साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' में 'मनोरंजन और साहित्य' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रख्यात लेखिका और प्रिंसिपल डॉक्टर रमा ने कहा कि साहित्य की भाषा हो या मनोरंजन की, दोनों ही जगह भाषा गरिमामयी होनी चाहिए और किसी की भावना को ठेस पहुंचाने वाली नहीं होनी चाहिए. भाषा में होने वाली त्रुटियों के प्रति लापरवाही खतरनाक है.
मनोरंजन-साहित्य एक-दूसरे के पूरकः संदीप
सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता तथा लेखक संदीप भूतोरिया ने कहा कि मनोरंजन और साहित्य का आपस में गहरा संबंध है. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. मनोरंजन का पहला माध्यम फिल्म है. हिंदी फिल्मों में साहित्य का अहम रोल रहा है. पहली हिंदी फिल्म राजा हरिशचंद्र थी. उन्होंने आगे कहा कि मनोरंजन का स्वरूप साहित्य से जुड़ा हुआ है. यह पता करना आसान नहीं है कि कौन सा स्वरूप मनोरंजन को प्रभावित करता है और मनोरंजन किस स्वरूप से प्रभावित होता है.
संदीप भूतोरिया का कहना है कि बुहत से लोग ऐसे हैं जिन्हें साहित्य के बारे में कोई जानकारी नहीं होती. उनके लिए ही साहित्य को सिनेमा के जरिए मनोरंजन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.
भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाए भाषाः डॉक्टर रमा
सिनेमा में साहित्यिक भाषा की गरिमा पर लेखिका और दिल्ली के हंसराज कॉलेज की प्रिंसिपल डॉक्टर रमा ने कहा कि साहित्य की भाषा हो या मनोरंजन की, दोनों ही जगह भाषा गरिमामयी होनी चाहिए. भाषा ऐसी होनी चाहिए जो किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए, सुनने में भद्दी न लगे, किसी का मजाक न उड़ाए और दूसरों का सम्मान करे.
उन्होंने कहा कि भाषा के प्रयोग के प्रति जो सावधानी रखनी चाहिए वो अब नहीं रखी जा रही. इसका असर यह पड़ रहा कि युवा पीढ़ी इसके प्रति लापरवाह होती जा रही है, जो बहुत ही खतरनाक है.
आज हम संस्कार नहीं दे रहेः रमा
लेखिका रमा ने दो पीढ़ियों के बीच व्यवहार के अंतर पर कहा कि आज अगर हम युवा पीढ़ी को संस्कार नहीं दे पा रहे तो यह युवा पीढ़ी की गलती नहीं है. युवा पीढ़ी घर में जिस तरह का माहौल देखती है, व्यवहार करती है उसी को आगे बढ़ाती है. अगर हम अपनी पीढ़ी पर नजर डालें तो उस दौर में हर चीजों पर बेहद ध्यान दिया जाता था. तब हमें बोलना, पढ़ना और लिखना सिखाया जाता था.
आज की पीढ़ी के बारे में उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी तेज गति वाली है. वह तेज गति से आगे बढ़ रही है और कई चीजें पीछे छूटती जा रही ही रही है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाषा की अपनी एक गरिमा होती है और हमें इसे संभालना चाहिए.
त्रुटियां की जगह संवाद जरूरीः संदीप
लेखक संदीप भूतोरिया ने कहा कि भाषा में त्रुटियां हो सकती है, लेकिन भाषा का मकसद संवाद करना है. कई देश ऐसे हैं जहां अंग्रेजी नहीं समझी जाती, ऐसी जगहों पर हम आपस में संवाद स्थापित करते ही हैं. संवाद स्थापित करना जरुरी है. भारत में ही कई जगह हिंदी नहीं समझी जाती तो भी हम संवाद स्थापित करते ही हैं. त्रुटियों पर ध्यान देने की जगह संवाद बेहद अहम होता है.
भाषा में व्याकरण की त्रुटियों पर प्रिंसिपल डॉक्टर रमा ने कहा कि कई भाषाएं ऐसी हैं जहां व्याकरण के नियमों का पालन किया जाना चाहिए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है. अगर सिर्फ संदेश देने की बात है तो गलत भाषा लिखकर संदेश देना गलत है.
साहित्यिक भाषा कैसी हो, इस पर रमा ने कहा कि साहित्यिक भाषा कठिन होती है. आम भाषा भी साहित्यिक भाषा हो सकती है. भारी-भरकम भाषा का इस्तेमाल लेखक अपनी विद्वता दिखाने के लिए करते हैं, लेकिन आम शब्दों का इस्तेमाल कर साहित्यिक रचना की जा सकती है.
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अशुद्ध भाषा के इस्तेमाल पर रमा ने कहा कि सब चलता है के नाम पर अशुद्ध भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. हम क्यों चलताऊ भाषा का इस्तेमाल करने लगे हैं.
