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'...शोध करने वाले लेखकों की संख्या कम हो गई' साहित्य आजतक के मंच पर बोलीं मीरा जौहरी

साहित्या आजतक के सेशन 'प्रकाशक संवाद: लेखक से कितने दूर, कितने पास' सेशन में मीरा जौहरी (डायरेक्टर, राजपाल एंड संस), महेश भारद्वाज (पब्लिशर, सामयिक प्रकाशन), आलिंद माहेश्वरी  (राजकमल प्रकाशन समूह के मार्केटिंग और कॉपीराइट निदेशक) और शैलेश भारतवासी (डायरेक्टर, हिंदी युग्म) ने हिस्सा लिया. 

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'प्रकाशक संवाद: लेखक से कितने दूर, कितने पास'
'प्रकाशक संवाद: लेखक से कितने दूर, कितने पास'

शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' आज से दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शुरू हो चुका है. यह तीन दिन यानी आज से 26 नवंबर तक चलेगा. इस कार्यक्रम के पहले दिन 'प्रकाशक संवाद: लेखक से कितने दूर, कितने पास' सेशन में मीरा जौहरी (डायरेक्टर, राजपाल एंड संस), महेश भारद्वाज (पब्लिशर, सामयिक प्रकाशन), आलिंद माहेश्वरी  (राजकमल प्रकाशन समूह के मार्केटिंग और कॉपीराइट निदेशक) और शैलेश भारतवासी (डायरेक्टर, हिंदी युग्म) ने हिस्सा लिया. 

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सेशन के दौरान गेस्ट ने प्रकाशक और लेखक कितने दूर कितने पास पर अपनी-अपनी राय रखी. साथ ही, इस सेशन के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई कि आज के लेखक और पहले के लेखकों में क्या बदलाव आए हैं और कैसे कोई प्रकाशन किताबों को छापने के लिए उनका चयन करता है. साथ ही किताबों के कॉपीराइट को लेकर बात हुई. 

लेखक और प्रकाशक के रिश्तों पर मीरा जौहरी की राय
सेशन के दौरान जब मीरा जौहरी से प्रकाशक और लेखक कितने दूर कितने पास पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि ये अपने व्यक्तिगत संबंधों की बात है. साथ ही, ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप अपने लेखक से कैसा रिश्ता बनाकर रखते हैं. उन्होंने आगे कहा कि लेखक और प्रकाशक कभी अलग नहीं हो सकते, चाहे दूर हों या पास. मीरा जौहरी ने कहा कि ये स्पष्ट है कि लेखक है तो प्रकाशक है.

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उन्होंने आगे कहा कि लेखक और प्रकाशन में लेखक की प्राथमिकता है. इस बातचीत के दौरान मीरा जौहरी ने प्रकाशक के महत्व पर भी बात कही. उन्होंने कहा कि लेखक जो लिखता है, प्रकाशक उसे पाठक तक पहुंचाता है. उन्होंने बताया कि एक प्रकाशक का योगदान लेखक के प्रति ये होता है कि वो कैसे किताब को बेहतर बनाए. 

वहीं, इस बारे में चर्चा करते हुए महेश भारद्वाज ने कहा कि हिंदी का जो प्रकाशक है वो लेखक से दूर हो ही नहीं सकता. उन्होंने बताया कि लेखकों से प्रकाशक के बहुत ज्यादा मधुर संबंध हैं. इस दौरान महेश भारद्वाज से लेखकों कि इस शिकायत पर सवाल हुआ कि प्रकाशक लेखकों की किताबों का व्यापार करके अमीर बनते जाते हैं और लेखक को उस अनुपात में धन नहीं मिलता है. इस सवाल के जवाब में महेश भारद्वाज ने कहा कि हिंदी में ऐसा विवाद होता नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि विवाद वाला जो शब्द है, उसका अनुपात सोशल मीडिया के बढ़ने के बाद से बढ़ा है. सोशल मीडिया के चलते कई बार भ्रम की स्थिति होती है कि उनकी किताब बहुत बिक रही है, लेकिन हकीकत में उतनी बिकती नहीं है. उन्होंने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर अचानक लेखक की किताब को लेकर कोई पोस्ट पड़ती है तो उसके दोस्त उसे खूब लाइक और कमेंट करते हैं, लेकिन क्या हकीकत में भी वो किताब को खरीदते हैं. 

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शैलेश भारतवासी ने अपने अभियान 'नई वाली हिंदी' के बारे में कहा कि इस अभियान के तहत हिंदी साहित्य के पाठकों की संख्या में वृद्धि हुई है. उन्होंने कहा कि पाठकों ने अभी इनक किताबों से शुरू किया है. पाठक इसके जरिए पुरानी क्लासिक किताबों तक पहुंचेंगे. इस अभियान ने हिन्दी साहित्य से पाठकों को जोड़ने का काम किया है. 

