दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में शुक्रवार को शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आगाज हुआ. तीन दिवसीय इस कार्यक्रम के पहले दिन साहित्य से लेकर सिनेमा जगत के कई दिग्गज हिस्सा ले रहे हैं. इस दौरान लेखक और पत्रकार संजीव पालीवाल का रोमांटिक उपन्यास 'ये इश्क नहीं आसां' का विमोचन हुआ. इस उपन्यास का विमोचन आजतक और इंडिया टुडे के न्यूज डायरेक्टर सुप्रिय प्रसाद ने किया.
संजीव पालीवाल का यह तीसरा उपन्यास है. उन्होंने बताया कि इश्क इस उपन्यास का आधार है. इश्क करना बहुत आसान हैं, यह आसानी से हो जाता है लेकिन असल मुश्किलें इसके बाद पैदा होती हैं. इस उपन्यास में दरअसल दो पीढ़ियों का इश्क है. एक आज की पीढ़ी है, जिसका अपना संघर्ष है और दूसरी पीढ़ी वो हैं, जो 1990 के दशक में बड़ी हो रही थी. उसकी अपनी कहानी है.
उन्होंने कहा कि इश्क के अलावा इसमें महिलाओं का संघर्ष भी है. उन्होंने किन मुश्किल हालातों में प्रेम करते हुए संघर्ष किया गया. इश्क का रंग ऐसा ही है कि वह कहीं भी खिल जाएगा.
'इश्क को लिखना कितना मुश्किल!'
यह पूछने पर कि इश्क तो सभी करते हैं लेकिन इश्क को लिखना उसे किताबी शक्ल देना, कितना मुश्किल है? इस पर पालीवाल बताते हैं कि इश्क को लिखना बहुत मुश्किल होता है.
इस किताब में पालीवाल समाज की कहानी है. जब मैं बड़ा हो रहा था, तो मुझे बताया गया कि हमारे समाज में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता. इसके पीछे की एक कहानी बताई गई कि रक्षाबंधन के दिन ही किसी आक्रांता ने पालीवाल राज पर हमला किया था. बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे, औरतों ने जौहर कर लिया था. इस वजह से पालीवाल समाज रक्षाबंधन नहीं मनाता और ये परंपरा कोई 800 साल से चली आ रही है.
वह बताते हैं कि मैंने इसके पीछे की भी सच्चाई का पता लगाने की भी कोशिश की. पालीवाल समाज के लोग कोई 700 साल पहले राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बस गए थे. जैसलमेर में पालवील समाज के 84 गांव हैं, इन्हीं में से एक गांव कुलधरा है, जिसे भुतहा माना जाता है. हम कुलधरा गांव के रहने वाले हैं. हमारा वंश वहीं से शुरू हुआ.
पालीवाल कहते हैं कि इश्क के बिना इंसान अधूरा है. इश्क में सबकुछ है. इश्क की तासीर ही ऐसी है कि वह चढ़ता है. वह किसी भी रूप में कभी भी हो सकता है. मौजूदा समय में इश्क का तरीका भी बदला है. आज लोग सोशल मीडिया पर मिल रहे हैं. इश्क अलग-अलग स्टेज पर भी होता है, लेकिन ये कोई इंस्टेंट नूडल्स नहीं है.
'हम कहानियां नहीं लिखते, किरदार कहानियां लिखवाते हैं'
संजीव पालीवाल कहते हैं कि कहानियां हर इंसान की जिंदगी में होती हैं, उन्हें बस लिखना आना चाहिए. कहानियां हम सभी के भीतर मौजूद हैं. अगर एक बार लिखने की आदत पड़ जाए तो कहानियां आपको बेचैन कर देती हैं. तब आप कहानियों को नहीं गढ़ते, बल्कि कहानियां आपसे किताब लिखवा देती है.
उन्होंने कहा कि जब आपको किरदार मिल जाते हैं तो काम बन जाता है. मुझे इस उपन्यास के लिए मुझे अनन्या का किरदार मिला. उसके साथ अमन का किरदार भी मिल गया, जब दोनों मिले तो किताब तीन महीने में पूरी हो गई. लिखने की शिद्दत है कि तो किरदार आकर आपसे लिखवा देते हैं. किरदार हावी हो जाता है.
'हर किताब आपके दिल का कुछ अंश ले जाती है'
उन्होंने कहा कि किताब की हर कहानी अपने साथ आपकी आत्मा और दिल का कुछ अंश ले जाती है. जब मैंने अपनी एक किताब के लिए काली का किरदार लिखा तो काली का किरदार कुछ दिनों के लिए मेरे भीतर ही रह गया. ठीक ऐसा ही नैना के किरदार को लेकर भी हुआ. हर किरदार खुद ब खुद बनते हैं. वे अपनी खामियां और खूबियां खुद लेकर आती है. मेरे किरदार अमूमन रॉ होते हैं.
संजीव कहते हैं कि मेरी कहानी को सिर्फ इश्क लिए पढ़ा जाना चाहिए. उस इश्क को महसूस कीजिए. अगर आप इश्क करते हैं तो फिर हर चीज को मानेंगे, जो इंसान इश्क में होगा तो वह रिश्ते को निभाएगा. आप इश्क कीजिए तो फिर सारी कायनात आपकी हो जाएगी.