बॉलीवुड अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने फिल्मी करियर के साथ अपनी किताब 'मी एंड मां' के बारे में बात की. इस दौरान उन्होंने किताब लिखने की जर्नी के बारे में बताया. इस सेशन में उन्होंने अपनी मां के साथ जो रिश्ते रहे उनके बारे में विस्तार से बताया और अपने एक्टर बनने की कहानी का भी जिक्र किया.
मां को परी या नलिनी बुलाती थीं
दिल्ली में पढ़ी दिव्या ने बताया, 'आपके जीवन के हर पड़ाव में मां शब्द हमेशा जुड़ा रहता है और कम उम्र में ही मैंने अपने पिता को खो दिया था. मेरी मां ने पहले मां और फिर दोस्त और फिर मेरी बेटी का रोल निभाया है. मैंने उनके साथ तीन रिश्ते निभाए थे और उन्हें मैं नलिनी या परी के नाम से बुलाती थी. मेरी मां हर वक्त मेरे साथ थीं.' बता दें कि दिव्या दत्ता ने अपनी मां के साथ के इस रिश्ते को इस किताब में लिखा है.
दिव्या दत्ता ने मां को बना लिया था बेटी, नाम लेकर बुलाती थीं
एक महीने में लिखी थी किताब
दिव्या ने बताया कि उन्होंने किताब लिखने के बारे में सोच लिया था और उसका नाम भी तय हो गया था. उसके बाद उन्होंने प्रकाशक से बात की और उन्हें यह लिखने के लिए 6 महीने का वक्त, लेकिन वो पांच महीने में कुछ नहीं लिख पाई और उन्होंने आखिरी के एक महीने में यह किताब लिखी. साथ ही इसमें एडटिंग भी कुछ खास नहीं की गई है.
बचपन में, मैं उनका सहारा थी
उन्होंने बताया, 'मेरी मां एक सरकारी डॉक्टर थीं और उनका ट्रांसफर होता रहता था. उस वक्त वो हर बार सरकारी ऑफिसों में ट्रांसफर रुकवाने के लिए मुझे लेकर घूमती थीं. उस वक्त में उनका सहारा बनती थीं.
'मां ने एक्टर बनने में दिया साथ'
उन्होंने बताया, 'एक बार मैंने स्कूल में बता दिया था कि मुझे एक्टर बनना है तो मुझे पनिशमेंट मिली थी. वो उक्त जब मेरे परिवार में सब डॉक्टर थे तो उन्होंने मुझसे पूछा था कि तुम्हें क्या करना है? उसके बाद जब मैंने एक्टर बनने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरा साथ दिया और हम दोनों मुंबई गए. एक बार मेरे लिए अमेरिका के एक डॉक्टर से शादी का रिश्ता आया था, उस वक्त पूरा परिवार एक तरफ था और मेरी मां ने मेरे एक्टर बनने का समर्थन किया.'
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चेहरा ढककर जनपथ में की थी शॉपिंग
अपनी दिल्ली से जुड़ी यादों के बारे में बताते हुए कहा कि मैं पहले सीपी और करोल बाग बहुत जाती थी. मुझे जनपथ में शॉपिंग करना अच्छा लगता था. एक बार एक्टर बनने के बाद भी मैं चेहरा ढककर जनपथ गई, जहां मैंने शॉपिंग की और बार्गेनिंग भी की. हालांकि एक दुकानदार ने मुझे पहचान लिया था. साथ ही मुझे चाट बहुत पसंद है. मेरे दिल में लुधियाना और दिल्ली दोनों के लिए जगह है.
एक्टर बनने का ख्याल
मैं अमिताभ बच्चन की फैन थी और मैं बच्चों को बुलाकर पार्टी देती थी और उनके सामने डांस करके उन्हें तालियां बजाने के लिए कहती थी. वहीं स्कूल में जब मैंने स्कूल में एक्टर बनने का सपना होने की बात कही तो मुझे सजा मिली थी. लेकिन 10 साल बाद वो ही प्रिंसिपल मेरी तारीफ करते थे. आपको जो लगता है और जो आप करना चाहते हैं, तो उस ख्वाब को जरूर पूरा करना चाहिए. कोशिश जरूर करनी चाहिए.
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