Sahitya Aaj Tak 2023: दिल्ली में 24 नवंबर से सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' शुरू हुआ. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम का आज दूसरा दिन है, जिसमें कई जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के दूसरे दिन 'शब्दों का कारवां- मुशायरा' सेशन में कवियों- शायरों ने अपनी रचनाएं पेश कीं. इस सेशन में हाशिम फिरोजाबादी, मणिका दुबे, पवन आगरी, स्वयं श्रीवास्तव, प्रियांशु गजेंद्र, चिराग जैन और रितेश रजवाड़ा शामिल हुए. सभी कवि- शायरों ने अपनी शायरी से लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया.
सबसे पहले मंच पर लखनऊ से आए कवि रितेश को आवाज दी गई. रितेश ने अपनी कई रचनाएं सुनाकर वाहवाही लूटी. उन्होंने पढ़ा-
ख्वाब के घर चलो चलूं कि नहीं
तू बता दे जियूं जियूं कि नहीं
सामने हूं मगर करीब नहीं
हाले दिल मैं कहूं कहूं कि नहीं.
जा रहे हो तो देख लो मुड़के
मैं कभी फिर मिलूं मिलूं कि नहीं.
इसी के साथ रितेश सिंह ने 'बोल साथी हल्ला बोल' उनवान वाली एक नज्म पढ़कर आजादी के नायकों को याद किया, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया.
इनके बाद मंच पर लखनऊ से आए कवि स्वयं श्रीवास्तव को बुलाया गया. स्वयं श्रीवास्तव ने पढ़ा-
मुश्किल थी संभलना ही पड़ा घर के वास्ते
फिर घर से निकलना ही पड़ा घर के वास्ते
मजबूरियों का नाम हमने शौक रख दिया
हर शौक बदलना ही पड़ा घर के वास्ते.
जिस रास्ते पे चल रहे उस पर हैं छल पड़े
कुछ देर के लिए मेरे माथे पे बल पड़े
हम सोचने लगे कि यार लौट चलें क्या
फिर सोचा यार छोड़ो चल पड़े तो चल पड़े.
मुझको न रोकिये न ये नजराने दीजिए
मेरा सफर अलग है मुझे जाने दीजिए
ज्यादा से ज्यादा होगा ये कि हार जाएंगे
किस्मत तो हमें अपनी आजमाने दीजिए.
पत्थर की चमक है न नगीने की चमक है
चेहरे पे सीना तान के जीने की चमक है
पुरखों से विरासत में हमें कुछ न मिला था
जो दिख रही है खून पसीने की चमक है.
डरना नहीं किसी के भी पैरों की नोक से
आखिर में पुण्य जीत ही जाएगा पाप से
गीता में कृष्ण ने कहा अर्जुन से बस यही
पहली लड़ाई जीतनी है अपने आप से.
जब डर पता चला तभी ताकत पता चली
सीने में आग सीने की हिम्मत पता चली
शर्तों पे तेरी बिकने से इनकार कर दिया
तब जाके अपनी आप की कीमत पता चली.
इक शख्स क्या गया कि पूरा काफिला गया
तूफां था तेज पेड़ को जड़ से हिला गया
जब सल्तनत से दिल की ही रानी चली गई
फिर क्या मलाल तख्त गया या किला गया.
इसके बाद स्वयं श्रीवास्तव ने गीत 'प्यार को ठुकरा दिया था निर्दयी बाजार ने...' पढ़ा, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. स्वयं श्रीवास्तव के बाद मध्य प्रदेश से आईं कवयित्री मणिका दुबे को आवाज दी गई. मणिका दुबे ने अपनी चुनिंदा रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने पढ़ा-
कोई भी राग अब जपना नहीं है
अपना नहीं है
तुझे हर एक पल सोचा है मैंने
महज ये रात का सपना नहीं है.
बिना सोचे ये कसमें तोड़ देना
कलाई आसरे की मोड़ देना
खुशी में आपकी अड़चन बनूं तो
उसी पल आप मुझको छोड़ देना.
सारी जिंदगी मेरी बस इसी में जानी है
मुझको प्यार आता है तुझको नींद आनी है
हाथ देख ले मेरा मैं अभी भी तेरी हूं
दौर है नया मेरा पर घड़ी पुरानी है.
घर पे मेरे शादी के रिश्ते रोज आते हैं
दावते मेरे गम की अब सभी को खानी है.
अब भी तुम मगर आओ तोड़ दूं सगाई मैं
अब भी फैसला ले लो फिर विदा हो जानी है.
कोई अनबन कोई शिकवा कोई झगड़ा नहीं होगा
चलो वादा करें कि अब कोई गुस्सा नहीं होगा
यही है प्रेम की ताकत कि इक इंसान दुनिया में
परेशां हो भी सकता है मगर तन्हा नहीं होगा
ये कैसा बावलापन है ये कैसी रूहदारी है
उसी को देखकर जीते हैं जो अपना नहीं होगा
बड़े नादान हो तुम भी बड़े मासूम हैं हम भी
वो सपना देखते हैं जो कभी पूरा नहीं होगा
जमाना देख आए और दुनिया घूम आए हम
भले हैं लोग फिर भी मां कोई तुमसा नहीं होगा
निभाया ना अगर जाए तो मुझको छोड़ देना तुम
तुम्हें पर छोड़ने का फैसला मेरा नहीं होगा.
