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कहानी | आधी रात की आख़िरी कैब | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

रात के सन्नाटे में एक कैब ड्राइवर को मिली एक ऐसी सवारी जिसके साथ किया हुआ सफर वो हमेशा याद रखेगा। ढाई साल पहले दिल्ली के एक इलाके में हुई लड़की की हुई मौत से उस सवारी का क्या रिश्ता था और क्यों शहर के एक ख़ास चौराहे पर कैब्स का एक्सीडेंट हो जाता था? इन हादसों के पीछे की ख़ौफनाक हक़ीकत सुनिए 'स्टोरीबॉक्स' में जमशेद कमर सिद्दीक़ी से

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Jamshed
Jamshed

उस ज़माने में दिल्ली में नई नई कैब सर्विस आई थी... और मै उन शुरुआती लोगों में था जिन्होंने दिल्ली में लक्ष्मी नगर, शेख सराय, ज़ाकिर बाग, कारोल बाग जैसे इलाकों में कैब का परमिट बनवाया था और सच बताऊं तो उस वक्त काफी मुनाफ़ा हुआ था... आज कैब में वैसा मुनाफा नहीं है। पर उन दिनों का एक किस्सा मुझे याद आता है। अगस्त सितंबर के दिनों में कैब ड्राइवर्स के बीचे ये मान्यता हो गयी कि प्रीत सराय इलाके से कोई पिक अप नहीं लेना है। मुझे इस बारे में पता नहीं था कि क्यों नहीं लेना है पर... बस इतना मालूम था कि प्रीत सराय में एक चौराहे के लगभग हफ्ते में चार एक्सीडेंट्स हो रहे थे। और सभी रात के वक्त... इत्तिफाक से किसी भी एक्सिडेंट में कैब ड्राइवर सर्वाइव नहीं कर पाए और मौके पर ही उनकी डेथ हो गयी। अजीब बात ये है कि गाड़ी आराम से सड़क पर चल रही होती थी, कहीं कोई रुकावट नहीं, कोई रेड लाइट नहीं, कुछ भी नहीं... पर न जाने कैसे गाड़ी अपने आप एक स्पीड ब्रेकर से पहले पलट जाती थी। जैसे किसी बड़ी ताकत ने चलती गाड़ी को पलट दिया हो। अब तक 13 ड्राइवर्स की मौत हो चुकी थी...
कैब ड्राइवर्स की एसोसिएशन के एक पुराने ड्राइवर साहब थे, सरदार जी थे... उन्होंने बताया था कि इन एक्सीडेंट्स मे से एक एक्सीडेंट के बाद एक ड्राइवर की जब आखिरी सांसे चल रही थीं तो उसने लोगों को बताया था कि गाड़ी के सामने एक औरत आकर खड़ी हो गयी थी... उसका चेहरा डरावना था... आंखे सफेद और पैर ... दूसरी तरफ थे। (बाकी की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें या इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए ठीक नीचे दिए SPOTIFY या APPLE PODCAST के लिंक पर क्लिक करें)

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अब देखिए आपने फिल्मों में देखा होगा कि हीरो जो होता है वो तब तक किसी बात को मानता नहीं है, जबतक उसके साथ वो हो न जाए। तो हम भी एक ज़माने में हीरो हुआ करते थे, रात की शिफ्ट करते थे.. .नई उम्र का जोश था... जवानी थी.. डर वर किस चिड़िया का नाम है पता ही नहीं था। तो एक रात जब हमारे पास प्रीत सराय की बुकिंग आई... तो सच बताएं तो एक मिनट के लिए एक्सेप्ट का बटन दबाते हुए हाथ कांपा तो था... लेकिन फिर हमने दबा दिया। कि देखा जाएगा जो होगा... और चल दिए लोकेशन की तरफ... कुछ देर बाद हम एक गली में पहुंचे.... सुनसान गली थी... ज़्यादातर मकान ठीक ठीक हैसियत वाले लोगों के थे... मैंने शीशा नीचे किए बिना इधर उधर देखा... मैं फोन करने ही वाला था कि तभी खटाक की आवाज़ हुई और कार का पिछला दरवाज़ा खुला.... चौंक कर पीछे देखा तब तक एक लड़की कैब की पिछली सीट पर बैठ गयी। 

