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क्यों चल रही हैं साउथ की फिल्में? दिव्य प्रकाश दुबे बोले- उन्हें राइटर की इज्जत है

दिव्य प्रकाश दुबे ने साउथ की फिल्मों के काम करने और हिंदी फिल्मों के ना चलने पर भी बात की. उन्होंने कहा- वो लोग जिस तरह से काम करते हैं मद्रास में, कैफे में चाय वाले से लेकर बड़े लोगों तक आपकी इज्जत इसलिए करते हैं कि आप लेखक हैं. वो एक-एक चीज पर ध्यान देते हैं और फिर आपको समय देते हैं. फिर आपको उसे डिलीवर करना है.

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दिव्य प्रकाश दुबे, वैभव विशाल
दिव्य प्रकाश दुबे, वैभव विशाल

साहित्य आजतक 2022 के आखिरी दिन, रविवार 20 नवंबर को फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन लेखकों ने ओटीटी के बारे में बात की. वेब सीरीज महारानी के राइटर उमा शंकर, मणि रत्नम की फिल्म पोन्नियिन सेल्वन 1 के राइटर दिव्य प्रकाश दुबे और वेब सीरीज स्कैम 1992 के राइटर वैभव विशाल ने 'ओटीटी के जलवे' के बारे में बात की.

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महारानी पर बोले उमा शंकर

उमा शंकर सिंह ने ओटीटी के जलवे पर कहा, 'ओटीटी का जलवा शब्द मुझे बहुत पसंद नहीं है. 2017 में जब मेरी पहली फिल्म आई थी डॉली की डोली, तब फिल्में बहुत अच्छी नहीं चल रही थीं. फिर मेरे पास ऑफर आया कि ओटीटी पर लिखेंगे तो मैंने कहा ये मैं करूंगा और अब दो ढाई साल में महारानी इतनी फेमस है.' उमा शंकर ने कहा कि ये कहानी राबड़ी देवी पर बिल्कुल नहीं है. बिहार की कहानी है, मेरे किरदार का नाम रानी भारती है. हमने किसी को टारगेट नहीं किया, स्वर्ण समाज को ठेस हमने नहीं पहुंचाई. अगर जातिवाद की आलोचना हो रही है तो इसमें बुरा क्या है.

दिव्य प्रकाश को कैसे मिली पीएस 1?

दिव्य प्रकाश दुबे ने इस बारे में बात की क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म सही में सबको पीछे छोड़ दिया है. उन्होंने साथ ही बताया कि कैसे उन्हें पोन्नियिन सेल्वन (पीएस) 1 लिखने काा ऑफर मिला था. वो कहते हैं कि पीएस 1 की कहानी बहुत चमत्कारी थी. मुझे लगता था कि मणि रत्नम और मेरे मिलने का अवसर सात-आठ जन्मों में आएगा. जब वो कहानी बना रहे थे वो चाहते थे कि कहानी बहुत फ्रेश हो. वो मेरे पास आये तो मेरे पास महाभारत का स्क्रीनप्ले था जो मैंने सालों पहले लिखा था. वही लेकर मैं उनके पास गया था. मैं उनसे मिला तो मुझसे मजाक किया गया था कि मणि सर हिंदी समझ सकते हैं. मुझे बाद में समझ आया कि ऐसा नहीं है और नॉर्थ से आने वाले के साथ उनकी टीम की तरफ से ये मजाक किया जाता है.

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साउथ की फिल्में क्यों चल रहीं?

दुबे ने साउथ की फिल्मों के काम करने और हिंदी फिल्मों के ना चलने पर भी बात की. उन्होंने कहा- वो लोग जिस तरह से काम करते हैं मद्रास में, कैफे में चाय वाले से लेकर बड़े लोगों तक आपकी इज्जत इसलिए करते हैं कि आप लेखक हैं. वो एक-एक चीज पर ध्यान देते हैं और फिर आपको समय देते हैं. फिर आपको उसे डिलीवर करना है. 

