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साहित्य आजतक: कैसी है नए जमाने में 'औरत की कहानी'

साहित्य आजतक 2018 कार्यक्रम का आज दूसरा दिन है. दूसरे दिन की शुरुआत प्रसून जोशी के साथ हुई. दूसरे दिन देश के कई जाने-माने लेखक-कवि इसमें हिस्सा लेंगे.

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'औरत तेरी नई कहानी' सेशन की तस्वीर
'औरत तेरी नई कहानी' सेशन की तस्वीर

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साहित्य आजतक के दूसरे दिन भी कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई. हल्ला बोल मंच पर "औरत तेरी नई कहानी" सेशन में तीन चर्चित लेखिकाओं वंदना राग, डॉ अल्पना मिश्रा और डॉ कौशल पंवार ने हिस्सा लिया. इस सेशन का संचालन सईद अंसारी ने किया.

इस चर्चा के दौरान प्रमुख साहित्यकार वंदना राग ने कहा कि जब औरतें किसी मुद्दे पर लिखना शुरू करेंगी तो समाज के केंद्र में महिला आएंगी क्योंकि जो समाज में बात रखता है वह पहले अपनी ही बात रखता है.

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उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को दिक्कत है कि स्त्रियां आज एक भाषा में क्यों बात कर रही हैं. वंदना ने कहा कि आज गांव में अगर महिला सरपंच है उसके बाद भी सरपंच पति की भूमिका अधिक है.

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'निर्णय लेने की क्षमताओं में आगे बढ़ रही महिलाएं'

'भीतर का वक्त', 'छावनी में बेघर' जैसी किताबें लिखने वालीं अल्पना मिश्र ने यहां कहा कि आज औरत की सिर्फ नई कहानी नहीं है अभी कई पुरानी कहानियां ही खत्म नहीं हुई हैं. हां, हम ये कह सकते हैं कि कुछ नई चीजें जुड़ गई हैं.

उन्होंने कहा कि आज विश्व की कुल संपत्ति का एक प्रतिशत मालिकाना हक महिलाओं के पास है. आज हमारे देश में महिलाओं का ऐसा एक वर्ग है जो निर्णय लेने की क्षमता में आ रहा है.

अल्पना मिश्र बोलीं कि आज भी साहित्य में कुछ लोग ऐसे हैं जो ईमानदारी से नहीं लिख रहे हैं, कुछ आत्मकथाएं भी ऐसी हैं जो नकली लिखी जा रही हैं. पुरुष तो पहले से ही ऐसा करते आ रहे हैं, लेकिन अब कुछ महिलाएं ईमानदारी से परहेज कर लिख रही है.

'औरत को बाजार की तरफ धकेला जा रहा है'

लेखिका और शिक्षिका डॉ. कौशल पंवार ने चर्चा में कहा कि औरत को बाजार की तरफ धकेला जा रहा है. साहित्य की नारी जब समाज को चैलेंज करती है तो लोगों को दिक्कतें होती हैं. उन्होंने कहा कि आज की नारी एक पति नहीं बल्कि साथी चाहती है, उसे एक साथीचाहिए जो उसे बराबरी का हक दे सके. कौशल ने कहा कि आज की नारी दलित-आदिवासी-ओबीसी विमर्श पर भी बात करती है.

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उन्होंने कहा कि जो टीचर डेढ़ लाख की तनख्वाह पाती है उनका एटीएम किसके पास ही होता है. देश में महिलाओं की स्थिति पर उन्होंने कहा कि हम लोग अभी पहनावे-बोलचाल में ही आधुनिक हुए हैं, निर्णय लेने में आगे नहीं बढ़ें हैं.

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