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30-35 की उम्र होगी, बड़ी बड़ी आंखें.... खूबसूरत चेहरा, लंबे बाल.... सफेद रंग का सूट जिसपर करीने से ओढ़ा हुआ दुपट्टा और माथे पर बिंदी। 

कहां जाना है मैम मैंन शीशा एडजस्ट करते हुए कहा तो वो खामोश रही। 
मैडम... हैलो... मैंने फिर से पूछा तो वो बोली
डेस्टिनेशन ऐप में लिखा था
मैं झेंप गया। बेल्ट कसी और गाड़ी आगे बढ़ा दी। मैंने देखा कि जो लोकेशन गाड़ी में दिखा रहा था, वो काफी दूर थी... थोड़ा खुश हुआ कि चलो.. बार बार सवारियों के नखरे नहीं उठाने पड़ेंगे बस एक सवारी ही तीन के बराबर चार्ज दे जाएगी। गाड़ी चल पड़ी थी.... अंधेरी सन्नाटी रोड पर तेज़ रफ्तार में गाड़ी चली जा रही थी। 
गाड़ी में हल्का हल्का म्यूज़िक बज रहा था.... मेरी नज़र सामने वाले शीशे में गयी तो नज़र उस लड़की से टकरा गयीं। मैं चौंक गया... वो लड़की एक टक शीशे में ही देख रही थी। 

