Sahitya Aaj Tak 2022: साहित्य आजतक के मंच कथावाचक मोरारी बापू भी शामिल हुए. उन्होंने 'राम ही राम' प्रोग्राम में राम के बारे में बताया और आधुनिक से लेकर त्रेता युग तक पर चर्चा की. मोरारी बापू ने कहा कि धर्म और विज्ञान को एक साथ चलना चाहिए. विज्ञान के बिना संसार में कभी समता नहीं आ सकती है. उन्होंने ये भी कहा कि राम ईश्वर के रूप में सबके हृदय में हैं.
मोरारी बापू से पूछा गया कि ऐसा कहा जाता है कि विज्ञान और भक्ति साथ-साथ नहीं चलते हैं. हमारे ही देश में कहते हैं कि आप भगवान राम को वैज्ञानिक तौर पर साबित नहीं कर सकते हैं. भगवान राम काल्पनिक हैं. सुप्रीम कोर्ट को इतना समय लगा राम मंदिर के बारे में अंतिम फैसला सुनाने में. क्या भक्ति और विज्ञान साथ-साथ नहीं चल सकते? इस सवाल पर मोरारी बापू ने कहा- चलना ही चाहिए. लेकिन मैं ये कहूं कि भक्ति भाव के बिना तो राम हैं ही नहीं. मानस में लिखा है कि हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट होए भगवाना. जहां भक्ति होगी, प्रेम होगा. वहां राम प्रगट हो जाते हैं- ऐसा स्पष्ट सनातन उल्लेख है. लेकिन यहां मुझे ये कहना है कि धर्म और विज्ञान एक साथ चलना चाहिए.
संवेदना धर्म का स्वरूप है
उन्होंने आगे कहा- महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में लिखी है, पूरी दुनिया जानती है. वाल्मीकि वैज्ञानिक हैं. ये केवल साहित्यिक आदमी नहीं है. ये केवल योग वाला आदमी नहीं है. प्रयोग वाला आदमी है. उनके पास थ्योरी भी है और प्रैक्टिकल भी है. वाल्मीकि में दोनों चीजें हैं. जिन हनुमानजी ने अपना सीना फाड़कर राम दर्शन करवाए, वो हनुमान को भी वैज्ञानिक कहा गया है. वाल्मीकि जी और हनुमान जी को आप जोड़ें तो दोनों परम वैज्ञानी हैं. लेकिन, उसके विज्ञान में संवेदना थी और संवेदना धर्म का स्वरूप है. महात्मा विश्व बंदे बापू ने कहा था कि संवेदन शून्य विज्ञान सामाजिक पाप है. विज्ञान के बिना संसार में समता कभी नहीं आ सकती है. सूरज विषमता नहीं ला सकता है. समुद्र कभी विषमता नहीं ला सकता है. कोई एक वैज्ञानिक खोज करे तो खोज करने वाले परिवार को पूरे विश्व का आशीर्वाद मिलता है.
धर्म और विज्ञान को एक साथ चलना चाहिए
उन्होंने कहा- राम सम हैं, राम धर्म हैं और धर्म, विज्ञान एक साथ चलना चाहिए. ये दोनों एक ट्रैक हैं और उस पर हम लोगों को चलना चाहिए. हनुमानजी वैज्ञानिक हैं, सीता जी की खोज उनको क्यों सौंपी गई? वैज्ञानिक ही खोज सकता है. जगत का कल्याण करने वाली वो परम शक्ति कहां हैं, उसकी खोज वैज्ञानिक के अलावा कोई नहीं कर सकता है. ज्ञानी तो केवल पढ़ेगा, ज्ञान मोक्ष देता है. लेकिन समाज के लिए जो कल्याण, समाज के लिए उत्कर्ष, समाज के लिए दिव्य दृष्टि, इसके लिए कोई वैज्ञानिक चाहिए और हनुमानजी को ही ये काम सौंपा गया. वाल्मीकि के आश्रम में ही क्यों जानकी को छोड़ने गए? ऋषि मुनि तो कई थे. लेकिन ऊर्जा साथ में जाएगी तो विस्फोट करेगी. इसलिए एक वैज्ञानिक के यहां ऊर्जा को सुरक्षित रखा गया और ऊर्जा का परिणाम ये आया कि एक परमशक्ति, जगदंबा, जानकी ने दो पुत्र दिए. ये विश्व को परम ऊर्जा का परिणाम मिला. धर्म और विज्ञान को एकसाथ ही चलना चाहिए. ये जरूरी है.
मोरारी बापू ने इन सवालों के भी दिए जवाब...
सवाल- राम के अलग-अलग छवि देखने को मिल रही है. असली राम कहां हैं?
