दिल्ली में हर साल की तरह इस बार फिर से साहित्य और कला का सबसे बड़ा मंच सज चुका है. मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक के छठे संस्करण की शानदार शुरुआत शुक्रवार को हो गई है. तीन दिनों तक मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में कला, संगीत और साहित्य जगत की तमात हस्तियां एकजुट रहेंगी. आज इसके दूसरे दिन के सेशन 'पौराणिक आख्यान' में विनीत वाजपेयी (लेखक) , आशुतोष गर्ग (लेखक) और रत्नेश्वर (लेखक) पहुंचे.
'पौराणिक कहानियां वैज्ञानिक तरीके से समझना चाहता युवा'
किताबी दुनिया के डिजिटल हो जाने पर क्या कुछ बदला है? इस सवाल पर रत्नेश्वर ने कहा- हिंदी पढ़ने की बात करें को पहले की अपेक्षा बहुत कम पाठक हैं. रेलवे स्टेशनों पर किताबों की दुकाने लगभग खत्म हुई जा रही हैं. उसपर भी पौराणिक कथाओं की बात करें तो युवा पौराणिक कहानियों को वैज्ञानिक तरीके से समझना चाहता है. ये जरूरी भी है और मैं अपने उपन्यासों में यही करने की कोशिश कर रहा हूं.
'पौराणिक कहानियों के लिए क्वालिटी रीडिंग की कमी'
वहीं आशुतोष गर्ग ने कहा- पौराणिक पढ़ने की बात करें तो नई पीढी में पढ़ने का रुझान तो देखने को मिल रहा है लेकिन क्वालिटी रीडिंग में जरूर कमी है. सोशल मीडिया का अधिक प्रभाव है. जबकि पुराणों का असली कंटेंट आज सामने आ रहा है. हर कुछ जो आज है या फिर जहां भी आज साइंस पहुंच रही है, वह सब पुराणों में पहले से लिखा हुआ मिल रहा है. जो हम आज समझ रहे हैं वहां पौराणिक साहित्य बहुत पहले पहुंच चुका है.
अशुतोष ने आगे कहा- पुराण शब्द से अलगाव की स्थिति है तो इसे नए ढंग से पेश किया जाना चाहिए. यही वजह है कि मैं अपने हर पौराणिक उपन्यास में कोई मॉर्डन अप्रोज जरूर डालता हूं. लेकिन एक बात ये भी है कि पौराणिक साहित्य समय लेता है इसलिए लोग पढ़ नहीं पाते और ज्यादा समय देकर पढ़ना नहीं चाहते.
'अश्वतथामा किसलिए जीवित है?'
उन्होंने बताया कि- मैं अश्वतथामा पर मेरी किताब की बात करूं तो वह एक उपेक्षित पात्र है. कहा जाता है कि वे अमर हैं और उनकी खोज आज भी की जाती है. अश्वत्थामा पर पांडव पुत्रों की हत्या का आरोप है. उन्हें भगवान कृष्ण ने 3 हजार सालों तक अपने घावों के साथ जीवित रहने का श्राप दिया था ताकि वह कलयुग तक जीवित रहकर आज लोगों को ताकत के दुरुपयोग का नतीजा समझा सकें. यही मैं अपनी किताब में बताना चाहता हूं.
'गीत- गोविंद का फिक्शनल कैरेक्टर हैं राधा'
यहां विनीज बाजपेयी ने कहा कि आज भी पौराणिक कहानियों पर काम तो अच्छा हो रहा है. लेकिन पुराणों में कितनी मायथोलॉजी है ये कोई जज नहीं कर सकता. कोई नहीं मानेगा कि कृष्ण की राधा दसवीं सदी के लेखक जयदेव की किताब गीत- गोविंद का एक फिक्शनल कैरेक्टर है. यानी मायथोलॉजी है फैक्ट नहीं. उसी तरह फिल्म 'जय संतोषी मां' से माता संतोषी के मायथोलॉजिकल कैरेक्टर को लोगों ने आजतक फैक्ट माना हुआ है. कुल मिलाकर बात इतनी है कि कई चीजों की सबूत सिर्फ लोगों की भावनाएं हैं.