Sahitya AajTak Lucknow 2024: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आज से 'साहित्य आजतक-लखनऊ' के दूसरे संस्करण की शुरुआत हो गई है. यह आयोजन शनिवार 20 और रविवार 21 जनवरी 2024 को अंबेडकर मेमोरियल पार्क, गोमती नगर लखनऊ में हो रहा है. इस दो दिवसीय कार्यक्रम में जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के महामंच पर पहले दिन 'ये कहानी नहीं पुरानी' सेशन में लेखक शैलेंद्र सागर, रजनी गुप्त और चंद्र शेखर वर्मा शामिल हुए.
इस दौरान लेखक शैलेंद्र सागर ने कहा कि साहित्य का मुख्य सरोकार मनुष्य और मनुष्यता है. ये कभी पुराने नहीं होते, हमेशा ताजे ही रहते हैं. अगर हम हिंदी कहानी की बात करें तो यह करीब सवा सौ साल पुरानी है. इसने लंबी यात्रा तय की है. शुरुआत में हिंदी में उपन्यास पर ही ज्यादातर लोगों का ध्यान था. सामाजित बुराइयों पर तमाम कहानियां लिखी गईं.
उन्होंने कहा कि इसके बाद कहानियां मनोवैज्ञानिक दौर में आईं. उनमें शिल्प और उनका विषय नया था. कहानी में कहानीपन बना रहना चाहिए. आजतक नए तरह के शिल्प के साथ कहानी लिखी जा रही हैं. इसमें कहानीपन को थोड़ा सा नुकसान हो रहा है. कहानी लोगों को शिक्षा भी देती है. इसके साथ साथ वो एक मनोरंजन भी है.
शैलेंद्र सागर ने कहा कि आज के समाज का चित्रण या आज का समाज साहित्य से अपेक्षा रखता है. पढ़ने का मतलब ये है कि उसकी तह में घुसना और उसकी संवेदनशीलता को महसूस करना. जो व्यक्ति संवेदनशील नहीं है, वो कभी नहीं लिख सकता. लेखक के अंदर संवेदनशीलता होनी चाहिए.
वहीं लेखिका रजनी गुप्त ने कहा कि हिंदी कहानी में कई बदलाव हुए हैं. आज का जीवन और पुराने जीवन में काफी कुछ बदला है. आज बहुत जटिल विसंगतिपूर्ण समय है. आज जो किरदार हैं, उनके व्यक्तित्व में विरोधाभास हैं. आज गांव और कस्बे प्रेमचंद के जमाने के गांव कस्बों से बहुत अलग हैं.
उन्होंने कहा कि आज सबके हाथ में मोबाइल है. सबके जीवन में चौतरफा संघर्ष बढ़ रहा है. साहित्य के सामने चैलेंज है कि हमें बहुरंगी समय को बहुरंगी किरदारों के साथ उकेरना है. हमारे उपन्यासों में स्त्री जीवन के सभी पहलू दर्ज किए गए हैं. लेखकों को चाहिए कि लेखन में अराजकता से बचें.
लेखक चंद्रशेखर वर्मा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि पाप और पुण्य आज भी अस्तित्व में है. आज जब हम युवाओं से बात करते हैं तो हमें पाप और पुण्य की नई परिभाषा देखने को मिलती है. आज अलग तरह के पुण्य की बात होने लगी है. कभी कभी लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं. हमें खुद कुछ बनना पड़ेगा. आगे बढ़ना पड़ेगा. साहित्य सृजन में ज्ञान का कोई विकल्प नहीं है. हम ऐसा साहित्य रचें, जिससे युवा खुद को जोड़ सकें. बच्चे वो कंटेंट चुन रहे हैं, जो उन्हें परोसा जा रहा है और दूसरा ये कि उन्हें खुद से चुनने दिया जाए.