क्या हुआ मैम... कुछ चाहिए आपको मैंने मुस्कुरा कर पूछा तो वो खामोश रही। फिर अचानक से उसकी आवाज़ गूंजी - भूतों पर यकीन करते हो? 
अचानक से हुए सवाल से मैं कांप गया। 
क्या... क्या मतलब 
-    मैं पूछ रही हूं। भूत प्रेत में यकीन रखते हो... 
-    नहीं... मैं नहीं मानता... भूत प्रेत कुछ नहीं होता। लेकिन आप ये सब क्यों पूछ रही हैं। 
फिर से खामोशी छा गयी... उधर से कोई जवाब नहीं आया। मैं थोड़ा सकपका गया। उसने फिर पूछा – मैम आपने बताया नहीं कि
- गाड़ी रोको... अचानक से उस लड़की की आवाज़ फिर गूंजी... 
- जी... क्या कहा
- गाड़ी रोको.... लड़की ने फिर कहा... तो मैंने हैरानी के साथ गाड़ी में ब्रेक मारा.. बोली ऐतराज़ न हो तो मैं आगे बैठ जाऊं... मुझे पीछे बैठना पसंद नहीं है। उसने कहा तो मैं थोड़ा सकपकाया ज़रूर लेकिन फिर अपनी घबराहट छुपा ली.. 
- हां ज़रूर ... आ जाइये.... आगे आ जाइये
कार का दरवाज़ा खुला और वो लड़की उतर कर आगे वाली सीट पर आ गयी। कार फिर से चलने लगी। 
मेरे मन में अब डर बैठ चुका था... समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्यों कर रही है वो लड़की... मैं अब कनखियों से उसे देखने की कोशिश करने लगा। मैंने देखा कि लड़की का रंग गोरा था... उंगलियां नाज़ुक, उसके बाल लंबे थे और आंखे बड़ी बड़ी.... उसके नाखून में लाल रंग था। वो देखने में खूबसूरत थी। लेकिन जब वो बिल्कुल आंखों में आंखे डालकर देखती थी तो डर लगता था, जैसे उसकी आंखों में कई राज़ छुपे हों। 
गाड़ी सुनसान रास्ते से गुज़रते हुए चली जा रही थी। मैप का नैविगेशन मेन रोड से होकर एक अंदर की सड़क पर आ गया था जहां दोनों तरफ बड़े बड़े पेड़ लगे हुए थे और दूर तक कोई आदम ज़ात नहीं थी। गाड़ी तेज़ रफ्तार सड़क पर भागती चली जा रही थी। मैंने गर्दन मोड़ने के बहाने दाएं-बाएं करते हुए एक नज़र उसे देखने की कोशिश की... देखा वो लड़की कार के दरवाज़े से टिकी हुई शीशे पर जमी भाप में उंगलिया चला रही थी। वो कोई आकृति बना रही थी। 
मैंने ग़ौर से उस आकृति को देखा तो कांप गया... भाप में उसने एक डरावना चेहरा बनाया था, जिसके होंठों के किनारे बड़े बड़े दांत थे और आंखे फैली हई थी... और वो डरावना चेहरा धीरे धीरे मिट रहा था... कबसे कैब चला रहे हो उसने पूछा 
बस कुछ दिन हुए.. वैसे मैं थर्ड ईयर स्टूडेंट हूं बीकॉम... गोतम बुद्ध कॉलेज में पढ़ता हूं। उसने बताया... 
मैं खामोश रहा .... फिर बोला, आप.. इतनी रात में निकली हैं, कोई इमेरजेंसी है क्या
वो बोली, नहीं, इमरजेंसी नहीं है। मैं रात में ही निकलती हूं... मुझे रात पसंद है... 
मेरी ज़बान लड़खड़ाने लगी। पर अपने डर को संभाले रहने में ही समझदारी समझी। मैं अनजान बनकर बोला, मतलब ? रात क्यों पसंद है.... 
अंधेरा... उसने कहा, अंधेरा पसंद है मुझे... देखो अंधेरा... कितना खूबसूरत होता है न.. ये हर चीज़ को अपने में समेट लेता है... लोग अंधेरे से डरते हैं... जबकि डरना उन्हें रौशनी से चाहिए... अंधेरे में तो कुछ दिखता ही नहीं... जब कुछ दिखे ही ना .. तो डर कैसा। कहते... कहते उसने फिर से कार के कांच में भाप मारी और कुछ तस्वीर बनाने लगी। 
मुझे लग रहा था कि अब मैं फंस चुका था। उसे यहां बीच रास्ते में छोड़कर जा भी नहीं सकता था। लेकिन स्टीयरिंग पर कसे उसके हाथों ने पसीना छोड़ना शुरु कर दिया था। घबराहट चेहरे पर दिखाई दे रही थी। उसने फिर पूछा – तो आपको अंधेरे से डर नहीं लगता? 
-    नहीं, मुझे नहीं लगता ... पर हां... मुझे लोगों से डर लगता है... 
-    लोगों से
-    हां, इंसानों से... इंसान सबसे खतरनाक होते हैं... 
-    ऐसा क्यों कह रही हैं आप
उसने कोई जवाब नहीं दिया। गाड़ी के अंदर खामोशी थी, सिर्फ बाहर की सरसराती हुई हवा की हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी। तभी उस लड़की ने कुछ गुनगुनाना शुरु किया। हलकी सरसराती आवाज़ में, वो कुछ गा रही थी। मैं कनखियों से उसकी तरफ देखने लगा.... तभी अचानक सड़क पर एक लैंपपोस्ट की तेज़ रौशनी का साया कार के अंदर होकर गुज़रा तो मैंने उस लड़की का अक्स कार की खिड़की के शीशे में देखा... मैं कांप गया... 
खिड़की के कांच में जो अक्स दिख रहा था, उसमें उसका उस तरफ का चेहरा दिख रहा था.... वो चेहरा भयानक तरीके से जला हुआ था... उसकी खाल चिपचिपाती हुई थी। गाल दातों तक चिरे हुए... मैं कांप गया... कार ज़रा सी लहरा गयी। मैंने कार संभाली और फिर से शीशे की तरफ देखा लेकिन अब रौशनी नहीं थी....  मैं अब चीखना चाहता था... पर चीखने से भी डर रहा था। मैंने दिमाग चलाया और बहाने से कार की लाइट जलाई। जानता था कि कार के अंदर की लाइट जलाने से उस लड़की का अक्सर फिर से खिड़की के कांच में दिखेगा। 
लाइट जलाई... और बहाने से डैश बोर्ड पर कुछ देखने लगा... फिर इस बार उसका चेहरा बिल्कुल नॉर्मल था। मैंने गहरी सांस ली... 
अभी मैं कुछ दूर ही चला था कि अचानक मुझे सड़क के किनारे कोई खड़ा दिखाई दिखा। ग़ौर से देखा... 

