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'उसको भी चुप कराइये जो रो नहीं रहा...', साहित्य आजतक के मुशायरे में ख़वातीन ने पढ़े बेहतरीन शेर

दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आज दूसरा दिन है. यह कार्यक्रम 26 नवंबर तक होना है. यहां किताबों की बातें की जा रही हैं, फिल्मों की महफिल सज रही है. सियासी सवाल-जवाबों के साथ तरानों के तार भी छिड़ रहे हैं.

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साहित्य आजतक में हुआ ख़वातीन का मुशायरा.
साहित्य आजतक में हुआ ख़वातीन का मुशायरा.

Sahitya Aaj Tak 2023: राजधानी दिल्ली में 24 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' शुरू हो चुका है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का आज दूसरा दिन है, जिसमें कई जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के दूसरे दिन 'ख्वातीन का मुशायरा- क्या खूब कहती हैं' सेशन में अलीना इतरत, डॉ. भावना श्रीवास्तव, सपना मूलचंदानी, आयशा अयूब, पूनम यादव, राबिया खानम, मुदिता रस्तोगी व हिना रिजवी शामिल हुईं.

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मुशायरे की शुरुआत मुदिता रस्तोगी के कलाम के साथ हुई. मुदिता ने पढ़ा कि तुम क्या इश्क करोगी मुदिता ये इक सिरदर्दी रहने दो, तुमको परेशां करने को तो जुल्फों के खम काफी हैं.

मुदिता के बाद शायरा पूनम यादव को दावते सुखन दी गई. पूनम यादव ने शेर यूं पढ़े-

पहले आप किसी के होलें
फिर दिल के बारे में बोलें

मरहम बनकर आने वाले
जाकर अपने जख्म टटोलें

लोगों के आगे रोने से
अच्छा है कमरे में रो लें.

चैन हंसने से न रोने से गुजरे होती है
वैसे जब आप हंसाते हैं तो हंस देती हूं.

जिनके हर ऐब से वाकिफ हूं वही आ आके
मुझको आईना दिखाते हैं तो हंस देती हूं.

एक तरफ है तेरी यारी
एक तरफ मेरी लाचारी

हो जाएगा जीना भारी
हर शय से कैसी बेजारी

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आखिर थककर बैठ गए सब
कब तक करते पहरेदारी

मैं तेरा सामान नहीं हूं
मत कर मुझपर दावेदारी... इसी के साथ पूनम यादव ने एक खूबसूरत नज्म पढ़ी, जिसे सुनने वालों ने खूब सराहा.

'उसको भी चुप कराइये जो रो नहीं रहा...', साहित्य आजतक में हुआ ख़वातीन का मुशायरा

शायरा राबिया खानम ने अपने शेर यूं पढ़े-

एक शिकवा है जो हर रोज बयां होता है
मेरा चर्चा मेरे दुश्मन के यहां होता है

इस कदर खून बहा है यहां इंसानों का
अब तो हर शख्स पे कातिल का गुमां होता है.

इस नए दौर का जादू भी अजब जादू है
उम्र ढलती है तो इंसान जवां होता है.

तेरा चेहरा बहुत उतरा हुआ है
बता किससे तेरा झगड़ा हुआ है

खतों को क्यों जलाया है किसी ने
जमीं पे फूल क्यों बिखरा हुआ है

तेरी गमखैर मैं कैसे न बनती
ये सब मुझपे भी तो गुजरा हुआ है

जरा ताकीर से इस बार आना
इधर मौसम अभी बिगड़ा हुआ है

कि ठुकरा दी है हर वो चीज मैंने
जिसे पाने को तू तरसा हुआ है

किसी से दिल लगाकर सोचते हैं
बड़े नुकसान का सौदा हुआ है.

अब तो हंसने का भी अरमान रुला देता है
जिससे मिलते हैं वही दिल को दुखा देता है

पहले इमदाद को वो हाथ बढ़ाता खुद है
और फिर बाद में एहसान जता देता है

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आपने प्यार का जादू अभी देखा ही नहीं
प्यार पत्थर पे भी कुछ फूल खिला देता है.

सैकड़ों जख्म दिए जिसने मुहब्बत के ऐवज
मेरा दिल क्यों उसी जालिम को दुआ देता है.

शायरा राबिया खानम के बाद सपना मूलचंदानी को शायरी पढ़ने के लिए आवाज दी गई. सपना ने शेर यूं पढ़े-

जिंदगी तेरे सर्द मौसम में
शॉल मां की मुझे बचाती है

जिसको पाना भी मुमकिन नहीं था कभी
उम्रभर उसको खोने से डरती रही

दूसरों को मैं मरहम लगाते हुए
अपने दिल पर लगे जख्म भरती रही

सीढ़ियां कामयाबी की चढ़ते हुए
मैं बहुत से दिलों से उतरती रही

इश्क करना किसी और का काम था
मैं किसी और का काम करती रही

मेरे वश से निकल गए हालात
मैं भी हालात से निकल आई

दर्जनों में किया मुझे भी दर्ज
उसके दर्जात से निकल आई

ये जानते हैं कि सीने में उसके पत्थर है
मगर यकीन है पत्थर में दिल छुपा होगा

ये सोचकर तुझे हम याद करते रहते हैं
तुझे भुलाने का कोई तो रास्ता होगा.

