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'समलैंगिकता न तो शहरी चीज है और न नई' 'साहित्य आजतक' के मंच पर खुली चर्चा

Sahitya Aajtak Stage-3: लेखिका सोनी पाण्डेय ने 'साहित्य आजतक' के मंच पर समलैंगिकता के टॉपिक पर चर्चा की. कहा कि ये चीज कोई नई नहीं है. न ही सिर्फ शहरों में इस तरह के लोग होते हैं. गांव में भी कई लोग समलैंगिक होते हैं. लेकिन जहां शहर में फिर भी एक हद तक इन रिश्तों को स्वीकार कर लिया जाता है, गांव में तो हम इस बारे में बात तक नहीं कर सकते. कारण है लोगों की पुरानी सोच. इसके अलावा सोनी ने एक समलैंगिक शख्स का किस्सा भी सुनाया.

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समलैंगिकता पर बोलीं लेखिका सोनी पाण्डेय.
समलैंगिकता पर बोलीं लेखिका सोनी पाण्डेय.

दिल्ली में एक बार फिर साहित्य और कला का सबसे बड़ा मंच सज चुका है. मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में 'साहित्य आजतक' के छठे संस्करण का आज आखिरी दिन है. 3 दिन तक चलने वाले इस शब्द-सुरों के इस कार्यक्रम में कई दिग्गज शिरकत कर रहे हैं. आज कार्यक्रम के तीसरे दिन दिन के 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' सेशन में लेखिका और कवयित्री सोनी पाण्डेय ने शिरकत की. उन्होंने Homosexuality पर अपनी बात रखी.

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'ये रिश्ता क्या कहलाता है' सत्र में Homosexuality पर बात की गई. लेखिका और कवयित्री सोनी पाण्डेय से सवाल किया गया कि आपके अनुभव में हमारा समाज Homosexuality को प्रेम मानता है या एक बीमारी मानता है? सोनी पाण्डेय ने कहा कि मैं यूपी में आजमगढ़ के छोटे से गांव से ताल्लुक रखती हूं. समलैंगिकता कोई शहरी चीज नहीं है या कोई नई चीज नहीं है. जब मैं बहुत छोटी थी तो मेरे बाबा की एक महिला मित्र थी, जो कि समलैंगिक थी. उसे लोग विभिन्न नामों से बुलाते थे. उसे काफी चिढ़ाया जाता था. मैंने वो सब गांव में देखा है.

सोनी पाण्डेय ने कहा कि होमोसेक्शुएलिटी को समाज में आज भी एक बीमारी ही माना जाता है. जिस तरह मैं 'साहित्य आजतक' में इस टॉपिक पर खुलकर बात कर रही हूं, वैसी बात मैं आज भी आजमगढ़ में नहीं कर सकती. लोग बेशक आज की तारीख में समलैंगिकता पर लिख रहे हैं उस पर बात कर रहे हैं, महानगरों में कई युवा इन संबंधों में रह रहे हैं, शहरों में बेशक इसे स्वीकार्यता किसी हद तक मिल भी रही है. लेकिन ग्रामांचलों में इसे स्वीकार्यता नहीं मिली है. आप वहां इस टॉपिक पर बात नहीं कर सकते.

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गिरहें बेशक खुली जरूर हैं. लेकिन आप इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर सकते. इसे स्वीकार करने में काफी अड़चनें हैं. अभी तो स्त्री-पुरुष का ही विवाह से पहले रिलेशन में रहना समाज में स्वीकार्य नहीं है, तो Homosexuality को स्वीकार करना तो बहुत दूर की बात है. मेरी एक कहानी है 'मोरी साड़ी अनाड़ी ना माने सजना', इसमें एक विधवा स्त्री है जो कि अपने प्रेमी के साथ लिव-इन रिलेशन में रहती है, उसे समाज से पत्थर खाने पड़ते हैं. उसे 'रखैल' तक का नाम दे दिया जाता है. एक गाली की तरह स्त्री को देखा जाता है. तो वहां Homosexulity को स्वीकार करना तो एक असंभव जैसा ही है.

मैं साफ-साफ कहूंगी. हमारे गांव बदल रहे हैं. वहां घर पक्के बन रहे हैं. सारी सुविधाएं गांव-गांव तक पहुंच चुकी है. लेकिन गांव में सोचने का तरीका वही पुराना है. सोनी पाण्डेय ने एक किस्सा सुनाते हुए कहा, ''मेरी एक स्टूडेंट के रिश्तेदार जो कि उसके दादा की उम्र के हैं, वो भी समलैंगक हैं. जब मुझे इस बारे में पता चला तो मैंने उनसे बात की. पहले तो उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा. लेकिन धीरे-धीरे वो मेरे साथ खुल गए. उन्होंने फिर स्वीकार कर लिया कि वो भी समलैंगिक हैं. और उन्हें किसी 'नाचने वाले' लड़के से जवानी में इश्क हो गया था. हालांकि, उस लड़के ने तो किसी और से शादी कर ली. लेकिन वो व्यक्ति उस लड़के के इश्क में इस कदर गिरफ्तार हो चुके थे कि उन्होंने कभी भी शादी नहीं की.''

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कई बार कहा जाता है कि प्रेम आजीवन नहीं होता. लेकिन मैंने कई ऐसे संबंध देखे हैं जब लोगों ने प्यार न मिलने पर कभी किसी और से शादी नहीं की. बल्कि उसी शख्स से हमेशा के लिए प्यार किया और कुंवारे रहे. हमारे समाज में इस तरह के रिश्तों को इसलिए भी स्वीकार्यता नहीं मिलती क्योंकि एक माइंडसेट लोगों का बना हुआ है कि स्त्री-पुरुष ही शादी कर सकते हैं. और संतान उत्पत्ति करके पीढ़ी को आगे बढ़ा सकते हैं. लेकिन जब हमारा समाज बदलेगा तो इस चीज को स्वीकार्यता भी मिल सकती है.

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