साहित्यकारों के महाकुंभ साहित्य आजतक के मंच पर पहले दिन शुक्रवार को आयोजित 'रहस्य, रोमांच और रोमांस' सत्र में लेखिका गीता श्री और जयंती रंगनाथन ने महिलाओं से जुड़े बिंदुओं पर खुलकर अपनी बात रखी. इस सत्र के मॉडरेटर थे आज तक के क्राइम हेड शम्स ताहिर खान.
कार्यक्रम में गीता श्री की पुस्तक 'भूत खेला' और जयंती रंगनाथन की पुस्तक 'रूह की प्यास' का विमोचन भी हुआ. विमोचन के बाद वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इन पुस्तकों के नाम से शुरू हुई चर्चा स्त्री पुरुष के संबंध, दैहिक इच्छाओं से होते हुए स्त्री विमर्श तक पहुंच गई. जयंती ने कहा कि गंभीर लेखक का ठप्पा लगा होने के कारण ही उन्होंने ही इस विषय पर लिखने का निर्णय लिया.
उन्होंने कहा कि पश्चिम में तो इस तरह की पुस्तकें पहले भी लिखी जाती रही हैं, लेकिन हिंदी के लेखक इससे बचते रहे हैं. जयंती ने कहा कि लस्ट को लेकर किताबें पढ़ते तो सभी हैं, लेकिन कोई स्वीकार नहीं करता था. अब हिंदी के लेखक और पाठक तेजी से बदल रहे हैं. खुलकर पढ़ना चाहते हैं. आज वर्जनाएं टूट रही हैं. आज लड़कियां भी इस विषय पर खुलकर बात करने लगी हैं.
उन्होंने कहा कि जितना खुलकर आज इस विषय पर बात हो रही है, उतना पहले कभी नहीं होती थी. इस पर अश्लीलता का ठप्पा लग गया. जयंती ने कहा कि अश्लील बनने से रोकने का चैलेंज लेकर इस विषय पर लिखा.
हिंदी साहित्य के सामने खुलकर लिखने की चुनौती
जयंती ने कहा कि हम सेक्स पर पर्दा डालकर क्यों बात करें. हिंदी साहित्य के सामने इसे खुलकर लिखने की चुनौती है. उन्होंने कहा कि मुंबई में काम करते हुए मैंने गे, बाईसेक्सुअल और लिव इन में रह रहे लोगों को करीब से देखा है. जयंती ने अपनी पुस्तक के कथानक की चर्चा करते हुए कहा कि मेरा भूत प्यार का मारा है. मैं भूत पर यकीन करती हूं. उन्होंने कहा कि जीवन से पहले एक प्रश्न-चिन्ह, मौत के बाद एक सवाल है. भूत अच्छे बुरे नहीं, वे वो करना चाहते हैं, जो उनके दिल में है. सबकुछ खुलकर करना चाहते हैं.
गीता ने की सेक्स एजुकेशन की वकालत
गीता श्री ने सेक्स एजुकेशन की वकालत करते हुए कहा कि आज नेटफ्लिक्स, अमेजन से बदलाव आया है. सेक्स को लेकर लड़कियां डिबेट कर रही हैं. युवा लड़कियां भी यह कह रही हैं कि यह जरूरी है. उन्होंने कहा कि जब लोग सेक्सी कॉम्प्लीमेंट स्वीकार कर रहे हैं, तो कहानी क्यों नहीं. गीता ने कहा कि पुरुष कहानी लिखें और नैन-नक्श के वर्णन करें तो बहुत अच्छा, लेकिन स्त्रियां लिख दें तो बहुत बुरा. जैसे साहित्य नहीं अस्तबल हो गया हो कि खदेड़ दीजिए. उन्होंने कहा कि 10 साल पहले जयंती की कहानी में सेक्स ट्वायज का जिक्र पहली बार देखा था. पुरुष सेक्स सर्वे पढ़ते हैं, यह पढ़ते हैं कि औरतों को क्या चाहिए, लेकिन उनके अग्रेशन से डरते हैं.
शब्दकोश से हटे चुड़ैल और डायन
गीता श्री ने चुड़ैल और डायन शब्द को शब्दकोश से हटाने की वकालत करते हुए कहा कि पितृ सत्तात्मक समाज ने स्त्री की देह गाली दी, आत्मा को डैमेज करने के लिए इन शब्दों का उपयोग शुरू किया.