संतुष्टि मिलेगी. हम ऐसे एक्टर हैं जो वहां बने रहने के लिए संघर्ष करते हैं और उस क्षण में सच की तलाश करने की कोशिश करते हैं.'
क्या फिल्में समाज का आईना होती हैं
उन्होंने कहा कि फिल्में हमारी संस्कृति का बड़ा हिस्सा हैं और यह हमें प्रभावित करती हैं. लोगों को इनके चुनाव में अपना दिमाग लगाना चाहिए. हर तरह की जानकरी हमारे सामने आ रही है. हमें सोसाइटी को रिस्पांसिबल बनाना होगा कि किस तरह की च्वाइस हासिल करें. आप इंटरनेट पर कंट्रोल या सेंसर नहीं कर सकते. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से कोर्स करने के बाद पंकज ने चार साल तक थिएटर किया और उसके बाद उन्हें पहली फिल्म 'गांधी' मिली जिसके डायरेक्टर रिचर्ड एटेनबरो थे. इसके बाद उन्होंने मंडी, जाने भी दो यारों, खामोश जैसी कई प्रख्यात फिल्में कीं.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की वाणी वंदना के साथ शुरू हुआ साहित्य आजतक 2019
विविध प्रतिभा के धनी पंकज कपूर ने इसके बाद टीवी की दुनिया में उतरे और करमचंद, मोहनदास एलएलबी, जबान संभाल के, ऑफिस-ऑफिस जैसे सीरियल से लोगों के दिल में बस गए. फिल्मों में सात साल काम करने के बाद उन्हें पहला नेशनल अवॉर्ड मिला. अपने तीन दशक के करियर ने पंकज ने अपनी अभिनय से एक अलग तरह की छाप छोड़ी है.
गौरतलब है कि साहित्य का सबसे बड़ा महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' आज से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में शुरू हो चुका है. साहित्य, कला, संगीत, संस्कृति का यह जलसा आज से 3 नवंबर तक चलेगा. तीन दिन तक चलने वाले साहित्य के महाकुंभ साहित्य आजतक में कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और सिनेमा जगत की मशहूर हस्तियां शामिल हो रही हैं.