शब्द-सुरों के महाकुंभ, साहित्य आज का आज तीसरा और आखिरी दिन है. दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में हो रहे इस कार्यक्रम में कई मंच हैं, जहां साहित्य पर चर्चा भी हो रही है और संगीत के सुर भी महक रहे हैं. साहित्य के इस मंच पर 'नई वाली बात' सेशन में जाने-माने लेखकों और अनुवादकों ने शिरकत की.
प्रत्यक्षा सिन्हा (Pratyaksha Sinha), विजय श्री तनवीर (Vijay Shree Tanveer) और प्रभात रंजन (Prabhat Ranjan) ने कार्यक्रम का हिस्सा बने. उनसे बातचीत की आजतक की पत्रकार चित्रा त्रिपाठी ने.
'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' की लेखिका विजय श्री तनवीर ने कहा कि ये किताब 2019 की बेस्टसेलर थी. बहुत से लोगों ने सवाल उठाए कि चौथा क्या है. चौथा शब्द तो प्यार की शुचिता को खत्म कर रहा है. क्योंकि कहा जाता है प्यार बार-बार नहीं होता, एक ही बार होता है. मेरा मानना है कि जब तक आपको कोई पूरक व्यक्ति नहीं मिलता, तो प्यार बार-बार भी हो सकता है. इसपर बहुत लोगों ने सवाल उठाए. चौथा प्यार नहीं होना चाहिए वगैरह-वगैरह. इस किरदार को जो प्यार हुए, वो अलग-अलग पड़ाव पर हुए. हमारा आधा हिस्सा कहीं और होता है और हम आधे को लिए फिर रहे होते हैं. जिस दिन वो आधा हिस्सा पूरा हो जाता है, प्यार भी पूरा हो जाता है. तो अनुपमा गांगुली की कहानी यही कहती है.
'पारा-पारा स्त्री' उपन्यास की लेखक प्रत्यक्षा सिन्हा ने अपनी किताब के बारे में बताया. उनके लिए साहित्य क्या है, इसपर उन्होंने कहा कि उपने समय समाज के परिपेक्ष्य में हम चीजों को कैसे देखते हैं, उस नजरिए को जब हम कागज के पन्नों पर उतारके हैं तो साहित्य मेरे लिए वही इनर डायलॉग है.
प्रभात रंजन ने अपनी पुस्तक XYZ और कोठागोई के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि कोठागोई भी स्त्री विमर्श की किताब है. उन्होंने कहा कि जब मैंने लिखना सीखा था, तो यही सीखा कि उस विषय पर लिखना चाहिए जो हाशिए पर है. चमक-दमक से दूर का तबका है, उसपर लिखना चाहिए. इसलिए उन्होंने तवायफों के बारे में लिखना चाहा. उन्हें समझने और जानने के लिए, वे 5-6 साल तवायफों के बीच जाते रहे. उन्होंने कहा कि तवायफों का 150 साल का इतिहास उन्होंने ट्रेस किया. उन्होंने बताया कि हमें यही बताया गया कि वह दुनिया बहुत बुरी होती है, वहां नहीं जाना चाहिए. लेकिन जब मैं उनसे मिला, तो मेरे सभी भ्रम दूर हो गए. ये शायद सबसे ईमानदार इंसान हैं जो अपने पेशे को लेकर ईमानदार हैं. उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा. उन्होंने कहा कि संगीत की धरोहर उन्हीं में सुरक्षित है. ऐसी धरोहरों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए.
पहले के साहित्य और आज के साहित्य में क्या फर्क है?
पहले के साहित्य और आज के साहित्य में क्या फर्क है, इसपर प्रत्यक्षा सिन्हा ने कहा कि 1900 के दशक से अब हमारी दुनिया में जमीन आसमान का फर्क आ गया है. हम जो अभी लिख रहे हैं, नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, हम कंप्यूटर पर लिख रहे हैं. पुराने कोई लेखक अगर अब आ जाएं तो घबरा जाएंगे. हम ईमेल, चैट पर लिख रहे हैं. कलम से लिखने का रुमान है. हमारी दुनिया अब बदल गई है.