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ये कौन है मैंने स्टियरिंग घुमाते हुए बुदबुदाया.... देखा कि सड़क के किनारे कोई खड़ा था। उस सड़क पर आम तौर पर कोई इमारत नहीं थी... वहां ठहराव के लिए कुछ नहीं था। ज़रूर किसी की गाड़ी रास्ते में खराब हो गयी होगी। मैंने सोचा... और कार को पास ले गया.... 

अरे ये तो कोई लड़की है... मैंने कहा तो साथ बैठी लड़की भी देखने लगी। मैंने देखा कि बाहर एक लड़की खड़ी थी.. कोई 20-22 साल की लड़की, जींस और टॉप पहने, उसके घुंघराले बालों में खूब सारी रंग बिरंगी चिमटियां थीं... और पास में उसकी स्कूटी खड़ी थी। 
लगता है बेचारी परेशानी में है... अगर आप को ऐतराज़ न हो... तो दो मिनट गाड़ी रोक कर पूछ लूं... 
वो कुछ नहीं बोली... मैंने कार उसके पास जाकर रोक दी। 
हैलो.... क्या हुआ कोई प्रॉब्लम है क्या.... मैंने पूछा तो उस लड़की ने पहले तो मेरी तरफ ग़ौर से देखा फिर बोली... स्कूटी में पेट्रोल खत्म हो गया है.... मैंने पापा को फोन कर दिया है वो आ रहे हैं... आप जाइये...
मैंने ने कहा... वो तो ठीक है लेकिन इस जगह थोड़ी देर के लिए रुकना भी खतरे से खाली नहीं है... आप अकेली हैं... रात भी काफी हो गयी है... फिर अंदर बैठी उस लड़की की तरफ देख कर कहा, अगर आप को कोई प्रॉब्लम न हो, तो कुछ देर गाड़ी रोक कर पेट्रोल निकाल कर इन्हें दे दूं... बस दस मिनट लगेंगे... 
वो लड़की मेरा चेहरा देखती रही....मैंने उसे हां समझा... मैंने हैंड ब्रेक खींचा और कार से उतर कर डिग्गी खोली... एक पाइप निकाला... फिर टंकी में डालकर मुंह से पेट्रोल खींचा और एक पुरानी बोतल में भरने लगा... थोड़ी देर बाद... जब आधा लीटर के आसपास पेट्रोल हो गया तो मैंने उसे दिया... और कहा

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आप स्कूटी चलाइये... मैं कुछ दूर साथ चलता हूं पीछे-पीछे... ये एरिया ठीक नहीं है... कुछ दूर पर चौराहे पर रौशनी दिखने लेगेगी... वहीं पेट्रोल पंप है। 
उसने मेरी तरफ मुस्कुरार देखा और स्कूटी स्टार्ट की... अब अंधेरी सड़क पर वो स्कूटी चला रही थी और मैं अपनी कार उसके पीछे पीछे. मैंने कार चलाते हुए देखा कि मिरर में पीछे बैठे सवारी मुझे घूर रही थी। कुछ देर के बाद... हम एक चौड़ी सड़क पर पहुंचे... वहां से हर तरफ रौशनी और चहल पहल थी... एक किनारे पेट्रोल पंप पर उसने स्कूटी रोकी... मैंने कार उसके पास ले जाकर रोकी... 

