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साहित्य आजतक 2019: 'हिंदी बेहद समृद्ध, किसी बैसाखी की जरूरत नहीं'

साहित्य आजतक 2019 में अच्छी हिंदी बुरी हिंदी पर आयोजित गोष्ठी लेखिका नीलिमा सिंह ने कहा कि मेरा मानना है आज की तारीख में जो हिंदी भाषा पेश की जा रही है वो वर्चुअल हिंदी की नई चाल है. एक जमाना था जब कहा गया कि हिंदी नई चाल में ढली. आज हम यह कह सकते हैं कि हिंदी आज एक नई वर्चुअल चाल में चली.

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साहित्य आजतक 2019: गोष्ठी में शामिल 3 नवोदित लेखक (फोटो-आजतक साहित्य)
साहित्य आजतक 2019: गोष्ठी में शामिल 3 नवोदित लेखक (फोटो-आजतक साहित्य)

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  • आज की हिंदी वर्चुअल हिंदीः नीलिमा सिंह
  • लौंडे शब्द यहीं का है बाहर का नहींः कुशल
  • कोई भाषा बुरी नहीं होतीः शशांक भारतीय

साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' में 'अच्छी हिंदी बुरी हिंदी' पर आयोजित गोष्ठी में यह बात निकलकर सामने आई कि भाषा का स्वरूप बदलते रहना चाहिए. हिंदी बेहद समृद्ध भाषा है और दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में शामिल भी है और इसे किसी की मदद की जरूरत नहीं है.

आज की हिंदी वर्चुअल हिंदीः नीलिमा

'साहित्य आजतक 2019' में 'अच्छी हिंदी बुरी हिंदी' पर चर्चा में शामिल होते हुए नवोदित हिंदी लेखिका नीलिमा सिंह ने कहा कि यह सवाल बहुत अच्छा है इस पर सवाल होते रहने चाहिए. यह बेहद खुशी की बात है कि साहित्य उत्सवों की परंपरा शुरू हुई है. साहित्य के मंच पर हर जगह 2 विषयों को निश्चित तौर पर उठाया जाता है और वो है स्त्री साहित्य और नई उभरती भाषा हिंदी पर. जब हिंदी भाषा में अच्छी या बुरी पर सवाल उठाए जाते हैं तो हम दरअसल हिंदी भाषा की बात कर रहे होते हैं.

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nilima_110119023932.jpgपतनशील पत्नियों के नोट्स की लेखिका नीलिमा सिंह

उन्होंने आगे कहा कि जब किसी भाषा को अच्छा या बुरा कह रहे होते हैं तो यह उसका विशिष्ठ पहलू होता है. जब हम अच्छी या बुरी हिंदी की बात कर रहे होते हैं तो हम किस हिंदी की बात कर रहे होते हैं, वो साहित्यिक हिंदी, अखबारी हिंदी, राजभाषा हिंदी, वैज्ञानिक हिंदी, आधिकारिक हिंदी या फिर न्यायालयिक हिंदी की बात कर रहे हैं. भाषा को अच्छा या बुरा कहते हैं कि यह किसकी दृष्टि से है लेखक की दृष्टि या फिर पाठक की दृष्टि से या समीक्षक की दृष्टि से.

हिंदी को वैसाखी की जरुरत नहींः कुशल सिंह

दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और पतनशील पत्नियों के नोट्स किताब की लेखिका नीलिमा सिंह ने कहा कि मेरा मानना है आज की तारीख में जो हिंदी भाषा पेश की जा रही है वो वर्चुअल हिंदी की नई चाल है. एक जमाना था जब कहा गया कि हिंदी नई चाल में ढली. आज हम यह कह सकते हैं कि हिंदी आज एक नई वर्चुअल चाल में चली.

laundey_110119024010.jpg'लौंडे शेर होते हैं' के लेखक कुशल सिंह

'अच्छी हिंदी बुरी हिंदी' पर नवोदित लेखक कुशल सिंह कहते हैं कि जब इस पर बात होती है तो सबसे पहले यही सवाल उठता है कि एक बुरी हिंदी आ गई और उसने अच्छी हिंदी को मार्केट से बाहर कर दिया है. आज हिंदी ने अपना स्वरुप बदला है. इसको किसी वैशाखी की जरूरत नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि जिस भाषा में दसियों लाख शब्द हों, जिस भाषा को बोलने वाले तकरीबन 49 करोड़ हों, जो दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हो, उसे किसी की मदद की जरुरूत नहीं है. अच्छी हिंदी अंलकारयुक्त, संस्कृतनिष्ट शब्द होती है, और दूसरी हिंदी जिनमें इन बातों का प्रयोग न हो रहा हो, वो शायद खराब हिंदी हो.

