दो साल बाद शब्द-सुरों का महाकुंभ साहित्य आजतक एक बार फिर लौट आया है. साहित्य का ये मेला तीन दिन का है, जो 18 से 20 नवंबर तक दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में लगा हुआ है. इस कार्यक्रम में सिनेमा, संगीत, सियासत, संस्कृति और थिएटर से जुड़े जाने-माने चेहरे हिस्सा ले रहे हैं.
साहित्य आजतक के मंच पर शिरकत की लेखक अश्विन सांघी (Ashwin Sanghi) ने. The Rozabal Line और Chanakya's Chant And The Krishna Key नाम पुस्तकों के लेखक हैं. History, Thrill & Faith नाम के कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार अंजना ओम कश्यप ने उनसे सवाल किए और उन्होंने लिब्रलिज्म और धर्म पर अपने विचार साझा किए.
लिब्रलिज़्म क्या है?
उनसे सवाल किया गया कि लिब्रलिज़्म क्या है? आपकी नजर में लिबरल कौन हैं? सवाल का जवाब देते हुए अश्विन सांघी ने कहा कि अगर लिब्रलिज़्म की परिभाषा ढूंढे, तो बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, सनातन धर्म इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. उन्होंने कहा कि हम 300 अलग-अलग तरीकों से रामायण प्रस्तुत कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मेरा रामायण सही है, आपका नहीं. हर एक ने इस कहानी पर अपना-अपना रूप छोड़ा है. अगर आप लिब्रलिज़्म की बात करते हैं, तो हम ये एक्सेप्ट करने को तैयार हैं कि कोई भी रास्ता सही है, हर रास्ता सच्चाई की तरफ लेकर जाता है.
लिखने के शौकीनों के लिए सुझाव
अश्विन सांघी ने आजकल लिखने का शौक रखने वालों को लिखने के लिए कई सुझाव दिए. उन्होंने कहा कि जो कुछ भी आप लिखना चाहते हैं, लिखना शुरू करो. परवाह मत करो कि लोग क्या कहेंगे. खुद की आवाज ढूंढो, इंस्पायर हो जाने में कोई हर्ज नहीं है. अपनी इनकम बंद मत कीजिए, इनकम बंद हो जाएगी तो लिखना भी बंद हो जाएगा. सक्सेस मिल जाए तो, कदम ज़मीन पर रखें.
आज के सनातन धर्मी लिबरल होना चाहते हैं, लेकिन
उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में ज्यादा से ज्यादा लोग लिबरल सोच को त्याग रहे हैं. इसपर उन्होंने कहा कि अगर मैं अपने ईश्वर की पूजा करने को तैयार हूं, और मैं ये भी मानता हूं कि तुम्हारा रस्ता भी सही है. लेकिन जब आप मुझसे कहते है कि मैं तुम्हारा रस्ता मानने को तैयार नहीं, तो आप इललिबरल हो गए. आज के सनातन धर्मी लिबरल होना चाहते हैं, लेकिन वे चाहते हैं कि बाकी लोग भी तो लिबरल हों.
सिर्फ़ हिंदू इतिहास को ही काल्पनिक क्यों कहा जाता है?
उनसे वहां उपस्थित लोगों ने भी सवाल किए. पूछा गया कि सिर्फ हिंदू इतिहास को काल्पनिक क्यों कहा जाता है उसका सबूत मांगा जाता है, किसी और धर्म में नहीं. इसपर उन्होंने कहा कि जब भी हम रामायण या महाभारत का जिक्र करते हैं तो उसे मायथलॉजी नहीं कहते, इतिहास कहते हैं. अंग्रेजों ने ये मायथलॉजी शब्द दिया है. अगर हमारे ग्रंथों पर रिसर्च हो, तो और भी सच्चाई सामने आएगी. लेकिन कमी हमारी ही है, प्रयास हमने नहीं किए हैं.
ईश निंदा (Blasphemy) पर अश्विन सांघवी ने कहा कि संस्कृत में ये शब्द ही नहीं है. हम उदार बनें लेकिन हम दूसरों से भी उदारता की अपेक्षा करें. भारत में भी लॉन्ग टर्म प्रोग्रेस तभी हो सकता है जब हम इसे इतना आसान कर दें कि अगर मैं या आप कुछ कहना चाहते हैं तो निडर होकर कह सकें. ये नहीं हो सकता कि सिर्फ हिंदू धर्म ने ही ठेका लिया हो कि हम उदार हैं, सभी धर्मों को उदार बनना पड़ेगा.