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'कविताएं रूह में उतरती हैं, कला सिर चढ़कर बोलती है', साहित्य आजतक में बोले राजेंद्र गुप्ता

Sahitya Aajtak 2023: मूल रूप से पानीपत के राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि जब स्कूल कॉलेज में नाटक होते थे तो मुझे बड़ा मजा आता था. मैं एक्टिंग नहीं करता तो शायद कुछ न कर पाता. 10-12 साल थिएटर करने के बाद एक्टिंग के लिए ही एनएसडी पहुंच गया. इस तरह फिल्मी करियर शुरू हुआ.

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 फिल्म, टीवी और थिएटर एक्टर राजेंद्र गुप्ता
फिल्म, टीवी और थिएटर एक्टर राजेंद्र गुप्ता

दिल्ली में हर साल की तरह इस बार फिर से साहित्य और कला का सबसे बड़ा मंच सज चुका है. मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक के छठे संस्करण की शानदार शुरुआत शुक्रवार को हो गई है. तीन दिनों तक मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में कला, संगीत और साहित्य जगत की तमात हस्तियां एकजुट रहेंगी. आज इसके दूसरे दिन के सेशन 'कहन' में फिल्म, टीवी और थिएटर एक्टर राजेंद्र गुप्ता पहुंचे.

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धारावाहिक 'चंद्रकांता' में पंडित जगन्नाथ के अहम रोल से लेकर 'लगान' और 'तनु वेड्स मनु' जैसे फिल्मों में अपनी एक्टिंग से छाप छोड़ने वाले राजेंद्र गुप्ता से उनके 40 साल के फिल्मी करियर के अलावा उनके कविता प्रेम पर बात की गई.  राजेंद्र से पूछा गया कि हरियाणा के पानीपत से मुंबई कैसे पहुंचे और कैसे अभिनेता बने? इसपर राजेंद्र ने कहा- 40 साल के सफर को इतने कम समय में कैसे बयान करूं. बस ये समझ लीजिए कि नियति थी शायद एक्टर ही बनना था. कुछ और करने की कोशिश की तो समझ गया कि नहीं कर सकता.

कविताओं से कैसे हो गया लगाव?

राजेंद्र से जब उनके कविता प्रेम पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि मैं साइंस का स्टूडेंट था और क्लास में जरा भी मन नहीं लगता था. समझ नहीं आता था कि क्या फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ा रहे हैं. लेकिन जब स्कूल कॉलेज में नाटक होते थे तो बड़ा मजा आता था. मैं एक्टिंग नहीं करता तो शायद कुछ न कर पाता. 10-12 साल थिएटर करने के बाद एक्टिंग के लिए ही एनएसडी पहुंच गया. यहां अधिकतर नाटक साहित्य से जुड़े हुए होते हैं. कई काव्य नाटक भी किए. बस वहीं से कविताओं से लगाव हो गया.  कविताएं पढ़ने और लिखने से मेरी भूख को शांत होती है और लोगों के पसंद भी आने लगी है. 

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'कविताएं रूह में उतर जाती हैं'

रजेंद्र ने आगे कहा कि बतौर कलाकार मेरे लिए सब रचनाकार का किया हुआ होता है, मैं बस माध्यम हूं. जितना अच्छा लेखन, उतना अच्छा काम होता है. एक्टर रचना पर हावी नहीं होता, रचना एक्टर पर हावी होती है. इसके बाद राजेंद्र ने मंच पर 'मुक्तिबोध' की कविता 'मीठा बेर' सुनाई. साथ उन्होंने धरती के अभिशप्त... और 'करमेले' की 'राहत' सुनाई. राजेंद्र ने कहा-  कविता थोड़े शब्दों में गहन बात कहती है. 40 सालों के करियर में कविता के अलावा कोई ऐसा माध्यम नहीं मिला जो रूह में उतर जाए. ये कविताएं हमें हमारे आगे नंगा करती हैं और अपने अंदर झांकने पर मजबूर करती हैं.

'कला सिर पर चढ़कर बोलती है'
 
जो लोग अभिनेता बनना चाहते हैं उनके लिए टिप्स के सवाल पर राजेंद्र ने कहा- मेरे पास कोई सफलता की कूंजी नहीं है. कई 50 साल के एक्टर आज भी अपनी पसंद के रोल के लिए भटक रहे हैं. पहले आपको ये तय करना है कि आपको करना क्या है. जिस चीज में मजा आए बस वही करते जाइये. अगर मैं अपने लिए अच्छा काम करूं तो 100 प्रतिशत आपको पसंद आएगा. कला सिर पर चढ़कर बोलती है. और इसके लिए कोई फॉर्मुला नहीं है. धैर्य और काबलियत से सब ठीक ही होगा. हमे सिर्फ किसी के लिखे चरित्र को रियल कर देना  होता है.

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