पायरेसी और कॉपीराइट पर क्या बोले आलिंद माहेश्वरी
राजकमल प्रकाशन समूह के मार्केटिंग और कॉपीराइट निदेशक आलिंद माहेश्वरी ने कार्यक्रम के दौरान किताबों की पायरेसी और कॉपीराइट पर बात की. उन्होंने कहा कि हमारे देश में अभी कॉपीराइट या Intellectual प्रॉपर्टी को लेकर कोई बहुत कड़े नियम नहीं हैं. उन्होंने बताया कि जब हमें पता चलता कि हमारी कोई किताब पाइरेट हो रही है या नकली किताब छप रही है तो हमें खुद पुलिसवालों के साथ जाकर रेड मारनी पड़ती है. साथ ही, उन्होंने बताया कि हम पाठकों तक पहुंचने के लिए इस चीज की भी कोशिश कर रहे हैं कि हमारे प्रकाशन कि किताबें ई-बुक्स, ऑडियो बुक्स के रूप में उपलब्ध हों. 

पहले के लेखकों और आज के लेखकों में क्या है अंतर
कार्यक्रम के दौरान मीरा जौहरी ने पुराने और आज के लेखकों और कृतियों के बारे में भी बात की. उन्होंने कहा कि जो पहले के लेखक अपनी पाण्डुलिपि पर बरसों मेहनत करते थे, लेकिन आज लोगों की उम्मीद ये हो गई है कि आज किताब छपे और कल बेस्टसेलर हो जाए. ऐसे में उन लेखकों की संख्या कम हो गई है जो अपनी कॉपी पर शोध करें, काम करें और मेहनत करें. उन्होंने कहा कि आज के वक्त में जैसे ही कोई चीज हिट होती है, सब चाहते हैं कि वो भी उस तरह की किताब लिखें. आज के वक्त में क्लोंनिग होने लगी है. इस बारे में बात करते हुए सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज ने बात करते हुए कहा कि पहले के लेखक सुझाव लेने के बाद थोड़ा संशोधन कर लेते थे, लेकिन आज के लेखक ऐसा नहीं करते हैं.

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किताबों के चयन पर क्या बोले शैलेश भारतवासी
चर्चा के दौरान शैलेश भारतवासी ने कहा कि हर किताब की बिकने की गति अपनी-अपनी होती है. उन्होंने कहा कि अगर कोई किताब लंबी समय तक नहीं पढ़ी जाएगी या लोगों के विमर्श में आज वो शामिल नहीं है तो वो किताब बहुत महत्वपूर्ण नहीं है. किताबों के चयन में हर कोई उसकी तलाश में है जो लंबे वक्त तक चलें. 

किताबों के चयन पर क्या बोले आलिंद माहेश्वरी
आलिंद माहेश्वरी ने कहा कि अगर किसी को इंस्टेट रीड वाली किताब चाहिए तो वो भी होनी चाहिए और अगर किसी को गंभीर साहित्य वाली किताब चाहिए तो वो भी उपलब्ध होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये तय करेगा एक अच्छा संपादक और पाठक. उन्होंने कहा कि अगर किसी विषय का पाठक है हमारा तो उसे प्रकाशित होना चाहिए. 

कार्यक्रम में बोलते हुए मीरा जौहरी ने कहा कि लेखक और प्रकाशकों का लक्ष्य एक ही है कि अधिक से अधिक पाठकों तक किताब पहुंचाएं. उन्होंने कहा कि अगर हम इस टिके रहेंगे तो कोई भी विवाद सुलझ जाता है. इस मौके पर महेश भारद्वाज ने किताबों की बिक्री को लेकर अपने विचार सामने रखे. उन्होंने कहा कि जैसे ही किताब पब्लिश होती है, हम उसे अलग-अलग राज्यों में हिन्दी पुस्तक विक्रेता के पास पहुंचाते हैं. इसके अलावा, हम सोशल मीडिया पर भी इसकी पूरी सूचना डालते हैं. साथ ही, हम पत्रिकाओं को किताबें समीक्षा के लिए भी भिजवाते हैं. इस तरह से हम पाठकों के बीच किताबों को पहुंचाते हैं.

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पाठकों तक किताबें पहुंचाने की प्रक्रिया को लेकर शैलेश भारतवासी ने कहा कि ज्यादातर बड़े से बड़े पब्लिशरों का व्यवसाय ई-कॉमर्स पर आ गाया है. उन्होंने कहा कि कोविड के बाद से बड़े-बडे़ पब्लिशिंग हाउस की बिक्री 80 से 90 प्रतिशत ई-कॉमर्स से हो रही है. बाकी की 20 प्रतिशत बिक्री दुकानों, पुस्तक मेलों और एग्जीबिशन से है. उन्होंने इसकी चुनौतियों के बारे में बात करते हुए कहा कि किताबें बेचने का जो खर्च है वो हमें 20 प्रतिशत वाले में ज्यादा लगता है. उन्होंने कहा कि ऑफलाइन किताबें बेचने का खर्च ज्यादा है. 

ऑनलाइन-ऑफलाइन किताबों की बिक्री पर क्या बोले आलिंद माहेश्वरी
उन्होंने कहा कि राजकमल प्रकाशन साल में 70 एग्जिबिशन ऐसे करता है जो अलग-अलग शहरों में होती हैं या जो बड़े-बड़े फेस्टिवल या मेलों का हिस्सा होती हैं. उन्होंने कहा कि पाठक सिर्फ ऑनलाइन नहीं है. उन्होंने कहा कि एक बड़ा वर्ग वो है जो दुकानों या मेलों से किताबें लेना चाहता है. उन्होंने कहा कि ऑनलाइन के जरिए पाठक तक किताबें जल्दी पहुंचाई जा सकती हैं, लेकिन आज भी ऑफलाइन मार्केट उपलब्ध है. 

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