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श्रद्धा मर्डर पर बोले सुरेंद्र मोहन पाठक- 'किसे पता 35 टुकड़े हुए? ये क्राइम को जघन्य बनाने के लिए कहा गया है'

दिल्ली में साहित्य का सबसे बड़ा मेला चल रहा है. साहित्य आजतक के तीन दिन के कार्यक्रम में सिनेमा, संगीत, सियासत, संस्कृति और थिएटर से जुड़े जाने-माने चेहरे हिस्सा ले रहे हैं. कार्यक्रम में हिंदी क्राइम फिक्शन राइटर सुरेंद्र मोहन पाठक ने भी शिरकत की. उन्होंने श्रद्धा मर्डर केस पर अपने विचार रखे.

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सुरेंद्र मोहन पाठक, क्राइम नॉवलिस्ट
सुरेंद्र मोहन पाठक, क्राइम नॉवलिस्ट

शब्द-सुरों का महाकुंभ, साहित्य आजतक का आज दूसरा दिन है. साहित्य का ये मेला तीन दिन का है, जो 18 से 20 नवंबर तक दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में लगा हुआ है. इस कार्यक्रम में सिनेमा, संगीत, सियासत, संस्कृति और थिएटर से जुड़े जाने-माने चेहरे हिस्सा ले रहे हैं. 

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मेले में कई मंच हैं, जहां साहित्य पर चर्चा भी हो रही है और संगीत के सुर भी महक रहे हैं. साहित्य के इस मंच पर 'क्राइम का विस्फोटक संसार' नाम के सेशन नें हिंदी क्राइम फिक्शन राइटर सुरेंद्र मोहन पाठक (Surendra Mohan Pathak) ने भी शिरकत की. सुरेंद्र मोहन अब तक 300 से ज्यादा कहानियां लिख चुके हैं. क्राइम जर्नलिस्ट शम्स ताहिर खान (Shams Tahir Khan) उनसे सवाल जवाब कर रहे थे. 

किसे पता कि 35 टुकड़े हुए?

हाल ही के श्रद्धा मर्डर केस पर उनसे सवाल किया गया. उन्होंने कहा कि ये एक जघन्य अपराध है. उन्होंने कहा कि किसे पता कि 35 टुकड़े किए गए, 25 भी हो सकते हैं. ये सिर्फ कहने की बातें हैं. ये केस को और जघन्य बनाने के लिए कहा गया है. ये गलत है बुरा है, ऐसा नहीं होना चाहिए. लेकिन आप ये कहें कि ये हमारे समाज में पहली बार हुआ है, ऐसा नहीं है.

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'हमारे यहां क्राइम इन्वेस्टिगेशन का कोई मेथोडिकल सिस्टम नहीं है'

पुलिस कुछ बातों में मजबूर होती है. उस अटेंशन से काम नहीं कर सकती, जिस अटेंशन का हकदार वो केस होता है. कई केस आते हैं किसी एक केस पर सारी फोर्स लगी रहे ये मुमकिन नहीं है. हमारे यहां कोई मेथोडिकल सिस्टम नहीं है क्राइम इन्वेस्टिगेशन का. कोई साइंटिफिक प्रोसीज़र नहीं है, कि स्टेप 1 के बाद स्टेप 2 लेना है.

surender mohan pathak
मंच पर सुरेंद्र मोहन पाठक और शम्स ताहिर खान

'मैं इतनी वॉयलेंट बातें नहीं लिखता'

उनसे पूछा गया कि 300 किताबों में से उन्होंने किसी में लाश के टुकड़े करने की बात लिखी है. तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं 
इतनी वॉयलेंट बातें नहीं लिखता, मेरा दिल घबराता है ये लिखने में. मैंने सेक्स और वॉयलेंस, दोनों से हमेशा परहेज रखा है. लेकिन मेरा मानना है कि किसी की ग्राफिक डिटेल में जाए बिना भी रीडर को कॉम्प्लेक्सिटी को दिमाग में बैठाया जा सकता है. 

इतने बड़े क्राइम इमपल्स या गुस्से में किए जाते हैं

शम्स ताहिर खान ने उनसे पूछा कि लोग इस तरह के क्राइम कैसे करते हैं या क्राइम छिपाने की ये सोच कहां से आती है? इसपर उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इतना जघन्य अपराध कोई भी बंदा पहले से प्लान करके करता होगा. ये अचानक होने वाले क्राइम होते हैं. हमारे यहां क्राइम एलीट वर्ग में तो होता नहीं है, गरीब तबके में होता है. उन्होंने कहा कि प्रीप्लानिंग इक्का-दुक्का केस में होती है. हमारी सोसाइटी में इतने बड़े क्राइम इमपल्स या गुस्से में किए जाते हैं. आफताब ने जो भी किया गलत किया, उसे सजा मिलेगी या नहीं ये दूसरी बात है, लेकिन ये क्राइम रोज होने वाले क्राइम नहीं हैं. जो क्राइम रोज होते हैं, जो हमें दिखाई देते हैं, जिनसे हम परेशान हैं, जिनसे हमारा निजाम भी मजबूर है, पुलिस तो उनमें भी कुछ नहीं कर पाती.

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