वैभव विशाल ने ओटीटी और ऑडियंस के बारे में कहा, 'लोगों के कन्सम्शन का पैटर्न अब बदल गया है. हम आपको अलग-अलग चीजें देंगे. जो अलग-अलग चीजों का प्रतिनिधित्व करेगी. जितने ज्यादा लोग और उतने ज्यादा चीजें आएगी.' उनसे ये भी पूछा गया कि क्या ओटीटी के लिए कोरोना ने आपदा में अवसर बनाने का काम किया है? विशाल ने कहा, 'ये पूरी तरह से चेंज नहीं हुई लेकिन आपदा में अवसर जरूर हुआ. मेरा शो स्कैम 1992 लोगों के बीच फेमस हुआ, तो कहीं ना कहीं इस वजह से हुआ. लेकिन मैं मानता हूं कि अगर कोरोना नहीं होता तो भी वो हिट होता.'

लेखक बनने का ये सही समय- वैभव विशाल

तीनों लेखकों से पूछा गया कि ओटीटी में प्रतिस्पर्धा कहां है और सफलता का श्रेय किसे जाता है? वैभव कहते हैं- श्रेय तो ऑडियंस को जाता है. मैं कहूंगा कि अब कहानियों को दिखाने का समय आ गया है. अगर आप लेखक हैं तो इससे बेहतर समय और कोई नहीं हो सकता. हर कहानी लिखे जाने का इंतजार कर रही है. कहानी अच्छी होनी चाहिए. आपको पता होना चाहिए कि ये कहानी अच्छी है और ये चलेगी. मेरा एक डायलॉग है 'रिस्क है तो इश्क है'. ये रिस्क लेने का समय है. 

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वैभव विशाल ने अपनी नई वेब सीरीज गांधी के बारे में बताते हुए कहा कि हम गांधी के गांधीत्व को जैसा था वैसा दिखाना चाहते हैं. रामचन्द्र गुहा की किताब पर ये सीरीज आधारित है. जरूरी है कि दर्शक गांधी जी को समझे. हमारा काम जो जिंदगी उन्होंने जी उसे वैसा दिखाना है. 

यूथ को दिव्य-उमा शंकर की सलाह

दिव्य प्रकाश दुबे ने यूथ को सलाह देते हुए कहा, 'आप अपने मोहल्ले-गली की कहानी सही से लिख दें काफी है. हम दूसरे क्या पढ़ना चाहते हैं उसी का प्रेशर लेते हैं. जबकि दूसरे आपकी कहानी पढ़ना चाहते हैं. जीवन से आने वाली कहानियां मिसिंग हैं. महेश भट्ट जी ने एक इंटरव्यू में कहा था आपकी स्क्रिप्ट इतनी फूलप्रूफ होनी चाहिए कि कोई उसे ब्लफ ना कर पाए. बस इतनी-सी बात है. 

इस बारे में आगे लेखक उमा शंकर ने बात की और कहा- मुंबई में भी ऑथेनिक कहानियां पसंद की जाती हैं. आप नया क्या ऑफर कर रहे हो ये मायने रखता है. हिंदुस्तान कहानियों का देश है. यहां हर एक पत्थर, पेड़, नदी की कहानी है. आप जाकर लिख रहे हो कि एक लड़का है, उसे एक लड़की से प्यार होता है. लड़की का बाप अमीर है. आप जाते हो और इस कहानी को बेचने की कोशिश करते हो, वो रिजेक्ट हो जाती है तो आप बोलते हैं कि देखो लोगों को कद्र नहीं है. 

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ओटीटी पर जितनी विवधता है वही उसकी बड़ी बात है. आप ओटीटी के अलग-अलग शो को देख लीजिए सब अलग है. अब हम स्टार पर डिपेंड नहीं करते. अब हम 25 करोड़ में 7 घंटे का ओटीटी कंटेंट बना देते हैं और अपनी बात रख देते हैं. अब ऑडियंस और कटेंट के बीच में कोई नहीं है. मेकर्स, डिस्ट्रिब्यटर कुछ नहीं. कहीं भी आप इसे देख सकते हो. अब आदमी तीन-चार सिनेमाहॉल अपनी जेब में लेकर चल रहा है.

 

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