जो वफादार नहीं हो सकता
वो मेरा यार नहीं हो सकता

जो भी करता है मुहब्बत तुझसे
वो समझदार नहीं हो सकता.

खुद को दफ्तर में ये समझाते हैं
रोज इतवार नहीं हो सकता.

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सपना के बाद आयशा अयूब मंच पर थीं. आयशा ने गजलों के शेर के साथ ही नज्म पढ़ी और जिसे श्रोताओं ने जमकर सराहा. आयशा ने शेर यूं पढ़े-

इक नई दास्तों सुनाने दो
आज की नींद फिर गंवाने दो
बेड़ियां तोड़कर समाजों की
इश्क में कैद हैं दिवाने दो
उसको आजाद कर चुकी हूं मैं
फिर भी कहता है मुझको जाने दो

कुछ बात रह गई थी बताने के बावजूद
हालते सफर में घर आने के बावजूद
दिल से उतर चुका था जो आकर गले मिला
दूरी वही थी दिल से लगाने के बावजूद.

सब्र करना तो सोच लेना तुम
सब्र की इंतेहां नहीं है कोई

इश्क का ढोंग सब रचाते हैं
इश्क में मुब्तिला नहीं है कोई

जहर की शीशियों पे लिखा है
और अब रास्ता नहीं है कोई

हद्दे निगाह देखिए बनने को गमगुसार
उसको भी चुप कराइये जो रो नहीं रहा.

'उसको भी चुप कराइये जो रो नहीं रहा...', साहित्य आजतक में हुआ ख़वातीन का मुशायरा

इनके बाद डॉ.भावना श्रीवास्तव ने भी शेर सुनाकर लोगों की वाहवाही लूटी. उन्होंने पढ़ा- रात वो नेमत है जो रोशन है अपने नूर से, वो भला क्या देखती है रोशनी का रास्ता.

चलते चलते इस नए जंगल में कैसे आ गए
हम तो समझे थे कि ये है वापसी का रास्ता

नींद आते ही कोई हमको जगा देता है
दूर से आती है आवाज कहां तक पहुंचे

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इस तरह भाग के वो मेरे करीब आया था
जैसे बारिश में कोई अपने मकां तक पहुंचे.

ये मैंने कब कहा अच्छा नहीं है
वो अच्छा है मगर मुझसा नहीं है

मैं उसपे शेर कहना चाहती हूं
मगर मिसरों में वो ढलता नहीं है.

मुझे अफसोस बस इस बात का था
जिसे होना था शर्मिंदा खफा था

ये अंदेशा तो मुझको हो चुका था
बिछड़ना ही क्या इसका रास्ता था

बहुत खामोश था जाने से पहले
न जाने क्या बताना चाहता था.

डॉ. भावना के बाद शायरा हिना रिजवी को शेर पढ़ने के लिए आवाज दी गई. हिना रिजवी ने नज्म के साथ गजलें पढ़ीं, जिसके जरिए उन्होंने महिलाओं के हक की आवाज बुलंद की. उन्होंने शेर यूं पढ़े-

उनको रोना तो नहीं था हां मगर रोते रहे
तुझपे ऐ दुनिया सभी अहले नजर रोते रहे
रोने वाले रोके कुछ अरसे में चुप भी हो गए
हंसने वाले कहकहों में उम्रभर रोते रहे.

आंखों ने ये कैसा दरिया खींच लिया
जिसने मेरे दिल तक रस्ता खींच लिया

झूठ ये किसने उड़ाया है जमाने भर में
दूसरी बार कभी प्यार नहीं हो सकता.

हां खुदा की कसम नहीं होते
तुम न होते तो हम नहीं होते

मंजिलें बेनिशान हो जातीं
तुम अगर हमकदम नहीं होते.

हिना रिजवी के बाद जानी मानी शायरा अलीना इतरत को आवाज दी गई. मंच पर अलीना इतरत ने शेर यूं पढ़े-

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जिनके मजबूत इरादे बने पहचान उनकी
मंजिलें आप ही हो जाती हैं आसान उनकी

बंद रहते हैं जो अल्फाज किताबों में सदा
गर्दिशे वक्त मिटा देती है पहचान उनकी.

शाम के वक्त चरागों सी जलाई हुई मैं
घुप अंधेरों की मुंडेरों पर सजाई हुई मैं
देखने वालों की नजरों को लगूं सादा वरक
तेरी तहरीर में हूं ऐसे छुपाई हुई मैं.
मेरी आंखों में समाया हुआ कोई चेहरा
और उस चेहरे की आंखों में समाई हुई मैं.

अलीना इतरत ने एक गजल तरन्नुम से पढ़ी, जिसे खूब सराहा गया. उन्होंने शेर यूं पढ़े-

गुल से खिलवाड़ कर रही थी हवा
दिल को तेरा खयाल क्यों आया

इश्क तो हिज्र की अलामत है
वस्ल का फिर सवाल क्यों आया.

ऐसा बदली ने क्या किया आखिर
सूरज इतना निढाल क्यों आया.

सूनी आंखों में क्या मिला तुमको
झील जैसा खयाल क्यों आया.

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