ठीक है अब मैं चलता हूं मैंने कहा तो उसने कहा... ..थैंक्यू सो मच... आप नहीं होते तो पता नहीं क्या होता... 
- क्या होता.. कुछ भी नहीं... आपके पापा तो आ ही रहे थे
- पापा नहीं आ रहे थे... उस स्कूटी वाली लड़की ने कहा... पापा तो दूसरे शहर में रहते हैं... वो तो मैंने इसलिए कह दिया क्योंकि मुझे कैब ड्राइवर्स के बार में .. यू नो... जो बाते कही जाती हैं... पर सच में अच्छे लोग हर जगह होते हैं... थैक्यू सो मच... मैंने शर्माते हुए कहा
- थैंक्यू मुझे नहीं, इन्हें कहिए.... कहते हुए मैंने बगल वाली सीट पर बैठी उस लड़की की तरफ इशारा किया.. इन्होंने ही परमिशन दी... तभी तो मैं आपकी मदद कर पाया... आज कल लोग भी मदद नहीं करते... कहते हैं गाड़ी मत रोको... बस चलते रहो... इनकी परमिशन से ही तो मैं मदद कर पाया आपकी
उसके ये कहते ही रंगीन चिमटी वाली लड़की के चेहरे के भाव अचानक से बदल गए। एक पल के लिए वो खामोश हो गयी... फिर बोली. किसकी परमिशन? 
- इनकी... 
- इनकी किनकी
- ये... जो मेरी बगल वाली सीट पर बैठी हैं... 
अब वो रंगीन चिमटियों वाली लड़की कुछ हड़बड़ाई सी लगी 
क्या हुआ मैंने कहा तो वो बोली देखिए .. आप ने मेरी मदद की इसका शुक्रिया... लेकिन आप जो मज़ाक कर रहे हैं... ये अच्छी बात नहीं है। उस वक्त जब आपने ने मुझे बैठने के लिए किसी से पूछा, न तब कोई आपकी बगल वाली सीट पर था... न अब है.... 
मैं चौंक गया... क्या... ये..ये मैडम आपको दिखाई नही दे रही
- कौन मैडम... वहां तो कोई नहीं है... 
मैं हड़बड़ाया सा इधर उधर देखने लगा... और स्कूटी वाली लड़की तेज़ कदमों से चली गयी। और बगल वाली सीट पर बैठी लड़की मुस्कुराने लगी। मैं घबरा गया... माथे पर पसीना था.... सांसे तेज हो गयीं, पैर कांपने लगे.... मैं जल्दी से सीट बेल्ट खोलने लगा... तभी साथ वाली लड़की ने मेरे हाथ पर हाथ रख दिया। फिर मुस्कुराकर कहा... 
-    डरो मत... कुछ नहीं होगा तुम्हें
-    छोड़ो मुझे... कौन हो तुम... छोड़ दो... मुझे जाना है... छोड़ो मुझे... मैंने कुछ नहीं किया
वो इस बार ज़रा मुस्कुराई और बोली, कुछ नहीं किया तुमने... और कुछ नहीं होगा तुम्हें... भरोसा करो मेरा...... गाड़ी चलाओ... चलाओ.... इस बार उसने ज़रा सख्ती से कहा... तो मैंने डरते डरते गाड़ी चला दी। बारिश तेज़ होने लगी.... मैंने वाइपर चला दिये.... 
-    कौन.. कौन हो तुम... मैंने गाड़ी चलाते हुए डरते-डरते कहा... वो कुछ देर खामोश रही... फिर बोली... ढाई महीने पहले....एक हादसा हुआ था... हमारे प्रीतसराय में ही... एक लड़की हमारी सोसाइटी में रहती थी, कॉल सेंटर में काम करती थी... वो रोज़ाना देर रात अपने काम से लौटती थी। अपने घर में वो अकेले कमाने वाली थी. गायत्री नाम था उसका... 
