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प्रेम, पैशन और जिम्मेदारी.... साहित्य आजतक लखनऊ में लेखकों ने बताए 'लिखने के बहाने हजार'

इस दौरान हिंदी साहित्य और फिल्मों में प्रेम रस में महिलाओं को कई उपमाएं मिली हैं, लेकिन ‘लोकगीत सी लड़की’ क्या है? इस संदर्भ में लेखिका आकृति विज्ञा अर्पण कहती हैं कि जब भी गांव की बात आती है और गीत की बात होती है तो चक्की चलाती औरतें याद आती हैं. वह खुद को खेतों में काम करने वाली औरतों, फटी एड़ियों वाले मजदूरों की प्रतिनिधि मानती हैं

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साहित्य आजतक लखनऊ में सेशन के दौरान लेखक डॉक्टर अनुराग आर्य
साहित्य आजतक लखनऊ में सेशन के दौरान लेखक डॉक्टर अनुराग आर्य

अदब के शहर लखनऊ में 'साहित्य आजतक लखनऊ' का आयोजन जारी है. यह दो-दिवसीय महोत्सव 15 और 16 फरवरी को गोमती नगर के अंबेडकर मेमोरियल पार्क में आयोजित किया जा रहा है, और इसमें देश-विदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार, कलाकार और मनोरंजन जगत के दिग्गज शामिल हो रहे हैं. आयोजन में लेखन से जुड़े एक खास सेशन 'लिखने के बहाने हजार' का भी आयोजन हुआ. सत्र में लेखिका पल्लवी गर्ग, डॉ. अनुराग आर्य और लेखिका आकृति विज्ञा अर्पण ने शिरकत की.  

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इस दौरान, डॉ. अनुराग आर्य ने कहा कि, 'साहित्य और लेखन हमेशा से समाज और आत्माभिव्यक्ति के प्रमुख साधन रहे हैं. वर्तमान समय में लिखना सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि अस्तित्व बनाए रखने का माध्यम भी बन चुका है. ‘सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट’ के इस दौर में, लेखन हमें अपने जमीर को बचाए रखने और इंसानियत को जिंदा रखने का जरिया देता है.'

खुद को लोक का प्रतिनिधि मानती हैं लेखिका आकृति
इस दौरान हिंदी साहित्य और फिल्मों में प्रेम रस में महिलाओं को कई उपमाएं मिली हैं, लेकिन ‘लोकगीत सी लड़की’ क्या है? इस संदर्भ में लेखिका आकृति विज्ञा अर्पण कहती हैं कि जब भी गांव की बात आती है और गीत की बात होती है तो चक्की चलाती औरतें याद आती हैं. वह खुद को खेतों में काम करने वाली औरतों, फटी एड़ियों वाले मजदूरों की प्रतिनिधि मानती हैं और लोक का प्यार मिलने के कारण वे स्वयं को ‘लोकगीत सी लड़की’ कहती हैं.

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साहित्य लखनऊ आजतक

लेखन एक नेमतः पल्लवी गर्ग
लेखिका पल्लवी गर्गी का मानना है कि लिखना एक नेमत है, जो हर किसी को नहीं मिलती. लिखने के लिए व्यक्ति को खुद से रूबरू होना पड़ता है. उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कई बार ऐसा लगता है कि मन की भावनाओं को रास्ता नहीं मिल रहा. उन्होंने जो भी पढ़ा, उसने उनके मन पर गहरी छाप छोड़ी. उनके कविता में 'शब्दों में छिपकर मुस्कुराने वाले' उनके पिता और कुछ करीबी लोग हैं.

इसी दौरान लेखक, डॉ. अनुराग आर्य ने अपनी हॉस्टल की यादें साझा करते हुए कहा कि गर्ल्स हॉस्टल की ओर से लड़कों को ‘बुरे लड़के’ का टैग मिला, लेकिन वे वास्तव में उतने बुरे नहीं थे. यह अनुभव उनकी लेखनी का महत्वपूर्ण हिस्सा बना. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए, लेखिका आकृति विज्ञा अर्पण कहती हैं कि, प्रेम इस संसार का शाश्वत बहाना है. प्रेम का होना और न होना, दोनों ही बड़े बहाने हैं. उन्होंने कहा कि यदि आप स्वयं को प्रकट करना चाहते हैं, तो प्रेम की मौजूदगी आवश्यक है. इसके अलावा, लेखन का एक उद्देश्य बदलाव लाना भी होना चाहिए, क्योंकि यह लेखकों की जिम्मेदारी है.

सत्र में लेखकों ने सुनाईं अपनी रचनाएं
सत्र में तीनों ही लेखकों ने अपनी-अपनी रचनाएं भी पढ़कर सुनाईं. लेखिका पल्लवी गर्ग ने अपनी कविता ‘काला गुलाब’ पढ़ी, जो उन्होंने अमृता प्रीतम को समर्पित की थी. उन्होंने माना कि प्रेम के बिना लिखना संभव नहीं है. प्रेम और पैशन ही लेखन के सबसे बड़े प्रेरक तत्व हैं. चर्चा के दौरान आकृति विज्ञा अर्पण ने अपनी कविता ‘मैं सेमर का फूल बनूंगी’ प्रस्तुत की. साथ ही, पल्लवी गर्ग ने ‘नीलकुरंजी के फूल’ और ‘मेरे शब्दों में छिपकर मुस्कुराते हो तुम’ कविताएं सुनाईं. इसके अतिरिक्त, लेखक डॉ. ने अपने हॉस्टल के अनुभवों को कविता के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे माहौल भावनात्मक और साहित्यिक ऊर्जावान बन गया. इस पूरी चर्चा ने यह साबित किया कि लेखन सिर्फ विचारों को शब्द देने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने की जिम्मेदारी भी है.
 

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