जवाब- असली राम परम सत्य में हैं. असली प्रेम में हैं. असली राम करुणा में हैं. बाकी तो एक पात्र में जल डालो तो अपने-अपने पात्र के आकार का जल बन जाता है. यद्यपि जल का कोई आकार नहीं है. लेकिन कोई एक प्याले में ले या लोटे में ले, या घड़े में ले. सबका राम अपनी पात्रता के अनुसार होता है. लेकिन असली राम, जिसका आदि अंत तक कोई नहीं पा सका, वो परमतत्व राम- मेरी दृष्टि में असली राम वो है, जहां प्रेम है, जहां सत्य है, जहां करुणा है, वहां असली राम हैं.
सवाल- क्या अभी भी लोगों के हृदय में राम वैसे ही हैं, जैसे पहले थे. या आपको लगता है कि हृदय को छोड़कर हर जगह राम हैं?
जवाब- राम ईश्वर के रूप में सबके हृदय में हैं. कबीर ने कहा या मीरा ने- राम सब घट मेरा साईयां... राम ईश्वर के रूप में सबके हृदय में हैं. सदा सर्वदा सबके हृदय में रहेंगे. लेकिन हमारे स्वार्थ, हमारे हेतु, हमारी मानसिकताएं... हम राम को जो हमारा पूरा देश, पृथ्वी, पूरा विश्व राम को साध्य समझता था, आज कभी कभी हम राम को साधन बना बैठे. इसलिए हम राम को सही रूप में नहीं समझ पा रहे हैं. अब सीना खोलने की जरूरत नहीं है. हनुमानजी ने राम दरबार में जब माला दी तो उसने मोती तोड़ डाले कि इसमें राम हैं. नहीं हैं तो फेंक दिया. ये त्रेता युग की बातें अद्भुत हैं. आज इतनी शिक्षा बढ़ी है, यंगस्टर्स अध्यात्म में रुचि ले रहे हैं- आज सीना फाड़ने की जरूरत नहीं है, सिर्फ आंखें खोलने की जरूरत है.
सवाल- आजादी के बाद से अब तक आपने देश के अलग-अलग लोगों को देखा. आज वो युग है, जब हम आजादी को भी खतरे में बताते हैं. क्या आप वाकई मानते हैं कि हमारा देश और समाज खतरे में है?
जवाब- अलग-अलग दृष्टकोण से देखें तो लगता है कि खतरा खतरा है. मैं इति सिद्ध नहीं कर पाऊंगा. लेकिन, मेरी अंतरश्रद्धा ऐसा कहती है कि हमारे राष्ट्र का बहुत मंगल होने वाला है और ये मंगल पूरे विश्व का मार्गदर्शन करेगा. आप कहेंगे कि कब और प्रमाण क्या है? तो मैं कहूंगा कि मेरे पास प्रमाण है. साधु के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण है. मुझे लगता है और मैं चाहूंगा कि मैं ये देख सकूं. राम राज्य का मतलब जगत में शुभ की स्थापना करना. वो रामराज्य है. शुभ की छाया में लाभ होना ठीक है. लेकिन लाभ की छाया में शुभ ठीक नहीं है. हरेक लाभ, शुभ नहीं होता है. लेकिन, हरेक शुभ हमेशा लाभ होता है.
सवाल- आपने नेहरू युग भी देखा और मोदी युग भी देखा. क्या अंतर आप पाते हैं? लोग अक्सर आजकल तुलना करने में लगे हैं.
जवाब- मैं इस तुलना में नहीं जाऊंगा. क्योंकि वो मेरा काम नहीं है. मेरे मानस ने हमको सिखाया है कि तटस्थ व्यक्ति कोई निवेदन करे तो वो भी एक तट से दूसरे तट से दूर है. मध्यस्थ व्यक्ति अगर कोई अपना अवलोकन करे तो भी मध्य में रहने से भी डिस्टेंस रखना पड़ता है. डिस्टेंस के कारण पूरा सत्य निकलेगा. मैं मानता हूं कि सत्यस्त होना चाहिए. जो सत्यस्त हो, वो प्रेमस्त हो, जो करुणास्त हो, उसका निवेदन विश्व मंगल के लिए उपकारित होता है. मैं 77 साल में चल रहा हूं. लेकिन खुद को जवान समझ रहा हूं. ये पक्की बात है. ये मेरा कोई वाणी विलास नहीं है. मैं अपनी कथा में सबको फ्रीडम देखता हूं कि कोई भी बीच में मुझसे पूछ सकता है. अगर मेरे पास समझ और समय हो तो उसका जवाब देता हूं. पटना में कथा के दौरान एक युवक ने मुझसे पूछा कि भगवान बुद्ध जब यौवन थे, तब घर छोड़कर निकल गए. आपने युवा अवस्था में क्या किया? इस पर मैंने कहा कि अभी युवा अवस्था आने तो दे. उसके बाद देखा जाएगा और मैं भी कुछ निर्णय करूंगा. मोरारी बापू इतनी उम्र में भी खुद को जवान महसूस करते हैं. तो मेरा देश भी आगे जवानी की ओर बढ़ रहा है.
सवाल- ये युवावस्था हम कैसे पाएं और फिर इसे कैसे बरकरार रख सकते हैं?
जवाब- बुद्ध भगवान ने एक मार्ग दिया था हमको. उसका मार्ग का नाम था- मध्यम. युवा भी परमात्मा का दिया हुआ मध्यम मार्ग है. बचपन में हम नासमझ थे. निर्दोष तो थे ही. बुढ़ापे में कभी कभी हम कुछ समझ नहीं पाते हैं. कई कारण हो सकते हैं. या कह लीजिए समझना नहीं चाहते हैं. एक युवा ही ऐसा है. रामचरित मानस में अध्योध्या कांड में युवा का कांड कहता हूं. मैं इतनी सालों से लक्ष्य में केवल देश के ही नहीं, पृथ्वी के युवा ही रहते हैं. मैं युवाओं के लिए गा रहा हूं. मैं युवाओं के लिए हूं. मेरी रामकथा युवाओं के लिए ही है. सबसे ज्यादा युवाओं के कथा सुनने के पीछे मैंने युवाओं को सबसे ज्यादा डांटा, सलाह दी. दोष निकाले. मेरा मार्ग यह है. मेरा मार्ग किसी को सुधारने का है ही नहीं. मैं यहां सुधारने के लिए हूं ही नहीं. मुझे सबको स्वीकार करना है. और मैं स्वीकार का मंत्र रखता हूं. युवा जो कर सकेंगे, वो कोई नहीं कर सकेगा. विश्व के लिए सगुन समझिए- युवा अध्यात्म के प्रति बहुत रुचि रख रहे हैं. हनुमानजी युवाओं के आदर्श हैं. आज के युवाओं को अपनी ऊर्जा को सही जगह लगाना चाहिए. मेरी आस्था युवाओं पर ज्यादा है.
सवाल- आज जो कथा है, वो है वेबसीरीज, सिनेमा, सोशल मीडिया. आज की कथाएं नकारात्मकता से भरी हुई हैं. आज की कथाएं जोड़ती नहीं हैं, तोड़ती हैं. समाज पर उसका असर पड़ रहा है. दिल्ली में श्रद्धा केस भी इसी तरह का है.
जवाब- इस तरह की घटनाओं को नहीं होना चाहिए. ये कौन सी मानसिकता काम कर रही है. लेकिन, मैं तो रामकथा लेकर घूम रहा हूं. ये जो घटनाएं घट रही हैं, उसके लिए रामकथा बहुत मार्गदर्शन दे सकती है. रामकथा बहुत उपयोगी हो सकती है. राम कथा को केवल धार्मिक ना समझें. रामकथा पंडाल में कहता हूं कि ये मेरी धर्मसभा नहीं है, ये मेरी प्रेम सभा है. धर्म को हमने संकीर्ण कर दिया है. छोड़ी बड़ी और क्रूर घटनाएं समाज में हो रही हैं, वो बिल्कुल निंदनीय हैं. इसके पीछे कोई ना कोई कारण होता है. समाज को जागरूक करने के लिए सत्संग की बहुत जरूरत है. सत्संग के कारण वो विवेक आएगा, वो इसमें सुधार ला सकेगा.
सवाल- कथा में आप लोगों को कैसे मग्न कर देते हैं? कोई भगवान की कृपा है?
जवाब- ये सवाल तो श्रोताओं से पूछना चाहिए. वहीं से सत्य निकलेगा कि आप इतनी व्यस्त जिंदगी में कथा के लिए सब कुछ छोड़कर 9 दिन तक क्यों बैठते हैं. वो ही कथा, वो ही मोरारी बापू. इसका जवाब श्रोता ही दे सकते हैं. मैं इतना ही कह सकता हूं कि जल में कभी पत्थर तैर नहीं सकते. जल चंचल है. पत्थर डूब जाता है. बंदर जल से भी ज्यादा चंचल है. बंदर कभी सेतु निर्माण नहीं कर सकता. वो सेतु जोड़ेगा नहीं, सेतु तोड़ देगा. समंदर चंचल है, वो पत्थर को तैरने नहीं देता. पत्थर का सहज स्वभाव है- डूब जाना. वो तैर नहीं सकता. जिसने सेतु बनाया, वो बंदर इतना चंचल है कि कभी सेतु निर्माण नहीं कर सकता. फिर भी सेतु बना. इसका मतलब है कि समुद्र के कारण नहीं बना- बंदरों के कारण नहीं बना. केवल रघुवीर की कृपा से सेतु बना. मेरा विश्वास कुछ ऐसा ही है. लोग सुनते हैं. मैं भी इतने मौज में रहता हूं कि डूब जाता हूं. इसकी मुझे कोई खबर नहीं है. मेरे पास परमात्मा की कृपा है.