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कोई भाषा बुरी नहीं, वो हमारी मां‌: शशांक

'साहित्य आजतक 2019' में 'अच्छी हिंदी बुरी हिंदी' पर एक और नवोदित लेखक शशांक भारतीय का कहना है कि कोई भी भाषा बुरी नहीं होती. वो हमारी मां है और मां बुरी नहीं होती. उनके बेटे यानी लेखक बुरे हो सकते हैं, लेकिन कोई भाषा बुरी नहीं होती. भाषाएं बनाई नहीं जाती, यह बन जाती है. भवानी प्रसाद मिश्रा ने कहा कि जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह से लिख.

dehati_110119024049.jpgदेहाती लड़के के लेखक और इनकम टैक्स इंसपेक्टर शशांक भारतीय

इनकम टैक्स इंसपेक्टर और 'देहाती लड़के' किताब के लेखक शशांक भारतीय ने निदा फाजली की पंक्ति का जिक्र करते हुए आगे कहा, 'मैं अपनी साहित्य की जुबान लाइब्रेरी में नहीं तलाशता. मैं अपनी साहित्य की जुबान तलाशता हूं चौराहों, बाजारों और सड़कों पर.'

उन्होंने कहा कि यह आमजन की भाषा है, यह सब्जी बेचने वालों की भाषा है. भाषाओं पर आक्षेप लगाने वाले नहीं जानते कि बड़ा साहित्य तरकारी खरीदने वाली भाषा में ही लिखा जाता है. यह कोट है फिराक गोरखपुरी का.

'लौंडे शेर होते हैं' के नाम पर विवाद

कुशल सिंह की किताब 'लौंडे शेर होते हैं' के नाम पर गोष्ठी में आए लोगों ने इस नाम पर आपत्ति उठाई. कार्यक्रम में आए लोगों में से एक बुजुर्ग ने इस शब्द पर घोर आपत्ति उठाई. किताब के शीर्षक पर नीलिमा सिंह ने प्रख्यात हिंदी समालोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का जिक्र करते हुए कहा कि 'बोलचाल की भाषा एक स्तर से नीचे उतर कर लेखक उसे बनाता और बिगाड़ता भी है.' लेखक भाषा बनाता ही नहीं है बिगाड़ता भी है. समय के अनुसर भाषा बदलनी चाहिए. अगर वह बदलेगी तो नयापन कहां से आएगी.'

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कहीं बाहर से नहीं आया लौंडा शब्दः कुशल

अलीगढ़ के रहने वाले 'लौंडे शेर होते हैं' के लेखक कुशल सिंह ने अपने किताब के शीर्षक पर हुए विवाद पर कहा, 'लौंडे नाम सुनने में कतई अच्छा नहीं लगता है लेकिन भाषा का स्वरूप लगातार बदलता है. मैं यह शब्द कहीं बाहर से लेकर नहीं आया है. मैं वीजा लेकर इसे लाने बाहर नहीं गया था. यह शब्द यहीं का है.

भाषा के स्वरूप में बदलाव को लेकर कुशल ने कहा कि हजारों साल पहले संस्कृत को लेकर पाणिनी ने नियम तय कर दिए. इसके बाद पाली आई और कई भाषाएं आई. फिर पुरानी हिंदी, नई हिंदी और वर्चुअल हिंदी भी आई. अगर भाषाओं पर ताला लगाएंगे तो इसका विकास नहीं होगा.

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शशांक भारतीय ने कहा कोई भाषा बुरी नहीं होती. भवानी प्रसाद मिश्रा ने कहा था कि जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह से लिख.

कैलाश खेर के गायन से आगाज

साहित्य का सबसे बड़ा महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' का आज शुक्रवार को आगाज हो गया. 3 दिवसीय आयोजन 1 नवंबर से 3 नवंबर तक राजधानी के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में चलेगा. 'साहित्य आजतक 2019 ' के बड़े स्वरूप और भव्यता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल आमंत्रित अतिथियों की संख्या 300 के पार है जिनमें कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय ख्याति की ऐसी शख्सियतें यहां जुट रही हैं कि आपके लिए नाम गिनना मुश्किल होगा, वहीं यह तय कर पाना भी कि आप कहां, किस मंच पर बैठें. जाहिर है तीनों दिन के कार्यक्रमों का आकर्षण आपको यहीं पर रोके रखेगा.

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इस बार साहित्य आजतक में कई और भारतीय भाषाओं के दिग्गज लेखक भी शरीक होंगे जिनमें हिंदी, उर्दू, भोजपुरी, मैथिली, अंग्रेजी के अलावा, राजस्थानी, पंजाबी, ओड़िया, गुजराती, मराठी, छत्तीसगढ़ी जैसी भाषाएं और कई बोलियां शामिल हैं.

साहित्य आजतक की पूरी कवरेज यहां देखें

साहित्य आजतक 2019 की शुरुआत सूफी संगीत के दिग्गज कैलाश खेर के गायन से हुई. इसके बाद कवि अशोक वाजपेयी, निर्मला जैन और गगन गिल हमारे दौर के प्रतिष्ठित आलोचक नामवर सिंह और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका कृष्णा सोबती को याद करेंगे.

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