scorecardresearch
 

साहित्य का धर्म है पीड़ि‍त के पक्ष में खड़े होना: नरेंद्र कोहली

‘साहित्य आजतक’ के दूसरे दिन प्रख्यात पौराणिक कथाकार नरेंद्र कोहली ने कहा कि साहित्य का धर्म पीड़ित के पक्ष में खड़े होना है. 'साहित्य का धर्म’ सत्र में नरेंद्र कोहली ने यह बात कही.

Advertisement
X
प्रख्यात लेखक नरेंद्र कोहली
प्रख्यात लेखक नरेंद्र कोहली

Advertisement

प्रख्यात लेखक नरेंद्र कोहली ने कहा कि साहित्य का धर्म पीड़ित के पक्ष में खड़े होना है. ‘साहित्य आजतक’के दूसरे दिन 'साहित्य का धर्म’ सत्र में पौराणिक कथाकार नरेंद्र कोहली ने यह बात कही.

उन्होंने कहा कि  धर्म का साहित्य और साहित्य का धर्म अलग है. उन्होंने रामायण की चर्चा करते हुए कहा कि वाल्मीकि की कथा क्रौंच और क्रौंची के विरह के साथ शुरू होती है. निषाद व्याध ने इस जोड़े में से नर क्रौंच को अपने बाण से मार गिराया जिसके बाद ऋषि वाल्मीकि ने व्याध को श्राप दे दिया. ये आज भी हैं पक्षी के रूप में हो या मनुष्य के रूप में. पीड़क और पीड़‍ित आज भी हैं, अत्याचार करने वाले हों या अत्याचार सहने वाले. लेकिन ऋष‍ि उनके बीच में आ जाता है.

उन्होंने कहा कि ऋषि आज बुद्धिजीवी के रूप में हैं. तो इसी तरह साहित्यकार का धर्म है, यदि उसके सामने अत्याचार हो रहा है, तो उस बीच में उसे पड़ना है या नहीं इस पर विचार करना है. कई लोग सोचते हैं कि मैं बीच में क्यों पड़ूं, मैं क्या कर सकता हूं. लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो सोचते हैं कि मैं जो कर सकता हूं करूंगा, चाहे श्राप ही देना क्यों न हो, मैं बीच में दखल दूंगा. साहित्यकार को एक असाधारण काम मिला है कि पीड़ि‍त के पक्ष में और पीड़क के खिलाफ खड़े हों. कोई और शक्ति होती है जो साहित्यकार से कुछ कहलवाती है.

Advertisement

राक्षस और ऋषियों का संघर्ष

उन्होंने कहा कि राक्षस, ऋषि को ही क्यों खाता था, क्योंकि वे बुद्‍धिजीवी थे. रामायण की कहानी की बात करें तो वानर असल में दलित, वंचित लोग थे. उनको बौद्ध‍िक नेतृत्व ऋषियों से मिलता था.  राक्षस नहीं चाहता कि पिछड़े, दलित, शोष‍ितों को कोई नेतृत्व मिले. उन्होंने तंज में अपनी बात कहते हुए कहा कि आज भी अखबारों के पहले के चार पेज राक्षसों की कथा से ही भरे होते हैं.

उन्होंने कहा, 'हम न तो उन साधारण शब्दों के पीछे जाएं जो साहित्य का अंग नहीं बन सकते और न ही अपने शब्दों को उन लोगों के लिए बर्बाद करें जो उसके योग्य नहीं है.' 

भारतीय काव्य में साहित्य के धर्म की बात नहीं आती, बल्कि प्रयोजन की बात आती है. यश लेखक को मिलता है, अर्थ लेखक को मिलता है, व्यवहार लेखक को मिलता है. जो समाज के हित में नहीं है, उसको समाप्त करना है. शिव को समाज में समाप्त करना है, शिव से इतर जो है उसको समाप्त करना है.

 नरेंद्र कोहली हिंदी के सबसे चर्चित कथाकारों में से एक हैं. उन्होंने उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी, संस्मरण, निबंध आदि सभी विधाओं में लिखा. उनकी सौ से भी अधिक किताबें छप चुकी हैं. हिंदी में कवितानुमा उपन्यास शुरू करने का श्रेय उनको ही जाता है.

Advertisement

To License Sahitya Aaj Tak Images & Videos visit www.indiacontent.in or contact syndicationsteam@intoday.com

Advertisement
Advertisement