नए साल 2024 में साहित्य के सितारों का महाकुंभ, अपने नए एडिशन के साथ लखनऊ में शुरू हो चुका है. शनिवार को साहित्य के मंच पर लेखक और कई जानी-मानी हस्तियों ने शिरकत किया. इस कड़ी में लेखिका, पद्मश्री विजेता डॉ. विद्या विंदु सिंह और लेखक, राजनीतिज्ञ हृदय नारायण दीक्षित ने 'नदी किनारे राम नाम' पर अपने विचार व्यक्त किए.
'नदी किनारे राम नाम' विषय पर सबसे पहले डॉ. विद्या विंदु सिंह ने कहा कि नदियां हमारी संस्कृति की वाहक हैं. जितने भी तीर्थ बने हैं सब नदियों के किनारे बने हैं. जहां मां होती है वहां राम हैं. लोक में गंगा यमुना सरसवती के बिना कोई अनुष्ठान नहीं होता है. इसके बाद राममय वातावरण बन जाता है. लोग पुराने ज़माने में तीर्थ पर पैदल ही चले जाते थे. लोग राम की भक्ति, राम की शक्ति के कारण वहां पहुंच पाते थे.
'राम मनुष्य की तरह हमारे आपके जीवन में हैं': हृदय नारायण दीक्षित
हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि राम मनुष्य की तरह हमारे आपके जीवन में, हमारे आपकी तरह सुख दुःख उठाते हैं. वे वन में जाते हैं, युद्ध करते हैं. राम में मनुष्य होने की सारी शर्तें दिखाई पड़ती हैं. हृदय नारायण दीक्षित ने लेखक राम विलास शर्मा का जिक्र करते हुए कहा कि श्रीराम इतिहास के ही पात्र थे. मौजूदा समय में हमारे आपके सामने एक ऐसा दृश्य दिखाई पड़ता है जिस पर हर कोई नजरे गड़ाए खड़ा है. उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में कहते हैं कि कविताएं आकाश में रहती हैं. राम के बिना हमारी कोई गति नहीं है. दसों दिशाओं में श्रीराम हैं. तुलसीदास ने लिखा है कि सिय राम मय सब जग जानी; करहु प्रणाम जोरी जुग पानी. राम हर जगह हैं. राम पिता में हैं, राम माता में हैं, भाई में हैं, बहन में हैं. राम को जहां खोजेंगे राम वहां हैं. रामकथा ऐसा है कि उसे हमेशा सुनने का मन करता है.
'राम के जन्म से पहले ही नदी का संबंध': विद्या विंदु सिंह
विद्या विंदू सिंह ने कहा कि राम के जन्म से पहले ही नदी का संबंध है. राम जब वन जाने लगते हैं तो गंगा जी से प्रार्थना करते हैं कि हमारा वन जाना सफल हो. केवट प्रसंग में भी नाव का जिक्र है. केवट मां गंगा से विनती करते हैं कि राम हमारे नाव में हैं, जरा धीरे धीरे बहो हे गंगा मां. उन्होंने रामकथा का जिक्र किया. जिसमें नदियों को लेकर कई रोचक बाते कहीं. नदियों से जुड़ाव पर उन्होंने दो बहनों की कहानी भी सुनाई.