शब्द-सुरों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' आज से दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में शुरू हो चुका है. यह तीन दिन यानी आज से 26 नवंबर तक चलेगा. इस कार्यक्रम के पहले दिन 'उपन्यास और इतिहास के सबक' सेशन में भगवानदास मोरवाल (लेखक), त्रिपुरारी शरण (सूचना आयुक्त, बिहार और लेखक) और गरिमा श्रीवास्तव (लेखिका) ने हिस्सा लिया. इस सेशन में मेहमानों से बातचीत की एंकर चित्रा त्रिपाठी ने.
'इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत'
इस सेशन के दौरान तीनों मेहमानों ने इतिहास के सबकों और उपन्यास के संदेशों पर अपनी राय सामने रखी. बातचीत की शुरुआत में गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इतिहास वही नहीं होता जो हमें वर्चस्ववादी ताकत लिखकर देती हैं. उन्होंने कहा कि इतिहास उनका भी होता है जो युद्धों में हार जाते हैं और उनके बारे में कोई जान भी नहीं पाता.
इतिहास बदले जाने की जरूरत पर हुए सवाल पर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि इतिहास में औरत की कहानी तो लिखी ही नहीं गई. उन्होंने कहा कि जितने भी आक्रमण हुए, जितने भी राजा-महाराजा हुए केवल उनकी कहानियां ही लिखी गईं, लेकिन उनके पीछे जो प्रेरणादायी फोर्स थीं, उनके बारे में लिखा ही नहीं गया.
बातचीत के दौरान उन्होंने दर्शकों का ध्यान युद्ध या संघर्ष वाले इलाकों में स्त्रियों और बच्चों की स्थिति की ओर केंद्रित किया. उन्होंने कहा कि युद्ध में बच्चों और स्त्रियों की स्थिति कितनी दारुण हो जाती है इस बारे में इतिहास चुप है. आजतक के मंच पर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि इस विषय में उपन्यासों के क्षेत्र में बहुत कम काम हुआ है, खासकर के हिंदुस्तान में, क्योंकि माना जाता है कि यहां पर कभी विश्व युद्ध हुए नहीं हुए इस वजह से बच्चों और स्त्रियों के विचार कभी इस क्षेत्र में सामने आए नहीं. उन्होंने कहा कि मैं ऐसी स्त्रियों के बारे में लिखना चाहती हूं जिनका कोई नाम नहीं लेता है, लेकिन वो होती हैं अपने पूरे वजूद के साथ.
आजतक के मंच पर गरिमा श्रीवास्तव ने अपनी किताब आउशवित्ज़ : एक प्रेम कथा के जरिए स्त्री के प्रेम और स्वाभिमान पर भी बात की. इस उपन्यास के जरिए गरिमा श्रीवास्तव ने बांग्लादेश में मुक्ति युद्ध के दौरान स्त्रियों के साथ हुए शोषण पर प्रकाश डाला है.
'जीवन बहुत छोटे-छोटे सूत्रों में आगे बढ़ता है'
इस सेशन में बोलते हुए त्रिपुरारी शरण ने कहा कि हिंदी साहित्य में बहुत कम ऐसा दृष्टांत हैं जहां मानव और जीव के संबंध पर विवेचना की गई है. इस दौरान उन्होंने अपनी किताब 'माधोपुर का घर' के बारे में भी बात की. उन्होंने कहा कि ये 'माधोपुर का घर' एक रूपक है. इस किताब के जरिए त्रिपुरारी शरण ने विस्थापन को लेकर अपनी राय रखी. इतिहास के सबक पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन बहुत सारी नाटकीय घटनाओं का जमा नहीं है. जीवन बहुत छोटे-छोटे सूत्रों में आगे बढ़ता है, उनका जमा है.
आजतक के मंच पर भगवानदास मोरवाल ने इस बारे में अपनी राय रखी कि कैसे इतिहास को उपन्यास में ढाला जाए. साथ ही, उन्होंने बात की अपने उपन्यास खानजादा के बारे में. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें इस किताब को लिखने का विचार आया और कैसे उस किताब के लिए उन्होंने शोध किया. उन्होंने कहा कि इतिहास एक ऐसा विषय है जिसके बारे में हमने जितना पढ़ा या सुना है उतना ही जानते हैं. बातचीत के दौरान उन्होंने बाबर, राणा सांगा के बारे में भी बात की.
कार्यक्रम के दौरान त्रिपुरारी शरण ने युवाओं को संदेश दिया कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा कि क्रिएटिव फील्ड को लेकर कई लोग ये मान लेते हैं कि ऐसा कोई भी कर लेगा, लेकिन ऐसा होता नहीं है. उन्होंने इस पर भी रोशनी डाली की आगे बढ़ने के लिए पढ़ना कितना जरूरी है. उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति में निखार बिना चिंतन प्रक्रिया में निखार के नहीं आएगा और चिंतन प्रक्रिया में निखार अध्यन से आएगा.
'आज के वक्त में प्रतिस्परधा बहुत कड़ी'
त्रिपुरारी शरण ने हिंदी सिनेमा के बारे में बात करते हुए कहा कि आज से 20 साल पहले तक सिनेमा बहुत सीमित क्षेत्र था, लेकिन आज के वक्त में सिनेमा बनता है और कई फिल्मों के बारे में जान भी नहीं पाते हैं. इसके जरिए उन्होंने बताया कि आज के वक्त में प्रतिस्परधा बहुत कड़ी है और इसमें ठहर पाने के लिए आपको बहुमखी प्रतिभा का धनि होना पड़ेगा.
छात्रों के मोबाइल इस्तेमाल पर क्या बोले गेस्ट
छात्रों द्वारा मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा कि कोरोना काल में मोबाइल के जरिए ही छात्र ऑनलाइन क्लास ले पाए हैं. उन्होंने कहा कि मोबाइल और अन्य तरह के गैजेट्स से बच्चे अपने आप को अपडेट कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम ये क्यों सोचें बच्चे अगर मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं तो Youtube ही देख रहे हैं. उन्होंने कहा कि कोरोना के वक्त में आसपास इतना नकारात्मक माहौल था, लेकिन छात्र लगातार मोबइल के जरिए पढ़ रहे थे जिसकी मुझे बहुत खुशी है.
भगवानदास मोरवाल ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि मोबाइल और गैजेट्स एक तरह की तकनीक हैं. उन्होंने कहा कि एक लेखक के तौर पर मैं इन तकनीकों का बहुत इस्तेमाल करता हूं. ये हम पर निर्भर करता है कि हम इस तकनीक का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी का सबसे पहला सिद्धांत यही कि जब तक वो आपको नहीं आता है, वो आपको दुश्मन नजर आता है, लेकिन जब एक बार आप उसके अभ्यस्त हो जाते हैं तो वो आपकी जरूरत बन जाती है. छात्रों के मोबाइल इस्तेमाल पर भगवानदास मोरवाल ने कहा कि कोरोना के वक्त में अगर ऑनलाइन सिस्टम नहीं होता तो बच्चों की क्या हालत होती. इस बारे में बात करते हुए त्रिपुरारी शरण ने कहा कि बच्चों को आप ये बताइए कि टेक्नोलॉजी का आप कैसे सार्थक ढंग से इस्तेमाल कर सकते हैं.