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'बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी नहीं है रामायण', पौराणिक कथाकार आनंद नीलकंठन ने कही ये बात

दिल्ली में साहित्य का सबसे बड़ा मेला चल रहा है. साहित्य आजतक के तीन दिन के कार्यक्रम में सिनेमा, संगीत, सियासत, संस्कृति और थिएटर से जुड़े जाने-माने चेहरे हिस्सा ले रहे हैं. कार्यक्रम में जाने-माने लेखक आनंद नीलकंठन (Anand Neelakanthan) ने भी शिरकत की और पौराणिक कथा लेखन के बारे में अपने विचार साझा किए.

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आनंद नीलकंठन, लेखक
आनंद नीलकंठन, लेखक

शब्द-सुरों के महाकुंभ, साहित्य आज का आज तीसरा और आखिरी दिन है. दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में हो रहे इस कार्यक्रम में कई मंच हैं, जहां साहित्य पर चर्चा भी हो रही है और संगीत के सुर भी महक रहे हैं. साहित्य के इस मंच पर 'सुर-असुर' सेशन में जाने-माने लेखक आनंद नीलकंठन (Anand Neelakanthan) ने भी शिरकत की.

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आनंद नीलकंठन को पौराणिक कथाएं लिखने के लिए जाना जाता है. उन्होंने पिछले 10 सालों में 11 किताबें लिखी हैं. उन्होंने असुर नाम की एक किताब लिखी थी, जो बहुत लोकप्रिय हुई है. उन्होंने The Rise of Sivagami किताब लिखी जिसपर बाहुबली फिल्म बनी. आनंद नीलकंठन इंजीनियरिंग छोड़कर लेखक बने. पिछले 10 सालों से वे लेखक के तौर पर सक्रिय हैं. आनंद नीलकंठन से सवाल-जवाब किए आज तक की वरिष्ठ पत्रकार श्वेता सिंह ने.

'लिखने से कोई अंबानी नहीं बनता'

उन्होंने कहा- 'लिखना मेरा पैशन हैं और मैं लिखने का पैसा भी लेता हूं.' श्वेता सिंह ने उनसे सवाल किया कि क्या फिल्म के लेखकों को भी सुपर स्टार जैसी कीमत मिलती है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि लिखने से कोई अंबानी नहीं बनता. उन्होंने कहा कि पिछली कंपनी में जितना पैसा मिल रहा था, लेखनमें उससे ज्यादा मिल रहा है, इसलिए मैं इस फील्ड में आ गया. उन्होंने कहा कि पहली बार जब मलयालम में एक शॉर्ट स्टोरी लिखी थी, जिसके लिए उन्हें 100 रुपए मिले थे.

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उन्होंने कहा कि अब प्रोफेशनल राइटिंग में भी पैसा है. लिखने से पैसा नहीं, संतुष्टि मिलती है. लेकिन संतुष्टि से घर नहीं चला सकते. घर चलाने के लिए पैसा चाहिए और पैसा आपको फिल्म या ओटीटी प्लैटफॉर्म से मिलता है. यहां काम करके सेटिस्फेक्शन कम मिलता है, क्योंकि ये कमर्शियल है.

Anand Neelakanthan
मंच पर लेखक आनंद नीलकंठन और पत्रकार श्वेता सिंह

आप पौराणिक ग्रंथ पर क्यों लिखते हैं?

इस सवाल पर आनंद नीलकंठन ने कहा कि मुझे ये कंफर्टेबल लगता है, ये मेरा पैशन है, इसीलिए मैं लिखता हूं. मैंने जब लिखना शुरू किया तो चेतन भगत का जमाना था, वे हाफ गर्लफ्रेंड लिख रहे थे. और मैंने हनुमान जी पर लिखा, रावण पर लिखा.

'रामायण तो बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी ही नहीं है'

आनंद नीलकंठन की कहानियों के असुर भी बुरे नहीं दिखाए जाते. इस पर उन्होंने कहा कि राम के दृष्टिकोण से, अर्जुन के दृष्टिकोण से आपने बहुत कहानियां सुनी हैं, लेकिन हमारी लोककथाओं में ऐसी बहुत सी कहानियां हैं. 300 से ज्यादा रामायण हैं, 1000 से ज्यादा महाभारत हैं और हमारे देश में रावण के मंदिर हैं, दुर्योधन के बड़े-बड़े मंदिर हैं. इनके लिए बड़े-बड़े त्योहार भी मनाए जाते हैं. ये हमारे भारत की महानता है कि कोई भी एकदम बुरा या अच्छा नहीं होता. रामायण तो बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी ही नहीं है, ये तो हमने बना दी. महाभारत की कहानी भी ऐसी नहीं है, जिसे हमने पढ़ा है. हमारी संस्कृति में एकदम बुरा और एकदम अच्छे का कॉन्सेप्ट ही नहीं है. उन्होंने कहा कि ये कॉन्सेप्ट अब्राहमिक धर्म के प्रभाव की वजह से आया. दो विचारधाराएं अहम हैं- एक अब्राहमिक और एक एशियन. एशियन कर्म पर आधारित हैं और बाकी देवत्व पर- वहां ईश्वर है और एक शैतान भी है. स्वर्ग है तो नर्क भी है. वहां अच्छा और बुरा है. 

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'कला में हमेशा कंडिशन और लिमिटेशन होनी चाहिए'

उन्होंन कहा कि वे लिखने काम सुबह 4 बजे शुरू करते हैं, जब शांति होती है, कोई डिस्टर्बेंस नहीं होती. 2 बजे तक वे काम से फ्री हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी कला में अच्छा होने के लिए आपके पास हमेशा कंडिशन और लिमिटेशन होनी चाहिए. फ्री आर्ट जैसा कुछ नहीं होता, वो कभी खत्म नहीं होगा. एक डेडलाइन चाहिए होती है.

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