Sahitya AajTak 2024: शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आगाज आज हो गया. आज के कार्यक्रम में कई मशहूर हस्तियों ने शिरकत की. कवि सम्मेलन के सत्र में कई कवियों और कवयित्री ने अपने कविता पाठ सुनाए. कवि सम्मेलन में कवयित्री रश्मि खेरिया, शायर सेराज खान बातिश, कवि रामनाथ बेखबर, शायर प्रमोद शाह नफीस, कवि ज्ञान प्रकाश पांडे और कवि रावेल पुष्प ने दर्शकों को कविता और गजलें सुनाईं. सबसे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में रश्मी खेरिया ने कहा कि अभाव जब भाव बन जाए तब कविता जन्म लेती है. जीवन की जोदजहद का नाम कविता है. मां पर उन्होंने सुनाया...
ममता से जीवन सजे सृष्टि सुनाए तान
नारी सबके मूल में जननी जीवन प्राण
मां हमें देख सूरज से चमकने लगती तुम्हारी आंखें
भोर से चहचहाने लगते होंट, बढ़ जाता ऑक्सीजन सांसों में
इसके बाद उन्होंने सुनाया
बूंद क्या नहीं हो तुम अनगिनत बाहों वाली विश्व की प्रेमिका
आलिंगन बन स्पर्श तुम्हारी देह का क्या नहीं दे जाता नया जीवन उसे
शायर सेराज खान बातिश ने सुनाया
भीड़ भरी है इंसानों की...
तुम छू लो तो जी उठूंगा मुझमे मेरी जान कहां है
तुम से ही है शहर की रौनक, मुझमें मेरी पहचान कहां है
ईश्वर कहां करे है कुछ भी सब कुछ तो इंसान करे है
इतना डरे है मानुष के मन, जिस जिस को भगवान करे है
जो कुछ राम नहीं कर पाए, पवन पुत्र हनुमान करे है
चले थे गांव से मिट्टी को लेकर
शहर में संगमरमर हो गया हूं
तुम अपने पांव का स्पर्श दे दो
इसी चाहत में पत्थर हो गया हूं
न सुकून है, न करार है
कि ख़ुशी जहां से फरार है
तुम्हीं जुस्तजू तुम्हीं रूबरू...
कवि रावेल पुष्प ने सियासत पर कविता पढ़ी...
अब तुम कुछ मत बोलो
मेरे कान बहुत पक गए हैं
हम कपड़ो के लिए चिल्लाए तो तुमने अपने कपड़े बदल लिए...
उन्होंने दूसरी कविता पढ़ी...
बड़ी सज-धज कर नई नवेली दुल्हन सी तुम आई हो शर्माती जनवरी
हम तुम्हारा स्वागत करेंगे, पर कुछ बातें भी करेंगे
प्रमोद साहा नफीस ने कविता सुनाई...
बदलती जा रही दुनिया नए जलवे आया होंगे
अगर नजरे नहीं बदली तो जाने हम कहां होंगे
इसके बाद उन्होंने सुनाया
ये कैसा सुख खोजा जग ने
और ज्यादा परेशां हो बैठा
उनकी मोहब्बत उनकी वफाएं हैं
बंद लबों पर जैसे दुवाएं हैं
इस तरह तन्हा कटेगी हमने ये सोचा न था
प्यास इस हद तक बढ़ेगी हमने ये सोचा न था
प्रेम के आंसू गिरे थे जिस जगह हमसफ़र
उस जगह नफरत उगेगी हमने ये सोचा न था
एक बड़े तूफ़ान से कश्ती बचा लाए नफीस
पर हवा उलटी चलेगी हमने सोचा न था
जो लगे गैर उसे अपना बनाकर देखें
एक नयी रस्म ज़माने में चलाकर देखें
उन्होंने गजल सुनाई...
ये कोई हकीक़त है, या कोई फ़साना है
कुछ राज नहीं खुलता, आना है कि जाना है
दुनिया ये मोहब्बत के आदाब निराले हैं
आना है तो आना है, जाना है तो जाना है
है लोग सभी अपने, गर तू है नफीस अपना
वरना तो ज़माने में, हर शख्स सयाना है
राम नाथ बेखबर ने दर्शकों की खिदमत में पढ़ा...
खार खारों से जरा ऐसे भी खाया जाए
बाग़ में हर फूल खिलाया जाए
आओ गुलशन को जरा और सजा जाए
इसके बाद राम नाथ बेखबर ने सुनाया
जिसमें दो पल गुजर नहीं होता
कुछ भी होता है घर नहीं होता
ऐसी नस्लें हैं आज की नस्लें
कुछ भी कह दो असर नहीं होता
जिंदगी जिंदगी नहीं होती
मौत का डर अगर नहीं होता
अगली कविता उन्होंने पढ़ी...
फैसला अब जिन्दगी का हो गया
चांद अपनी चांदनी का हो गया
तू किसी की थी किसी की हो गई
मैं किसी का था किसी का हो गया
देखकर अचरज में है अपनी सदी
हाल कैसा आदमी का हो गया
कब कहां किसी की भी अर्जियां समझती हैं
बिजली गिराना बस बिजलियाँ समझती हैं
ज्ञान प्रकाश पांडे ने किसानों पर पढ़ा...
ये हल्कू की चीख है, फिर उसका मौन
महुए के इस पेड़ से लटक रहा है कौन
सबने कुर्सी बांट ली, जीत लिया विश्वास
हल्कू के हिस्से लगा बस केवल सल्फास
संघ पे तू गुल उगाना चाहती है
क्यों मुझे तू आजमाना चाहती है
दिल पर दस्तक हो रही आज कल
एक तितली सर छुपाना चाहती है