लोक से जुड़ा है जीवन और जीवन से जुड़ा है संगीत और साहित्य और किसी भी काल का लोक संगीत और लोक साहित्य का कोई मुकाबला नहीं होता है. साहित्य आज तक के मंच पर डॉ उषाकिरण खान और लीलाधर जगुड़ी ने 'लोक संगीत और साहित्य' विषय पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि किस तरह से लोक गीत की लोकप्रियता कम हो रही है और लोक का असल मतलब क्या है...
इस दौरान डॉ उषाकिरण खान ने कहा कि लोकसंगीत या लोक साहित्य सिर्फ संगीत ही नहीं है, बल्कि संगीत के साथ कथाएं हैं. पहले जिस तरह से अपने दुख-दर्द का प्रचार करते थे, वो ही लोकसंगीत या साहित्य की शुरुआत है. वो लोक संगीत स्त्रियों की मनोभावना है और यह लिपिबद्ध साहित्य से पहले की बात है.
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वहीं लीलाधर जगूड़ी ने कहा, 'लोक कोई अंग्रेजी का Folk नहीं है. अंग्रेजी का फॉक शब्द ग्रामीण अंचल से जुड़े होने के लिए कहा जाता है. हालांकि लोक का विस्तार बहुत ज्यादा है, जैसे पहले कई लोकों की बात की जाती है. उन्होंने बताया कि कोई शब्द ऐसा नहीं, जिसमें संगीत नहीं है और शब्द में जो संगीत होता है, उसमें हम भूल गए हैं. शब्द में निकलने वाला संगीत अलग है और यंत्रों से निकाला हुआ संगीत अलग है.'
लीलाधर जगूड़ी ने यह भी कहा, 'अगर देखा जाए तो कविता का जन्म भी कथा कहने के लिए किया गया है. कहानी कहने के लिए सभी उपाय रचे गए हैं और कहानी को ही सिर्फ कथा साहित्य नहीं कहा जा सकता.
वहीं उषाकिरण ने बताया, 'ज्यादातर प्रेम के गीत पशु-पक्षियों में पुरुष गाता है और एक पुरुष जानवर ही मादा जानवर को आकर्षित करने के लिए गाता है. सिर्फ नर जाति में ही मादा पुरुषों के लिए गीत गाती है. वहीं गाथाएं पुरुषों ने रचित किया है. यह कथाएं चित्रों के माध्यम से भी कही जाती थी और यह लोक से जुड़ने का आधार है.'
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लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि फिल्मी गीत लोक गीतों के आधार पर रचे गए हैं. हालांकि अब लगता है लोक गीत गायब हो गए हैं और अब ग्रामीण फिल्मी धुनों पर लोक गीत बना रहे हैं. यह कई कारणों से हो रहा है. साथ ही उन्होंने कहा कि साहित्य का सरोकार सिर्फ मनुष्यों से ही नहीं बल्कि अन्य प्राणियों के लिए भी है. साथ ही उन्होंने बताया कि सुंदर शब्द सुनर शब्द से बना है. वहीं सौंदर्य के लिए चारु शब्द सबसे पहले इस्तेमाल किया जाता था और अच्छी बाते कहने वालों को चारवाक् कहा जाता था.
लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि साहित्य का सरोकार सिर्फ मनुष्यों से ही नहीं बल्कि अन्य प्राणियों के लिए भी है. उन्होंने कहा कि गीतों में लगातार बदलाव हो रहा है और आगे भी बदलाव आएगा. वहीं उषाकिरण ने कहा कि जब ऐसे कार्यक्रम होते रहे, तो लोगों को यह देखकर लगेगा कि लोक गीतों पर बहस हो रही है तो हमें इसके बारे में सोचना चाहिए. दरअसल अब लोग आधुनिकता को दिखाने के लिए लोकगीत नहीं गाते हैं.