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साहित्य आजतक: प्रकाशकों ने बताया कौन लिखता है, कौन बिकता है...

माहेश्वरी ने कहा कि बदलते दौर के साथ प्रकाशक को भी बदलना पड़ता है और समय की मांग के साथ हमने पुस्तकें, कहानियों, शायरी और समसामयिक मुद्दे पर किताबें प्रकाशित कीं. हमें लेखकों की जरूरत है क्योंकि आज का पाठक जैसी किताबें मांग रहा है वैसा लिखने वाले लेखक अब नहीं हैं.

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 सत्र 'कौन लिखता है, कौन बिकता है' (फोटो- आजतक)
सत्र 'कौन लिखता है, कौन बिकता है' (फोटो- आजतक)

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'साहित्य आजतक' के दूसरे दिन सीधी बात मंच पर सत्र 'कौन लिखता है, कौन बिकता है' का आयोजन किया गया. इस सत्र में नए प्रकाशक से लेकर पीढ़ियों से इस पेशे में जुटे सफल पब्लिशर मौजूद रहे. यहां हिंद युग्म के प्रकाशक शैलेष भारतवासी और वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी के साथ छपे हुए शब्दों के गणित पर विस्तार से चर्चा की गई.

अरुण माहेश्वरी ने कार्यक्रम में बताया कि आज के दौर के लिए लेखक आज की बातों को ही लिख रहे हैं. उन्होंने कहा कि पुस्तक छापने से पहले हम उसके पाठक वर्ग को जरूर ध्यान में रखते हैं. माहेश्वरी ने कहा कि बदलते दौर के साथ प्रकाशक को भी बदलना पड़ता है और समय की मांग के साथ हमने पुस्तकें, कहानियों, शायरी और समसामयिक मुद्दे पर किताबें प्रकाशित कीं. हमें लेखकों की जरूरत है क्योंकि आज का पाठक जैसी किताबें मांग रहा है वैसा लिखने वाले लेखक अब नहीं हैं.

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साहित्य आजतक: 'मैं गरीब के रुदन के आंसुओं की आग हूं'

हिंद युग्म के प्रकाशक शैलेष भारतवासी ने कहा कि हाल के दिनों में हमारे यहां की किताबों बेस्ट सेलर रही हैं जिसकी एक वजह ई-बुक्स का दौर भी है साथ ही हमने वो छापा जो पाठक पढ़ना पसंद करते हैं. उन्होंने कहा कि तीन दशकों में पाठकों और साहित्यिक कृति के बीच दूरी बढ़ी क्योंकि प्रकाशकों ने संपादकीय विवेक की बजाय लघु पत्रिकाओं पर यकीन करना ज्यादा शुरू कर दिया.

वाणी के निदेशक माहेश्वरी ने कहा कि प्रकाशन में कौन टिकता है इस पर भी गौर किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रकाशक, लेखक और पाठक के बीच की कड़ी है. क्या छपना चाहिए और क्या बाजार की जरूरत है, यह तय करने का काम लेखक और प्रकाशक का ही है. माहेश्वरी ने कहा कि जो रचनात्मकता रखता है वही बाजार में टिकता है, लोकप्रियता के अलावा स्तर का भी ध्यान रखे जाने की जरूरत है, तभी बाजार में बिका और टिका जा सकता है.

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