शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' का आज यानी 25 नवंबर को दूसरा दिन है. कार्यक्रम के दूसरे दिन के सत्र 'भाषा का पुल- अनुवाद' में तीन जानी-मानी अनुवादकों ने हिस्सा लिया. इस कार्यक्रम में सुजाता शिवेन (अनुवादक हिंदी और ओडिया), मनीषा तनेजा, (अनुवादक स्पैनिश, इंग्लिश और हिंदी) और रचना भोला यामिनी (अनुवादक इंग्लिश और हिंदी) ने हिस्सा लिया. इस सेशन का संचालन एंकर नेहा बाथम ने किया.
इस सेशन के दौरान तीनों मेहमानों ने अनुवाद करने के अपने-अपने अनुभवों पर बात की. साथ ही, मेहमानों ने अपने प्रोफेशन में आनेवाली परेशानियों पर भी बात की. उन्होंने बताया कैसे कई बार अनुवादकों को उनके काम का क्रेडिट नहीं मिलता. तीनों अनुवादकों ने अपनी-अपनी भाषाओं के बारे में भी बात की.
सेशन के दौरान सुजाता शिवेन ने अनुवाद की प्रक्रिया पर बात की. इस दौरान उन्होंने ओडिया भाषा की विशेषता के बारे में बात करते हुए कहा कि कैसे ओडिया भाषा में स्त्रीलिंग पुलिंग का भेद नहीं होता है. वहीं, ओडिया और हिन्दी भाषा में कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिसका अनुवाद नहीं मिल पाता है. ऐसे में हम पर्यायवाची शब्दों की खोज करते हैं, शब्दकोश देखते हैं. सुजाता शिवेन ने दोनों भाषाओं की संस्कृति पर भी अपने विचार रखे.
इस कार्यक्रम में बात करते हुए रचना भोला यामिनी ने दर्शकों के साथ साझा किया कि कैसे उन्होंने अनुवादन को अपना प्रोफेशन बनाया. उन्होंने बताया कि अनुवाद करना उनका पैशन है. उन्होंने कहा कि अनुवाद की प्रक्रिया से खुशी मिलती थी. उन्होंने कहा कि अनुवाद करना पहले मेरे लिए पैशन था, फिर प्रोफेशन बना और अब ये मेडिटेशन बन गया है.
आलोचना पर क्या बोलीं रचना भोला यामिनी?
काम की आलोचना पर हुए सवाल पर रचना यामिनी ने कहा कि पाठकों का फीडबैक या सुझाव बहुत मायने रखते हैं. उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं कि पाठकों की प्रतिक्रिया हमेशा ही सकारात्मक होगी, आलोचना से आपको अपनी कमियां भी पता चलती हैं. उन्होंने कहा कि इतने साल काम करने के बाद भी जब कोई नई परियोजना हाथ में आती है, वो मेरे लिए नई चुनौती की तरह होती है.
बातचीत के दौरान अनुवादक मनीषा तनेजा से जब उनके सबसे पसंदीदा अनुवाद को लेकर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि किसी अनुवाद में मेहनत ज्यादा लगती है, तो किसी में मन. ऐसे में किसी एक काम को चुनना बहुत मुश्किल होता है. हालांकि, उन्होंने बताया कि 'मार्केज का उपन्यास' का अनुवाद- 'एकाकीपन के सौ साल' बहुत करीब है क्योंकि उसे छपने में 20 साल लगे थे.
अच्छा काम करना या किसी कृति का बेस्टसेलर होना, क्या ज्यादा मायने रखता है?
सेशन के दौरान मेहमानों से सवाल हुआ कि उनके लिए क्या ज्यादा मायने रखता है, अच्छा काम करना या किसी कृति का बेस्टसेलर हो जाना? इस सवाल के जवाब में सुजाता शिवेन ने कहा कि जो काम मैनें किया, उसमें मुझे संतोष मिला, वो मेरे लिए ज्यादा मायने रखता है. वहीं, रचना यामिनी ने इस सवाल के जवाब में कहा कि पैसे तो परियोजना पूरी होने पर आ जाते हैं, लेकिन संतोष मन के भीतर से आता है.