-    तो – मैंने बेचैनी से कहा 
-    एक रात जब गायत्री लौट रही थी... वो भी ऐसी ही रात थी... घनघोर अंधेरी... गरजती हुई.... बादल ऐसा लगता था कि बस बरसने ही वाले हैं। ड्राइवर तुम्हारी ही उम्र का एक लड़का था... उसने गायत्री को देखा... और उसकी नीयत बदल गयी। उसके अंदर का शैतान जाग उठा.... कार चलाते हुए उसने फोन उठाया और किसी को मैसेज किया। थोड़ी देर के बाद... उसने एक सुनसान जगह पर कार रोक दी। वहां पर उसका वो दोस्त भी आ गया और फिर.... कहते कहते वो खामोश हो गयी। 
मैंने कुछ गटकते हुए पूछा... फिर...... कोई आवाज़ नहीं आई... वो शीशे से बाहर देखती रही। मैंने फिर पूछा... क्या हुआ फिर... बताइये प्लीज़... उस लड़की ने पलट कर मेरी तरफ देखा और आंखे फैलाकर बोली.... अगली सुबह, सड़क किनारे झाडियों में उस लड़की की लाश मिली। आदित्य कांप गया... बोली, तन पर एक कपड़ा नहीं था। उन दोनों ने उस लड़की को कार के दरवाज़े से बांधकर अपनी हवस का शिकार बनाया था... और जब मन भर गया तो उसे वहीं फेंक कर भाग गए। जाते जाते उन्होंने उसकी पहचान मिटाने के लिए कार से पेट्रोल निकलकर उसके चेहरे को जलाने की कोशिश भी की... वो तो ओस की वजह से आग चेहरे को सिर्फ एक तरफ से जला पाई... इसलिए उसकी डेड बॉडी की पहचान हो पाई। 
- पर आपको ये सब कैसे पता मैंने पूछा.... तो उसने मेरी तरफ चेहरा घुमाया और कहा... 
क्योंकि मेरा नाम गायत्री है ... 
मैंने पूरी ताकत के साथ ब्रेक पर पैर रख दिए... उसका चेहरा एक तरफ से जला हुए था। कार पहियों की रगड़ के साथ फिर से एक सुनसान सड़क पर रुक गयी। 
उसने बताया कि पिछले ढाई महीनों में कैब ड्राइवर्स का एक्सीटेंड हो चुका है। उन मौतों के पीछे वही है, वो रात को अकेले उस इलाके में आने वाले ऐसे कैब ड्राइवर्स को इसी तरह मार देती है... जिनकी नीयत खराब होती है। 
तो... तो क्या अब तुम मुझे भी
नहीं, मैं तुम्हें नहीं मारूंगी... अगर उस रात मुझे तुम्हारे जैसा कोई शख्स मिला होता तो आज मैं भी ज़िंदा होती। 
उसकी आंखों में आंसू थे... जो जले हुए गालों पर लुढ़क रहे थे। 
.. नेक काम करते रहना... चलती हूं.... 
कहते हुए गायत्री ने कार का दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गयी। उसने दरवाज़ा बंद करने के बाद एक बार मुझे पलट कर देखा... और वापस सामने की सड़क पर लंगड़ाते हुए चलकर जाने लगी.... वो चंद कदम आगे बढ़ी.... मैंने उसके पैरों की तरफ देखा.... उसके पैर उल्टे थे.... पंजे पीछे की तरफ और एढ़ी आगे। वो चलती रही... और फिर उस लंबी सड़की पर आंखो से ओझल हो गयी... जहां मैं उस रात के बाद से आज तक कभी नहीं गया.... 

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