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थोड़ा सा स्त्रीत्व पुरुषों में और थोड़ा पुरुषत्व स्त्रियों में होना चाहिए... साहित्य आजतक में मन और देह पर हुआ विमर्श

दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आखिरी दिन है. यह कार्यक्रम 24 नवंबर से शुरू हुआ था. यहां किताबों की बातें हो रही हैं. फिल्मों की बातें हो रही हैं. सियासी सवाल-जवाब किए जा रहे हैं और तरानों के तार भी छेड़े जा रहे हैं.

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साहित्य आजतक के मंच पर उपस्थित लेखिका.
साहित्य आजतक के मंच पर उपस्थित लेखिका.

Sahitya Aaj Tak 2023: दिल्ली में 24 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आज अंतिम दिन है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के मंच पर 'मन और देह से परे' सेशन में लेखिका गीता श्री, डॉ. अल्पना मिश्रा, डॉ. सुनीता व रेनू पाठक शामिल हुईं.

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इस सेशन में नारी अस्मिता, स्त्री का अस्तित्व, मन के राग, आकांक्षाएं, इच्छाएं इन सब पर बात की गई. इस दौरान रेनू पाठक ने कहा कि सृजन में हम अपने आप से उठकर लिखते हैं, वही सच्चा सृजन होता है. तब हम खुद को सही मान भी पाते हैं. प्रसिद्धि पाने के लिए लिखने वाले सच्चा लेखन नहीं कर रहे. वे सिर्फ लाइमलाइट में आने के लिए ये काम कर रहे हैं. मैं जो भी कविताएं लिखती हूं, उनमें समाज होता है.

उन्होंने कहा कि हम समाज के लिए लिखते हैं. उन्होंने कहा कि एक स्त्री में ज्यादा शक्ति होती है, वो समाज के हर वर्ग का दर्द समझ सकती है. स्त्री आज जिस मकाम पर पहुंची है, वो अपने आप में इतनी मजबूत है, जो अपने अधिकार जानती है. इसी के साथ लेखिका रेनू ने एक दोहा सुनाया.

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दी पिय चारण तुम रखो श्री चरणन के पास
कर विनती उर्मी कहें दीदी से है आस.

Sahitya Aaj Tak 2023

वहीं लेखिका गीताश्री ने कहा कि मेरे हिसाब से यह सही नहीं है कि लेखक लिखते समय लिंगभेद से ऊपर उठ जाता है. हम हाशिये पर पड़े समाज के लिए अगर उनकी पीड़ा लिख रही हूं, तो हम कैसे लिंगभेद से ऊपर उठ सकते हैं. मैं जो भी लिखती हूं, बिल्कुल लिंगभेद से ऊपर उठकर नहीं लिख सकती. 

उन्होंने कहा कि स्त्री स्वतंत्र चेतना के साथ अपने मन और देह को जोड़कर रखती है. मेरी सारी कोशिशें स्त्री के दर्द को लिखने की होती है. उनके आंसू हमारी पलकों पर झिलमिलाते हैं. स्त्रियों का दुख साझा होता है. जब मैं लिख रही होती हूं, तो मैं स्त्री होती हूं. मैं स्त्री का दुख लिख रही होती हूं. मैं स्त्रियों को उनका कल्पित संसार देना चाहती हूं. उन्होंने कहा कि स्त्री को आज बागी होना पड़ता है.

वहीं लेखिका डॉ. अल्पना मिश्रा ने कहा कि लेखक जब लिख रहा होता है, तब वह पूरे समाज के लिए लिख रहा होता है. कई बार ऐसे लोगों पर लिख रहा होता है, जिन्हें उसने जिया नहीं है. फिर लेखक रचता है. लेखक को पूरा समाज दिखाना होता है. पूरी दुनिया को पुरुष जैसे देखता है, वैसे ही स्त्री भी देखती है. अब बड़े पदों पर लड़कियां पहुंच रही हैं. परिवर्तन आया है, आगे भी ऐसा परिवर्तन होता रहे.

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Sahitya Aaj Tak 2023

डॉ. अल्पना मिश्रा ने कहा कि परकाया प्रवेश कल्पना से नहीं किया जा सकता. कोई भी कल्पना अधिक देर तक नहीं टिकती. विवेक बेहद जरूरी है. अहिंसा की रचनात्मकता के कितने सूत्र निकाले गए हैं. अगर विवेक है तो हम सही रास्ते पर पहुंच सकते हैं. हम ऐसा समाज नहीं चाहते, जिसमें हम तो निकल जाएं, लेकिन बाकी सब लहूलुहान हो जाएं.

उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ और संतुलित समाज को बनाने के लिए कभी हमने बच्चों को बताया ही नहीं गया है, जबकि समाज में बच्चों को कनविंस किया जा सकता है. उन्हें सही रास्ता दिखाया जा सकता है. डॉ. अल्पना मिश्रा ने कहा कि थोड़ा सा स्त्रीत्व पुरुषों के अंदर और थोड़ा सा पुरुषार्थ स्त्रियों के अंदर होना चाहिए तो बैलेंस बना रहेगा.

'लेखक जब किसी की पीड़ा लिख रहा होता है तो एक दर्द से गुजर रहा होता है'

इनके बाद डॉ. सुनीता ने कहा कि स्त्री मन और देह की पारिवारिक परंपराओं से जुड़ी रहती है. लिखने के लिए अनुभव जगत भी पड़ी चीज है. अगर आपने किसी का दर्द नहीं जाना या किसी की पीड़ा को महसूस नहीं किया तो लेखन कैसे होगा. जब लेखक लिख रहा होता है तो वह उस दर्द से गुजर होता है, जिस पर वह लिखता है. 

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अगर हमने किसी गांव में जाकर किसी स्त्री को पढ़ने, लिखने के लिए जागरूक नहीं किया तो हमने अपने लेखन से कोई संदेश नहीं दिया. डॉ. सुनीता ने कहा कि मैं दुनिया घूमती हूं. इससे ये कह सकती हूं कि हमारा देश अन्य देशों की अपेक्षा बहुत सुरक्षित है.

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