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जो विरोध में बोलेंगे, जो सच बोलेंगे, वे मारे जाएंगे... राजेश जोशी की कविता पर बजीं तालियां

लोकप्रिय मुहावरों के साथ पाठकों के दिल में जगह बनाने वाले मशहूर कवि राजेश जोशी और मदन कश्यप ने साहित्य आजतक के दूसरे दिन 'सच बोलेंगे तो' सेशन में अपनी कविता के माध्यम से लोकतंत्र और आपातकाल पर खुलकर बात की. राजेश जोशी ने कहा कि कविता हमेशा सत्ता के विरोध में ही लिखी जाती रही है.

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साहित्य आज तक के कार्यक्रम में मशहूर कवि राजेश जोशी और मदन कश्यप
साहित्य आज तक के कार्यक्रम में मशहूर कवि राजेश जोशी और मदन कश्यप

'समरकथा' नामक लंबी कविता से चर्चित होने वाले राजेश जोशी ने साहित्य आजतक के मंच पर 'सच बोलेंगे तो' सत्र में कहा कि कविता हमेशा सत्ता के विरोध में ही लिखी जाती रही है. उन्होंने कहा कि सत्ता के पक्ष में कभी भी कविता नहीं लिखी गई. मानवीय संवेदना के समकालीन विद्रोही कवि राजेश जोशी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं.

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इस दौरान आधुनिक हिंदी साहित्य में कविता, आलेख, आलोचना से अपनी गंभीर सामाजिक व सियासत के विषयों पर सार्थक, वैचारिक उपस्थिति से विशिष्ट पहचान बनाने वाले कवि मदन कश्यप ने भी अपनी रचनाओं से मंच को गुलजार कर दिया.

वहीं अपने कटाक्ष के लिए मशहूर कवि मदन कश्यप ने कहा कि सत्ता के विरोध में लिखने की आदत परंपरा से ज्यादा अपने जीवन से आई है. उन्होंने कहा कि आपातकाल और दमन के बीच इसे लिखना जरूरी हो गया था. जो कारखानों में, खेतों में काम करते हैं, उनका अनुभव सुनाना बहुत जरूरी है. मदन कश्यप ने कहा कि लोकतंत्र सबसे अच्छी व्यवस्था है, लेकिन अब तंत्र के लोक बन चुके हैं.

मदन कश्यप ने भी अपनी कविता... नदी भी है और गांव भी है बस घाट कहीं खो गया है... सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

कविता हमेशा पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के साथ खड़ी रही

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कवि राजेश जोशी ने कहा कि कविता हमेशा पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के साथ खड़ी रही है. उन्होंने कहा कि गांधी जी भी पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के साथ खड़े रहे. उन्होंने यह भी कहा कि कवि बिना राजनैतिक हुए कवि नहीं बन सकता है. कविता हमेशा सत्ता के विरोध में ही लिखी जाती रही है.

 जो विरोध में बोलेंगे, जो सच बोलेंगे, वे मारे जाएंगे... राजेश जोशी की कविता पर बजीं तालियां
कवि मदन कश्यप.

समाज और उसका अनुभव सुनाना जरूरी

सत्ता के लिए उनके विरोधी तेवर को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए राजेश जोशी ने कहा कि निराला से नागार्जुन तक किसी एक का असर नहीं है, बल्कि सत्ता द्वारा किए गए अन्याय पर लिखना ही कवि का काम है.

राजेश जोशी ने कहा कि कोई भी सत्ता हो, चाहे वो पितृसत्तात्मक सता हो, राजनीतिक सत्ता हो या जाति की सत्ता. सभी अपनी प्रजा पर राज करना चाहती हैं. शासन पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि स्वशासन के अलावा कोई भी शासन अच्छा नहीं होता है.

लोकतंत्र पर खुलकर बात

लोकतंत्र पर बात करते हुए राजेश जोशी ने कहा कि लोकतंत्र से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जनता को ज्यादा से ज्यादा अधिकार मिलें. लोकतांत्रिक छूट मिले. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के कई मायने हैं और ये कई तरह के हैं. हमें अमेरिका, ब्रिटेन या भारत के लोकतंत्र में से कौन मिल रहा है, ये महत्वपूर्ण है.

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रचना से मंच को किया गुलजार

राजेश जोशी ने श्रोताओं को रचना सुनाई.

जो विरोध में बोलेंगे, जो सच बोलेंगे, वो मारे जाएंगे...
जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएंगे...
जो अपराधी नहीं होंगे मारे जाएंगे...
जो सच-सच बोलेंगे मारे जाएंगे..
. सुनाई तो जमकर तालियां बजीं.

 

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