शब्द-सुरों के महाकुंभ, साहित्य आज का आज दूसरा दिन है. साहित्य का ये मेला तीन दिन का है, जो 18 से 20 नवंबर तक दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में लगा हुआ है. कार्यक्रम में 'तुम मुझे यूं भुला न पाओगे' नाम के सेशन में सितारों पर किताब लिखने वाले लेखकों को आमंत्रित किया गया.
इस कार्यक्रम में फैज़ल फरूकी (Faisal farooqi) और सत्य व्यास (Satya Vyas) शामिल थे. फैज़ल फरूकी ने दिलीप कुमार के साथ 30 साल गुजारे हैं और उनपर किताब लिखी, जबकि सत्य व्यास ने मीना कुमारी पर किताब लिखी है. इन दोनों लेखकों से सवाल जवाब कर रहे थे स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट विक्रांत.
मीना कुमारी को ट्रैजिडी क्वीन क्यों कहा जाता है?
सत्य व्यास से सवाल किया गया कि मीना कुमारी को ट्रैजिडी क्वीन क्यों कहा जाता है. उन्होंने कहा कि मीना कुमारी का जिस दिन जन्म हुआ था उसी दिन से उनके जीवन में ट्रैजिडी शुरू हो गई थी. वो अपने घर की दूसरी बेटी थीं. बड़ी बहन इनसे 5 साल बड़ी थीं. पिता बेटा चाहते थे. मीना कुमारी के जन्म के बाद, पिता बहुत दुखी हुए. उन्होंने पैदा होते ही उन्हें दादर के एक अनाथालय में रख दिया. जब मां को होश आया, तो उन्होंने पूछा कि बच्ची कहां है? तो पिता अली बख्श ने कहा कि मैं दो बेटियां नहीं पाल सकता, इसलिए मैं उसे छोड़ आया. मां मीना कुमारी को वहां से ले आईं, और जब वे वहां से उन्हें लाईं तो बच्ची के बदन पर लाल चीटियां लगी हुई थीं.
बड़े होने पर जब मीना जी ने अपनी मां से सवाल किया कि मेरे होने के बाद भी बेटी ही आई, फिर अनाथालय की सीड़ियां मेरे लिए ही क्यों चुनी गईं. उन्हें ये बात घर कर गई थी कि वे अनचाही औलाद थीं. इस घटना ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे हंसना भूल गई थीं. उनके बचपन में जो गुजरा वही दुख उनकी फल्मों में दिखता है.
दिलीप कुमार को ट्रैजिडी किंग क्यों कहा जाता है?
दिलाप कुमार की जिंदगी पर फैज़ल फरूकी ने कहा कि दिलीप कुमार से ये सीखा कि एक अच्छा इंसान कैसे बना जाए. वे फिल्मों के बारे में बहुत कम बात करते थे. उन्होंने ट्रैजिडी किंग का टाइटल मिला था, जिसकी वजह उन्होंने बताई. उन्होंने बचपन से ही बहुत दुखे देखे थे. 1930 में जब वे 8 साल के थे तब उन्होंने पेशावर अटैक देखा था. वहां खान अब्दुल गफ्फार खान के साथ आंदोलन कर रहे लोगों को मार दिया गया था, उन्होंने ये सब देखा था. वे इससे बाहर नहीं निकल पा रहे थे. गम का माहौल उनके जेहन में बस गया था. जब उन्हें पता चला कि वे बॉम्बे जाएंगे, तब वे इस सदमे से बाहर आए. उन्होंने बॉम्बे आने के बाद, बहुत स्ट्रगल किया था.
'सायरा बानो और दिलीप कुमार जैसा इश्क कहीं नहीं दिखा'
सायरा बानो ने दिलीप कुमार का कभी साथ नहीं छोड़ा. इसपर फैज़ल फरूकी ने कहा कि उन्होंने सायरा जी से अपने और दिलीप साहब पर एक किताब लिखने की बात कही थी. तब सायरा जी ने कहा- 'मुझे नहीं लगता कि इसपर कोई किताब लिखने की ज़रूरत है. मैंने जबसे होश संभाला मैंने दिलीप कुमार से ही प्यार किया. मैं 12 साल की थी और ओढ़नी लेकर शीशे के सामने बैठकर अपनी मां से कहती थी कि क्या मैं दिलीप कुमार की दुल्हन लग रही हूं या नहीं.' फैज़ल फरूकी ने बताया कि सायरा जी ने दिलीप साहब का इतना ख्याल रखा कि कोई अपने मां-बाप का नहीं रख सकता.
कार्यक्रम के अंत में सत्य व्यास ने अपनी पुस्तक 'मीना मेरे आगे' का विमोचन भी किया.