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मरने से पहले मैं देश के लिए कुछ लिखूं, बाकी है मेरी ख्वाह‍ि‍श, बोले हीरामंडी के गीतकार ए एम तुराज

शायर, एएम तुराज साहित्य आजतक 2024 के मंच पर आए और महफिल जमाई. तुराज ने कुछ गीत भी गुनगुनाए. बताया कि संजय लीला भंसाली को वो इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें फिल्मों में गीतों का महत्व पता है. वो गीत को समझते भी हैं. इसी के साथ तुराज ने अपने स्ट्रगल और मुजफ्फरनगर से मुंबई तक के सफर पर भी बात की.

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ए एम तुराज
ए एम तुराज

शायर, एएम तुराज साहित्य आजतक 2024 के मंच पर आए और महफिल जमाई. तुराज ने कुछ गीत भी गुनगुनाए. बताया कि संजय लीला भंसाली को वो इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें फिल्मों में गीतों का महत्व पता है. वो गीत को समझते भी हैं. इसी के साथ तुराज ने अपने स्ट्रगल और मुजफ्फरनगर से मुंबई तक के सफर पर भी बात की.  एएम तुराज, शायर ने कहा- 22 साल से लिख रहा हूं, लेकिन साहित्य आजतक पर पहली बार किसी प्रोग्राम में आया हूं. 

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मुजफ्फरनगर से मुंबई तक का सफर
मेरा सफर बहुत मुश्किल था. लेकिन अब ऐसा लगता है आसान था. फिल्म इंडस्ट्री बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म है. यहां तक पहुंचने के लिए परेशानियां होनी चाहिए. क्योंकि इतने बड़े प्लेटफॉर्म के लिए हम तैयार होते हैं. तो मुश्किल रास्तों से निकलकर ही हम यहां तक पहुंचते हैं. 

मैंने साल 1999 में लिखना शुरू किया था. लगा नहीं था कि मुंबई जाकर कुछ करूंगा. लगा था कि छोटे प्रोग्राम करूंगा. लेकिन फिर पढ़ाई की तो लगा कि मुंबई जाना चाहिए और फिर एक वो जंग लड़नी पड़ी. बड़े शहर जाने के लिए मैंने पेरेंट्स को मनाया और फिर मुंबई रवाना हो गए. 

मैंने अपनी लिमिट सेट कर रखी है
ऐसा बिल्कुल नहीं है. कोई चीज अगर वहां होने के नाते थोपी जाती है तो वो बहुत दिन तक नहीं चलती. मुश्किलें होती हैं. रहने खाने की. और हम लोगों को भी नहीं जानते. ये सारी दिक्कतें होती हैं. लेकिन ये मायने नहीं रखतीं. गांव से शहर जाने तक का सफर मेरा लंबा रहा है. लेकिन मैंने भी अपनी जगह बनाई इंडस्ट्री में. मैंने जितनी फिल्में की हैं, उससे कहीं ज्यादा मैं कर सकता था, लेकिन मैंने अपनी लिमिट सेट की. मैंने अच्छी फिल्मों के लिए लिखा और यहां तक पहुंचा. 

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लेखक के लिए एक अच्छा म्यूजिक डायरेक्टर साथ हो कितना जरूरी है ये?
मैं हमेशा कहता हूं कि लिरिक्स बाद में काम करते हैं, धुन पहले काम करती है. तो बहुत से गाने हैं जो आप लोगों तक नहीं पहुंचे होंगे, क्योंकि उनमें धुन का काम थोड़ा कम था. 

संजय सर की संगीत की समझ कैसी है?
संजय जी को इस्माइल दरबार जी ने एक गाना मेरा सुनाया था. 2005 में जब वो 'सांवरिया' बना रहे थे तो उन्होंने मिलने के लिए बुलाया था. इस फिल्म में मैं काम नहीं कर पाया था. लेकिन फिर कुछ साल बाद उन्होंने मुझे फिर बुलाया तो मैंने काम किया. अभी 'हीरामंडी' में मैंने उनके साथ फिर से काम किया. 

मैं शायरी बचपन से सुनता था. जिन शायरों को मैंने सुना उनसे मुझे मोटिवेशन मिली. उसके बाद मैंने जितनी भी शायरी की, मैंने गाने लिखे, ये 99 फीसदी मेरा खुद का एक्स्पीरियंस है. मैं बहुत सी बातें लोगों से कहना चाहता था तो वो मैं अपनी शायरी से कह रहा हूं. शायरी मेरा अपनी बातें कहने का मीडियम है. शायरी सब सुनते हैं तो अपनी बात मैं आजतक कह रहा हूं. 

फिल्मों में गीत या गजलें लिखना ज्यादा पसंद है
फिल्मों में गीत लिखना ज्यादा पसंद है क्योंकि ज्यादा पैसा यहीं से मिलता है. रही बात शायरी की तो वो रूह में बसी है. पैसा अपनी जगह है, लेकिन रूह को जो चाहिए वो भी जरूरी है. फिल्मों में जितना जरूरी एक्टर, उतना जरूरी संगीत और शायर होता है. जब भी मुझे मौका मिलता है तो मैं महफिलों में जाकर अपनी बात कहता हूं. क्योंकि इसका अपना अलग मजा है. 

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इतने समय से लिख रहे हैं, सबसे नजदीक आपकी रचना कौन सी है
मैंने जितने भी गाने लिखे हैं सारे प्यारे हैं, क्योंकि हम जो भी क्रिएट करते हैं, सबकुछ हमें प्यारा ही होता है. जो सबसे अच्छा गाना है वो मेरा खुद का 'आयत' है. बाकी मुझे अरिजीत सिंह का 'गंगुबाई काठियावाड़ी' का गाना 'मुस्कुराहट' गाना पसंद है. 

मैं बस यही चाहता हूं कि मरने से पहले मैं देश के लिए कुछ लिखूं. मैंने अबतक वो नहीं लिखा है जिसके लिए मैं सोचता हूं मैं बना हूं. तो वो मैं लिखना चाहता हूं. 

पैसा, लेखक या रुतबा
मुझे शायरी बैठकर सुनाना पसंद है. एक बंद रूम में बैठकर लिख दिया तो वो मायने नहीं रखता. लेकिन हां, दर्शकों का प्यार जब मिलता है तो बहुत अच्छा लगता है. 

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