उन्होंने कहा कि एक अनुवादक के जीवन में ईमानदार होने के बहुत अवसर आते हैं. उन्होंने कहा कि आपने कोई काम हाथ में लिया, प्रोजेक्ट पूरा कर लिया, लेकिन उस काम के साथ न्याय कितना किया ये मायने रखता है. वहीं, मनीषा तनेजा ने कहा कि ये बहुत बड़ी गलतफहमी है कि अनुवादक के घर का चूल्हा अनुवाद से चल रहा है. इसमें ना पैसा मिलता है, ना नाम. उन्होंने कहा कि अनुवाद आप अपने पैशन के लिए कर रहे होते हैं.
अनुवाद के क्षेत्र में आनेवाले लोगों को रचना यामिनी का संदेश
सेशन के दौरान रचना यामिनी ने अनुवाद के क्षेत्र में आनेवाले नए लोगों को ये संदेश दिया कि अनुवाद को अंशकालिक नौकरी के तौर पर ना देखें. उन्होंने कहा कि सबसे पहले लोगों को ये देखना चाहिए कि क्या अनुवाद में उनकी रुचि है? उन्होंने कहा कि वो वक्त बहुत बाद में आएगा जब अनुवाद करना आपके लिए पैसा बनाने का साधन बन सकता है, लेकिन उससे पहले ये बहुत लंबी प्रक्रिया है.
अनुवादकों को क्रेडिट नहीं मिलने पर क्या बोले गेस्ट
अनुवादकों की परेशानियों के बारे में बात करते हुए तीनों मेहमानों ने इस ओर ध्यान केंद्रित किया कि कैसे अनुवादकों को पहले पन्ने पर क्रेडिट नहीं दिया जाता है. मनीषा तनेजा ने कहा कि प्रकाशक कहते हैं कि अनुवादकों के नाम से किताब बिकती नहीं है इसलिए क्यों डालें. वहीं, रचना यामिनी ने बताया कि अनुवादकों के नाम कॉपीराइट पेज पर बहुत छोटे फॉन्ट में दिए जाते हैं. उन्होंने कहा कि ये एक जंग है जो हम लड़ते आ रहे हैं. इस बारे में आगे बात करते हुए रचना यामिनी ने कहा कि आज बहुत से प्रकाशक इस बात को समझ रहे हैं कि अनूदित पुस्तकों में अनुवादकों को मान मिलना चाहिए.
स्पैनिश का ही चुनाव क्यों?
कार्यक्रम के दौरान मनीषा ने ये भी बताया कि क्यों उन्होंने स्पैनिश भाषा का चुनाव किया. उन्होंने कहा कि जब उन्होंने स्पैनिश चुनी, उस वक्त कोई स्पैनिश पढ़ता नहीं था. उन्होंने कहा कि जैपनीज या चाइनीज में बहुत मेहनत लगती है. वहीं, फ्रेंच-जर्मन सब करते हैं. इसलिए उन्होंने स्पैनिश भाषा का चुनाव किया. वहीं, स्पैनिश भाषा के बारे में बात करते हुए मनीषा ने कहा कि स्पैनिश और संस्कृत भाषा के व्याकरण में बिल्कुल अंतर नहीं है. सुजाता शिवेन ने कहा कि हर किसी को कम से कम दो भारतीय भाषाएं आनी चाहिए.
महिलाओं की समस्याओं पर अनुवादकों की राय
कार्यक्रम के दौरान तीनों मेहमानों ने महिलाओं के मुद्दों पर अपने विचार रखें. मनीषा तनेजा ने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है. उन्होंने कहा कि एक और बात जो परेशान करती है वो ये है लड़कियों के साथ समाज का रवैया. अगर किसी लड़की के साथ रेप जैसी कोई घटना हुई है तो समाज उसी लड़की की गलती बताने लगता है, ये रवैया बहुत परेशान करने वाला है. वहीं, रचना यामिनी ने कहा कि समाज के रवैये के साथ-साथ, लड़कियों की अभिव्यक्तियों की स्वतंत्रता को बहुत दबाया जाता है. लड़कियों और महिलाओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए.