दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक का मंच सजा हुआ है. शब्द और सुरों के इस महाकुंभ के दूसरे दिन जाने-माने लेखक दिव्य प्रकाश दुबे ने शिरकत की. 'आओ हिंदी से कमाना सीखें' सेशन में दिव्य ने कई बातों पर खुलकर बातें की. उन्होंने कहा कि नोएडा के सेक्टर-16 का जिक्र करते हुए कहा कि मुझे यहां से बहुत डर लगता है, क्योंकि हम सुबह 7 बजे हजारों लोगों के बीच इस उम्मीद में खड़े होते थे कि कोई आएगा और वॉक-इन इंटरव्यू के लिए लेकर जाएगा. लेकिन मेरा कहीं सिलेक्शन नहीं हुआ. फिर मैंने तय किया कि मुझे इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना है.
दिव्य प्रकाश दुबे ने कहा कि हमें हर रात सोने से पहले एक बैचेनी होती है, हमें पता होता है कि हम जो करने आए थे, वह नहीं कर रहे हैं. मुझे भी जब ऐसा ही फील हुआ तो मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर तय किया कि हम प्ले करेंगे. इसके बाद हमने 4-5 प्ले लिखे. जब मैं मुंबई पहुंचा तो 11 मई 2009 को मेरा नौकरी का पहला दिन था, इसी दिन शाम को 6 बजे मुझे अहसास हो गया था कि जीवनभर नौकरी नहीं करनी है. उस नौकरी को छोड़ने में भी मुझे करीब 11 साल लग गए. लेकिन मैं ये जानता था कि मुझे कहां जाना है. उन्होंने कहा कि लेखन ऐसी विधा है, जिसमें आपको धीरज रखना पड़ता है, इसमें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है. नौकरी में भी यही हाल है. ऐसे में धैर्य ही आपके काम आएगा. अगर आप राइटर बनने का सोच रहे हैं तो एक लंबे अंतराल तक धैर्य रखने का मानस बना लें. उन्होंने बताया कि मैंने पहले बी.टेक. किया, फिर एमबीए किया. लेकिन लक्ष्य तय था कि जीवनभर नौकरी नहीं करूंगा.
दिव्य ने कहा कि अगर आप अपने 5 दोस्तों के बीच कोई किस्सा अच्छे से सुना लेते हैं, तो संभव है कि आप ऑडियो के एप्स में नंबर 1 ट्रेंड कर सकते हैं. आज से 15 साल पहले ऐसा नहीं था. साथ ही कहा कि अगर कोई शायरी के नाम पर तुकबंदी ही कर लेता है और उससे कुछ लोग कनेक्ट हो जाते हैं तो ये भी बहुत बड़ा काम है.
दिव्य ने बताए हिंदी से कमाने के तरीके
उन्होंने कहा कि अगर आप हिंदी को स्किल की तरह लें. क्या आप ऐसी कहानी लिख सकते हैं जो किसी को एक घंटे तक बांधे रखने में कामयाब हो. आज जो भी इन्फ्लुएंसर हैं, वो पिछले 10 साल से यही काम कर रहे हैं, लेकिन वह आज ज्यादा सुने जाते हैं, उनके वीडियो आज कई लोग डाउनलोड कर रहे हैं. साथ ही कहा कि हम सभी के पास एक सुपरपावर है. हमें ये पता नहीं होता, जब मैं बीटेक कर रहा था, तो नहीं जानता था कि मैं तीन साल बाद प्ले भी लिख सकूंगा.साथ ही कहा कि मैं जब नौकरी कर रहा था, तब एक चैनल ने एंकर हंट चलाया था. तो मैं वहां पहुंचा और पहले राउंड में मेरा सिलेक्शन हो गया था. लेकिन दूसरे राउंड के लिए मुझसे कहा गया कि फर्ज करें कि पीछे राहुल गांधी की शादी हो रही है, इसे आप कैसे कवर करेंगे. तो मुझे समझ में आ गया कि मुझसे ये नहीं होगा.
आपके अपना बेहतर ढूंढने की जरूरत
दिव्य ने कहा कि अगर आपके अंदर स्टोरी टेलिंग की कला है या फिर शायरी कर सकते हैं तो सबसे पहले ये देखें कि इस काम को सबसे बेहतर कौन कर रहा है. साथ ही कहा कि आपके लिए भगवान ने कुछ बेहतर तय करके रखा है, बस उसे ढूंढने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जब आप थकना शुरू करते हैं, उसके बाद कितना लंबा चल पाते हैं. यही आपकी सफलता तय करता है. मैंने 11 मई 2009 को मैंने फुल टाइम राइटर बनने की सोची और मैं खुद को 8 मार्च 2020 को फुल टाइम राइटर कह पाया.
नई वाली हिंदी पर क्या बोले दिव्य
नई वाली हिंदी को लेकर दिव्य ने कहा कि नई वाली हिंदी ऐसे है, जैसे घर में एक पिता हैं, उनकी एक 18 साल की बेटी या बेटा है, जिसकी अपने पिता से बातचीत बंद हो गई है, तो उस पिता ने सोचा कि मैं अपने बच्चे का दोस्त बनूंगा. तो वह अपना व्यवहार बदलने लगते हैं. यही नई वाली हिंदी है. नई वाली हिंदी वही है जो आज क्रिएट कर रहा है और लोगों से कनेक्ट कर पा रहा है.
लेखक दिव्य की किताब 'यार पापा' का हुआ विमोचन
इस दौरान दिव्य ने अपनी किताब 'यार पापा' का भी विमोचन किया. उन्होंने कहा कि यह मेरी सातवीं किताब है, ये एक पिता-पुत्री की किताब है. एक बड़े वकील हैं मनोज साल्वे. उनकी एक बेटी हैं शाशा. दोनों के बीच बात नहीं होती. एक दिन पता चलता है कि मनोज साल्वे की डिग्री फेक है. ऐसे में मनोज साल्वे, जो अपनी दुनिया के केस जीतता है, क्या वह अपना केस जीत पाएगा. यही किताब 'यार पापा' का सार है.