कवयित्री मणिका दुबे की इन रचनाओं को उपस्थित श्रोताओं ने खूब सराहा. इनके बाद कवि गजेंद्र प्रियांशु को मंच पर आवाज दी गई. गजेंद्र ने अपनी कविताएं यूं पढ़ीं-
वह थी झूठी मगर इतनी झूठी न थी
पर कई दिन हुए इतनी रूठी न थी
दूर सारा भरम हो गया देखकर
उसकी उंगली में मेरी अंगूठी न थी.
थक गए हैं बहुत फिर भी हारे नहीं
इतने डूबे भी अपने सितारे नहीं
उसने कंगन किसी के पहन तो लिए
मेरे कंगन भी अब तक उतारे नहीं.
कल थे असफल मगर अब सफल हो गए
अपना दलदल बदल दलबदल हो गए
हो गई इस तरह उनपे भगवत कृपा
बेहया फूल थे अब कमल हो गए.
लक्ष्य पर हम सधे थे सधे रह गए
हाथ पहले बंधे थे बंधे रह गए
एक आई लहर तुम हुईं मंत्री
हम गधे थे गधे के गधे रह गए.
जिंदगी अपनी जीभर के जी लेंगे हम
चार दिन कम से कम रम तो पी लेंगे हम
मेरा दिल है कि दिल्ली चले जाओगे
फिर यहीं के यहीं घास छीलेंगे हम.
रो न पाया रुआंसा चला जाऊंगा
पढ़के नयनों की भाषा चला जाऊंगा
आज भी हाथ यदि ना खुले आपके
तो मैं पनघट से प्यासा चला जाऊंगा.
इसके बाद ये गीत पढ़ा...
कहीं प्रशंसा कहीं से ताली कहीं भरा मन कहीं से खाली
जैसे तैसे उमर बिता ली मैंने तेरे प्यार में
रात रातभर तुमको गाया सुबह छपे अखबार में
पांव बेचकर सफर खरीदे सफर बेचकर राहें
जब मैं खुद को बेच चुका तो सबकी पड़ीं निगाहें
नींद बेचकर सपन खरीदे सपने बेच तबाही
कागज बेचे कलम खरीदी कलम बेचकर स्याही
जीवन कई रंग में रंगा रंगों के व्यापार में...
कवि गजेंद्र प्रियांशु के बाद कवि पवन आगरी को काव्य पाठ से बुलाया गया. पवन आगरी ने हास्य रस की कविताएं अपने अंदाज में प्रस्तुत कीं. उन्होंने चुटीले अंदाज में कर्ज लेकर विदेश भागने वाले विजय माल्या और नीरव मोदी पर निशाना साधा. इस दौरान उन्होंने 'विधायक विधान खा रहे हैं...' कविता सुनाई. हास्य व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्था पर भी निशाना साधा.
पवन आगरी के बाद कवि चिराग जैन को बुलाया गया. चिराग ने अपनी खास रचनाओं के साथ ही चिर-परिचित अंदाज में व्यंग्य किए. उन्होंने कहा कि -
हम हैं हिंदी कविता की बुनियाद में गढ़ने वाले लोग
मंचों पर भी मिल जाते हैं लिखने पढ़ने वाले लोग.
धड़कन का कोहराम छटा तो क्या होगा
ईसीजी करवाने में डर लगता था
ग्राफ में उनका नाम छपा तो क्या होगा.
इसी के साथ चिराग ने प्रेम की कविता पढ़ी, जिस पर लोगों ने भरपूर तालियां बजाईं. चिराग जैन के बाद जाने माने शायर हाशिम फिरोजाबादी को बुलाया गया. हाशिम फिरोजाबादी ने अपनी शायरी सुनाकर जमकर दाद वसूली. उन्होंने पढ़ा-
तबीयत कुछ दिनों से फिट नहीं है
हमें तनहाई की आदत नहीं है
ये राहे इश्क है वनवे है मैडम
यहां एंटर तो है एग्जिट नहीं है
बिछड़कर मुझसे ये हालत है उसकी
अब उसके फेस पर लाइट नहीं है
तु्म्हारे प्यार के दफ्तर में बेबी
हमारा फॉर्म क्या सबमिट नहीं है.
और क्या चाहिए इक बदन के लिए
ये तिरंगा बहुत है कफन के लिए
सरहदों पर हमें भेजकर देखिए
जान दे देंगे अपनी वतन के लिए.
तेरे गुरूर को इक दिन जरूर तोड़ूंगा
तू आफताब सही पर बुझा के छोड़ूंगा
बहुत जहीन समझती है खुद को वो लड़की
मुझे कसम है कि पागल बना के छोड़ूंगा
मैं अपने मुल्क की अमन ओ सलामती के लिए
हर इक हिंदू मुसलमां के हाथ जोड़ूंगा.
मुहब्बतों का नया वार करके आया हूं
मैं सारी नफरतें मिसमार करके आया हूं
ऐ आशिकों मेरी आंखों में झांककर देखो
मैं अपने यार का दीदार करके आया हूं
न दुश्मनी न मुरव्वत में मारा जाऊंगा
मैं जब मरा तो मुहब्बत में मारा जाऊंगा
तुम्हारी बज्म में बोली लगी मेरे सर की
न जाने कौन सी कीमत में मारा जाऊंगा
मेरा नसीब भी टूटा हुआ सितारा हुआ
तुम्हारा साथ जो छूटा तो बेसहारा हुआ
सजा के आज भी अलमारियों में रखा है
तुम्हारे साथ में जो वक्त था गुजारा हुआ.
वो दिया भी शामिल था मेरा था घर जलाने में
हाथ जल गए जिसकी रोशनी बचाने में.