साहित्य पर कई सिनेमा बनेः संदीप
फिल्मों में साहित्य की स्थिति पर संदीप भूतेरिया ने कहा कि हिंदी और क्षेत्रीय फिल्मों में साहित्य का अहम योगदान रहा है और ढेरों फिल्में साहित्य पर बन चुकी हैं. देवदास पर हर भाषा में फिल्म बनी है. इसे लिखने वाला एक ही लेखक था, लेकिन कई बड़े एक्टरों ने इस विषय पर काम किया. हिंदी सिनेमा में 4 बड़े एक्टरों ने अलग-अलग दौर में देवदास फिल्म पर काम किया.
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फिल्मों और साहित्य पर रमा ने कहा कि एक ही घटना को लेकर अलग-अलग समय पर जो फिल्म बनी हैं जो उसका समय अलग-अलग था.
फिल्मकारों ने बदली सोचः डॉक्टर रमा
सिनेमा में साहित्य के इस्तेमाल की कमी पर रमा ने कहा कि आज के दौर में बाजारवाद हावी है और इसके चक्कर में सिनेमा से साहित्य दूर होता जा रहा है.
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सिनेमा में जो दिखाया जा रहा है क्या उसे समाज का आईना माना जाना चाहिए, इस पर रमा ने कहा कि नहीं, हम इसे समाज का आईना नहीं मानते. सिनेमा की शुरुआत मनोरंजन के लिए की गई थी. एक दौर था जब हम साथ में परिवार के साथ टीवी देखते थे. साथ में फिल्म देखते थे, लेकिन एक दौर आया जब हम साथ में फिल्म नहीं देश सकते. इसके बाद फिल्मकारों को लगा कि लोगों को साथ दिखाने के लिए अच्छी फिल्म बनाई जानी चाहिए तो 3 इडियट्स जैसी फिल्में भी आई.
साहित्य का तोहफा हमारी तरफ से आपके लिएः कली पुरी
इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने 'साहित्य आजतक 2019' के उद्घाटन संबोधन में सभी साहित्यकारों, संगीतज्ञों, कलाकारों का स्वागत करते हुए कहा कि आप सबका साहित्य आजतक का चौथा संस्करण आ गया है. लेकिन ऐसा लगता है अभी इस कार्यक्रम को शुरू हुए एक साल ही हुआ है. इस साल चुनाव हो रहे थे और पता नहीं चला कि साल कब बीत गया. अच्छी बात है कि हमारी और आपकी ये साहित्य की विशेष तारीख जल्दी आ गई.
उन्होंने आगे कहा कि चुनावी साल एक चैनल के लिए बहुत जरूरी होता है. जिसे कहते हैं मेक या ब्रेक ईयर. हमारा ओलंपिक्स. आपके सहयोग और हौसले के साथ हमारी पूरी टीम गोल्ड मेडल ही गोल्ड मेडल लेकर आई है. एग्जिट पोल हो या प्रधानमंत्री का इंटरव्यू या ग्राउंड रिपोर्ट, कुछ भी कसर नहीं छोड़ी. पूरी टीम ने जान लगाकर काम किया. और आपने हमारे काम को जम कर पसंद किया.
इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने कहा कि साहित्य का ये तोहफा हमारी तरफ से आपके लिए इस साल और भी शानदार है. इस साल हमने पूरा ग्राउंड ही ले लिया. अब तीन दिन, सात मंचों से 200 हस्तियों के साथ ये सुहाना सफर चलेगा. लगातार कविताएं, शेर, शायरी, कहानी, संगीत, नाटक, मुशायरा, भारत के हर कोने से आपको देखने को मिलेगा. ये एक जश्न है हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा और हमारी कला का.
तीन दिवसीय साहित्य आजतक
साहित्य का सबसे बड़ा महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' का आज शुक्रवार को आगाज हो गया. 3 दिवसीय आयोजन 1 नवंबर से 3 नवंबर तक राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में चलेगा.
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'साहित्य आजतक 2019' के बड़े स्वरूप और भव्यता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल आमंत्रित अतिथियों की संख्या 300 के पार है जिनमें कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय ख्याति की ऐसी शख्सियतें यहां जुट रही हैं कि आपके लिए नाम गिनना मुश्किल होगा.
इस बार साहित्य आजतक में कई और भारतीय भाषाओं के दिग्गज लेखक भी शरीक होंगे जिनमें हिंदी, उर्दू, भोजपुरी, मैथिली, अंग्रेजी के अलावा, राजस्थानी, पंजाबी, ओड़िया, गुजराती, मराठी, छत्तीसगढ़ी जैसी भाषाएं और कई बोलियां शामिल हैं.
'साहित्य आजतक 2019' की शुरुआत सूफी संगीत के दिग्गज कैलाश खेर के गायन से हुई. इसके बाद कवि अशोक वाजपेयी, निर्मला जैन और गगन गिल हमारे दौर के प्रतिष्ठित आलोचक नामवर सिंह और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका कृष्णा सोबती को याद किया.