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साहित्य आजतक: लेखकों ने बताया- कहानी में कितना सच, कितनी कल्पना

कहानीकार पंकज सुबीर ने कहा कि कहानी लिखने के लिए अनुभव होना जरूरी है, बिना किसी बीज के कहानी की लिखावट नहीं हो सकती.पंकज ने कहा कि कल्पना इसलिए जरूरी है क्योंकि वो कहानी है. अगर ऐसा नहीं होता तो वो समाचार कहलाएगी.

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सत्र कहानी ऑन डिमांड (फोटो- आजतक)
सत्र कहानी ऑन डिमांड (फोटो- आजतक)

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साहित्य आजतक के तीसरे दिन सीधी बात मंच पर सत्र 'कहानी ऑन डिमांड' में साहित्यकार के मन को टोटलने की कोशिश की गई. इस सत्र में युवा ब्लॉगर प्रत्यक्षा, जानेमाने कथाकार पंकज सुबीर, लेखक प्रवीण कुमार ने हिस्सा लिया. तीनों मेहमानों से जानने की कोशिश की गई कि आखिर रचनाकार क्यों और कब लिखता है साथ ही उसके पात्र कहां से लाए जाते हैं.

इस सत्र का संचालन करते हुए संजय सिन्हा ने कहानी की काल्पनिकता को लेकर सवाल पूछा. इसके जवाब में प्रत्यक्षा ने कहा कि बगैर कल्पना के कोई कहानी मुमकिन नहीं है, उसमें कुछ बातें जीवन की सच्चाई से जुड़ी हो सकती है लेकिन फिर भी उसका ज्यादा बड़ा हिस्सा कल्पनाओं पर आधारित ही होगा. कहानीकार पंकज सुबीर ने कहा कि कहानी लिखने के लिए अनुभव होना जरूरी है, बिना किसी बीज के कहानी की लिखावट नहीं हो सकती.

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पंकज ने कहा कि कल्पना इसलिए जरूरी है क्योंकि वो कहानी है. अगर ऐसा नहीं होता तो वो समाचार कहलाएगी. हमें कहानी लिखने के लिए यथार्थ से कल्पना की ओर जाना पड़ता है. प्रवीण कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने लंबे वक्त तक वो कहानी लिखीं जो उनके अनुभन से नहीं गुजरीं. यथार्थ और तकलीफों को शब्दों में बांधकर ही कहानी लिखी जा सकती है.

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प्रवीण कुमार ने बताया कि हिन्दी के लेखक के लिए पेशे के तौर पर लिखकर जीवन यापन करना मुश्किल है, लेकिन हाल के दिनों में हिन्दी का जगत बदला है. उन्होंने कहा पैसा मिले या न मिले बावजूद इसके लेखक को लेखन बंद नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कहानी के पात्र समाज से ही मिल जाते हैं, लेकिन उसका चरित्र निर्माण करना थोड़ा मुश्किल होता है.

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