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'भैया, लोग मुझे नचनिया कहते हैं...', साहित्य आजतक में लेखक अमित गुप्ता ने शेयर किया एक पाठक का किस्सा

Sahitya Aajtak Stage-3: 'देहरी पर थिथकती धूप' के लेखक अमित गुप्ता ने साहित्य आजतक के मंच पर होमोसेक्शुएलिटी पर अपनी बात रखी. कहा कि प्यार किसी से भी हो सकता है. चाहे मर्द को मर्द से हो या महिला को महिला से. इस पर किसी का बस नहीं. OTT प्लेटफार्म पर भी आजकल कई वेब सीरीज में LGBT एंगल जरूर दिखाया जाता है. हमें कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. इसे भी किसी न किसी दिन समाज में स्वीकार्यता जरूर मिलेगी.

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'डेहरी पर थिथकती धूप' के लेखक अमित गुप्ता.
'डेहरी पर थिथकती धूप' के लेखक अमित गुप्ता.

दिल्ली में फिर से साहित्य और कला का सबसे बड़ा मंच सज चुका है. मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में 'साहित्य आजतक' के छठे संस्करण का आज आखिरी दिन है. 3 दिन तक चलने वाले इस शब्द-सुरों के इस कार्यक्रम में कई दिग्गज शिरकत कर रहे हैं. आज कार्यक्रम के तीसरे दिन दिन के 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' सेशन में 'देहरी पर थिथकती धूप' के लेखक अमित गुप्ता पहुंचे. उन्होंने Homosexuality पर अपनी बात रखी.

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'ये रिश्ता क्या कहलाता है' सत्र में Homosexuality पर बात की गई. सत्र कहा गया कि आज के दौर में हमारे बड़े-बूढ़े Homosexuality को मान्यता देना तो दूर की बात है, इसे स्वीकार तक नहीं करना चाहते. शायद इसलिए धूप हमारी देहरी पर ठिठक जाती है. इसी पर लेखक अमित गुप्ता से सवाल पूछा गया. पूछा गया कि क्या लगता है आपको उस धूप को अंदर आने से कौन रोक रहा है?

लेखक अमित गुप्ता ने कहा कि धूप को रोका नहीं जा सकता. वो धीरे-धीरे आपके आंगन में प्रवेश कर ही जाती है. उन्होंने कहा कि प्रेम एक ऐसी चीज है जो कि बेहद शुद्ध है. चाहे वो दो मर्दों के बीच हो या दो महिलाओं के बीच या फिर दो ट्रांसजेंडर्स के बीच. वो किसी से भी हो सकता है. इस पर किसी का बस नहीं. उस प्यार में जो प्योरिटी होती है उसे हम कुछ हद तक रोक सकते हैं. लेकिन धीरे-धीरे एक एक्सेप्टेंस आ ही जाती है. सिनेमा और साहित्य में जैसे-जैसे बदलाव आते हैं वैसे एक स्वीकार्यता भी बढ़ती है. जैसे आप देख ही सकते हैं कि आज की तारीख में जितने भी OTT प्लेटफार्म में वेब सीरीज आ रही हैं, उनमें कहीं न कहीं LGBT के टॉपिक को भी दिखाया जा रहा है. 

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इनके जरिए वेब सीरीज के मेकर्स लगातार कोशिश कर रहे हैं कि देहरी में धूप ठिठकी न रहे. Homosexuality को स्वीकार्यता मिले. चाहे आप 'आर्या' वेब सीरीज और 'बधाई दो' देख लीजिए. वो एक कोशिश है इसकी स्वीकार्यता को बढ़ाने की.

पहले लोग इस पर खुलकर बात भी नहीं करना चाहते थे. लेकिन अब लोग इस पर खुलकर बात भी कर रहे हैं. आज की तारीख में कई लेखक मेरे पास आते हैं और बताते हैं कि मैं इस टॉपिक पर लिखना चाहता हूं या चाहती हूं. वे मुझसे सलाह भी लेते हैं.

मेरा उपन्यास पढ़कर एक युवक का मुझे फोन आया. उसने बताया कि वो मेरा उपन्यास पढ़कर रोने लगा. कहने लगा कि भैया मुझे मेरे गांव वाले नचनिया कहकर चिढ़ाते हैं. आपको कैसे पता कि हमारे साथ ऐसा भी होता है? अमित गुप्ता ने कहा कि लोगों का ये मानना भी गलत है कि Homosexuality एक मॉर्डन चीज है जो कि बस शहरों में होती है. बल्कि गांव में भी कई लोग हैं को Homosexual होते हैं.

अमित गुप्ता ने कहा कि एक दिन सवेरा जरूर होगा. इस चीज को समाज में स्वीकार्यता जरूर मिलेगी. वो कहते हैं ना कि हमें कभी भी उम्मीद नहीं हारनी चाहिए. यहां भी कुछ ऐसा ही है.

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