साहित्य, कला, सिनेमा, संगीत, थिएटर, राजनीति और संस्कृति से जुड़े दिग्गज को साहित्य आजतक के महामंच ने एक साथ सुनने का मौका दिया है. साहित्य के इस महाकुंभ में कई दिग्गजों ने शिरकत की. भारत के कवियों में बुद्धिनाथ मिश्रा, विष्णु सक्सेना, अनामिका जैन अंबर, सोनरूपा विशाल, पंकज शर्मा और मालविका ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया.
साहित्य आजतक 'प्रेम रंग बरसे' कार्यक्रम की शरुआत अनुभवी कवि बुद्धिनाथ मिश्रा ने अपनी प्रेम से भरी कविता से की. उनकी कविताओं में प्यार का सार दिखा. उनकी कविता जिसे चाहा नबीं तुमने कभी वह चैन पाया क्या, ये सांसे तेज चलती हैं 'चांद ऊगे चले आना पिया कोई जाने ना' और मैं बादल हूं को बड़े ही शायराना अंदाज में गाया. उनकी कविताओं ने माहौल को खुशनुमा बना दिया. वहीं, उनकी कविता 'दर्द की मिठी थाप पर मरता, आंसूओं के मिलाप पर मरता, ऐसा लगता है मैं मरूंगा नहीं, मरना होता तो आप पर मरता' को दर्शकों ने खूब सराहा.
विष्णु सक्सेना की अपनी एक अलग लेखनी है जिसे उनके कविता में आसानी से समझा जा सकता है. उन्होंने 'हम क्यूं बहक रहें, रातें सुलग रहीं हैं' कविता सुनाई, जो आशिकी से भरी थी और वाह वाह की गूंज महफिल में छा गई. वहीं मालविका जी ने रंग नेह का ओढ़कर देखा जब संसार किवता, दिवानों की बात न करिए कविता सुनाई. उनकी कविता- 'कभी की इनकार की बातें, कभी इकरार की बातें' कविता लोगों को खूब पंसद आई.
अनामिका ने 'अपनाकर अपनेपन को अपनापन अक्सर देते हैं, खुद को मरहम कर लेते हैं और और जख्म सभी भर देते हैं. हिम्मत के धागे टूटे तो उसके पास चले जाना, दोस्त हौसलों के दर्जी है मुफ्त रफू कर देते हैं.' उन्होने श्रृगांर रस पर कविताएं सुनाई...'मेरे हमदम मेरे दिलबर मेरे हमराज सुन लेना, सनम धड़कन सुनाती जो दिलों के साज सुन लेना, मुहब्ब्त मे इजाज़त हो तो मैं दिल की बात कह दूं, तुम्हें जब पुकारुं मैं मेरी आवाज सुन लेना. इन्होंने हिन्दुस्तानी महिलाओं के प्रेम करने तरीकों पर भी कविता सुनाई. जो प्रेम से सरावोर थी, जो कान तक नहीं पहुंचे वही अल्फाज मत होना, जिसे दिल नहीं जान पाए वही राज मत हो जाना, मुझे तुम कुछ भी कह देना, मगर मुझसे नराज मत होना.
बीच- बीच में कवियों और कवियित्रि बुद्धिनाथ और अनामिका के बीच एक प्यार भरा मजाक चलता रहा और कविताओं का सिलसिला जारी रहा.
पंकज शर्मा ने दर्शकों की मांग पर कविता सुनाई. 'फकिरी जिंदगानी है, फकत इतनी कहानी है, जिसे दरिया समझते हो, मेरी आंखो का पानी है' गाकर समां बांध दिया. उनकी कविता 'चौमासे की भीगी रातें और हमारी बातें, छत पर चंदा बाहों मे हम सुलगी सुलगी सांसे, बूदों से आकाश घिरा हो झिलझिलमि जुगनु चमके' सुनाई. कार्यक्रम के अंत में पंकज ने जोगी बन जाउंगा मैं धुनी रमाउंगा, तेरे नाम का चंदन मै घिस-घिस कर लगांउगा, तु रूठी रही मुझसे, मैं तुझे मनाउंगा, तेरे नाम के गीत मैं गाऊंगा.
सोनरूपा ने दर्द का आकलन नहीं होता इसमें कोई चयन नहीं होता है, प्यार में डूबना ही पड़ता है, प्यार में आचमन नहीं होता ...कि तितलियों ने रंग दिए मुझे और चिड़ियां चहक दे गईं, प्यार की चंद घड़ियां मुझे फूल जैसी महक दे गईं,
विष्णु सक्सेना ने 'चांदनी रात में रंग ले हाथ में, जिंदगी को नया मोड़ दे, तुम हमारी कसम तोड़ दो हम तुम्हारी कसम तोड़ दें, प्यार की होड़ में दौड़ कर देखिए, झूठे बंधन सभी तोड़ देखिए, श्यामरंग में मीरा जो चुनर रंगी वही चुनर जरा ओढ़ कर देखिए, तुम अगर साथ दो हाथ में हाथ दो सारी दुनिया को हम छ़ोड़ दें से कार्यक्रम का समापन किया.