सवाल - आप कहते हैं कि टी-20 के जमाने में टेस्ट मैच की तरह खेलो. आपकी कथा में लोग घंटों नहीं, कई दिन तक देने के लिए तैयार हैं. ये एक तरह से चमत्कार है?
जवाब- ये चमत्कार नहीं है, साक्षात्कार है. चमत्कार तो वाणी का प्रभाव डालने वाला कर सकता है. मैं विद्वान नहीं हूं. मेरे पास ज्यादा शब्दकोष नहीं है. मैं केवल गुजराती और हिंदी में बोल सकता हूं. और कुछ ज्यादा नहीं बोल सकता हूं. मैं लोगों से संवाद करता हूं. देश में संवाद की जरूरत है. जहां देखो, वहां विवाद, दुर्वाद, अपवाद... क्या हम रामराज्य लाने के लिए इन चीजों को छोड़कर संवाद की स्थापना नहीं कर सकते हैं. मैं इसी में लगा हूं. मेरे देश में संवाद स्थापित हो. संवाद से अच्छे परिणाम आ सकते हैं.
सवाल - धर्म जोड़ने के लिए होता, आज धर्म के जरिए तोड़ने की बातें हो रही हैं. आज धर्म को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.
जवाब- जो लड़े और लड़ाए- वो धर्म नहीं है. ये नहीं होना चाहिए. हमारे वेद क्या कहते थे. सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामय:... सब सुखी हों. सब निरोगी हों. सत सतायु हों. वहां कोई, वरण, जाति, ग्रुप और पक्ष-विपक्ष नहीं. ऋषि मुनियों ने युगों पहले कह दिया था. विनोवा जी ने कहा था कि युद्ध दो अधर्मों के बीच नहीं होता. दो धर्मों के बीच होता है. जहां दो धर्म लड़ाई करते, वहां धर्म कैसे बचेगा. धर्म का काम जोड़ना है. धर्म का तोड़ना नहीं है. धर्म का मतलब सत्य, प्रेम, करुणा है.
सवाल- आपने मौलवी से कहा था कि मेरे मंदिर आईए और नमाज अदा कर लीजिए. मुझे भी मस्जिद में आने दीजिए और पूजा कर लेने दीजिए. कभी ऐसा हो पाया?
जवाब- अभी इस पर जवाब नहीं मिला है. वो मेरे से ऊंचे मंच पर बैठे थे. मऊआ में हिंदू-मुस्लिम की शांति के लिए सभाएं होती रहती थीं. तो उसमें बड़े-बड़े धर्मगुरु आते थे. मैं भी वहां रहता था तो मुझे भी बुलाया गया. जहां संवाद और जोड़ने की बात हो तो वहां मैं जाता हूं. मुझसे कहा गया कि ये ऊंचे बड़े धर्म गुरु हैं. इसलिए उनका आसन थोड़ा ऊंचा रखना पड़ेगा. इस पर मैंने कहा कि मैं तो इसी गांव का हूं. जमीन पर बैठ जाऊंगा. मुझे आसन की जरूरत नहीं. मुझे कोई आपत्ति नहीं. मैं कुर्सी पर बैठा था. उन्होंने मुझसे कहा कि बापू राम जी के मंदिर में हमको वंदगी करने की छूट देंगे? इस पर मैंने कहा कि हमारा गांव, हमारा गांव है. राम जी मंदिर हमारा है. राम हमारा है. हम जब चाहें उसका दरवाज खोल सकते हैं. आप यदि आकर वहां वंदगी करें तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन, फिर हम सब नगाड़ा, झालर, आरती, घंटनाद, धूपिया, वेद मंत्र, गीता के मंत्र, मानस की चौपाई, शंकराचार्य के सूत्र लेकर आपके धर्म स्थान में आएंगे और हमको पूजा करने देना. हालांकि, अभी तक इसका जवाब नहीं मिला है. मैं अभी भी जवाब की प्रतीक्षा में हूं. अगर उनको स्वीकार होता तो इतना समय नहीं लेते. समाज में बोल देना और बात है और करके दिखाना और बात है.