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कहानी | एक चुगलखोर की मौत | Storybox with Jamshed Qamar Siddiqui

चुगलखोर चाचा जब मर कर दूसरी दुनिया में पहुंचे तो उन्हें पता चला कि वो तो दोज़ख में भेज दिये गए हैं। वहां उन्होंने क्या किया कि उन्हें वापस जन्नत भेजा गया और आखिर क्यों उन्हें जन्नत रास नहीं आई - सुनिए पूरी कहानी स्टोरबॉक्स में जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से

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कहानी - एक चुगलखोर की मौत
राइटर - जमशेद कमर सिद्दीक़ी

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देखिए साहब यूं तो दुनिया में मज़े की बहुत सारी चीज़ें हैं... आप बढ़िया लज़ीज़ खाना खाइये... मज़ा आ जाए... कोई बढ़िया फिल्म देखिए...क्या ही कहने... आप किसी पुराने दोस्त से मिलिए... वाह वाह... पर इन सारे मज़ों में जो मज़ा इंसानी मसलहत में सबसे ऊपर है.. वो है किसी की बुराई करने का मज़ा.... आए हाय हाय हाय... ग़ीबत का जो मज़ा है... लगाई बुझाई में जो आनंद है... वो कहीं नहीं है... इधर आपके चचा ने आपके मामू के बारे में एक जुमला कहा... आप को करना बस इतना है कि वो जुमला मामू के घर तक पहुंचा देना है... और ध्यान इस बात का रहे कि जुमला जस का तस ना हो... उसमें कुछ अपनी इमदाद भी शामिल कर दें... 3 को 13 ज़रूर बनाएं... इसके बाद जो आग लगेगी... आए हाय हाय ... सच कह रहा हूं सर्दियां मज़ें में कट जाएंगी.... (पूरी कहानी नीचे है लेकिन इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए ठीक नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें) 

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जब मैं ये ज़िक्र कर रहा हूं तो आप को कोई ना कोई आदमी याद आ रहा हो जिसकी ये आदत रही होगी। ऐसे ही एक आदमी के बारे में मैं भी जानता हूं... हमारे मुहल्ले में रहते थे... सब उन्हें चचा चा कहा करते थे। चचा में चुगलखोरी की ऐसी आदत थी कि पूछिए मत... इधर कोई बात उनको पता चली कि किसी के घर में झगड़ा हुआ है... बस अब पेट पकड़ के घूमते फिरेंगे कि कोई मिल जाए तो बताएं। कोई मिला तो बोले... “ऐ भैय्या, इधर आओ... हां...। कुछ पता है कि यूं ही सटर-सटर घूम रहे हो....
क्या हुआ चचा...
अरे रात में पीले दरवाज़े वाली मास्टराइन नहीं है... वो और उसकी बहू में जो गाली-गलौज हुआ है.. अरे मतलब... समझो कि समझो जूते में दाल बटी है अरे इधर आओ बताएं...

चचा जब तक जब तक दिन में एक बार इधर की बात उधर ना लगा दें... उनकी रात का रोटी-सालन नहीं हज़म होता था।
पर ये कहानी उन चचा की ज़िंदगी की नहीं है... ये कहानी है उनकी मौत की... बल्कि यूं कहिए कि मौत के बाद की... हम आपको बताएंगे कि जब चचा की मौत हुई और वो पहुंचे अल्लाह मियां की बारगाह में तो क्या हुआ... तो हुआ यूं कि एक रोज़ बेचारे चचा फर्मा गए इंतकाल... मोहल्ला सूना हो गया भाई साब... वो चुहलबाज़ियां, वो लगाई-बुझाई। वो ग़ीबत... अब कहां थीं... ज़िदगी का सफर खत्म हो गया था चचा का... और वो पहुंच गए थे उस दुनिया में... जहां से कोई नहीं लौटता... मौत के गहरे काले अंधेरे और घुप्प खामोशी के बीच... अचानक चचा की आंख खुली... उन्होंने खुद को एक अजीब सी जगह पर, अजनबी लोगों की एक लंबी कतार में खड़ा पाया।
ये... ये कौन सी जगह है भैय्या... ये बिना टिकट के कहां आ गए हम...
परलोक हैगा भाई साहब... मर गए थे आप... एक दूसरे चचा ने अपनी नाक के दोनों छेदों में लगी रूई निकालते हुए कहा... ये हम लोग मरने के बाद वाली दुनिया में हैंगे... लाइन में लगे रहिए...

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वो एक अजनबी जगह जहां आसमान का रंग कुछ अलग था। सफेद बादलों से घिरी उस जगह पर सामने एक बहुत बड़ा सा दरवाज़ा था। वहां पर कुछ जिन टाइप के लोग खड़े थे... जिनके एक हाथ में हंटर था और दूसरे में लाउडस्पीकर... हजरात.. हज़रात हज़रात... कौनू अगर लाइन से हियां-उहां हुआ... ज्यादा निकट किया... गर्दन चटकाई देब अभैन... पट्ट से... सीधे खड़े  ... ऐ पतले पैर... तोका बहुत आ रही है का... सीधे ख़ड़े हो
भाई साहब ये तो बोल कैसे रहा है.. चचा ने आगे खड़े आदमी से कहा... वो पलटा बोले,.... हम्म... लैंगवेज भाई साहब खराब इनकी बहुत....
ख़ैर थोड़ी देर बाद एक टोकन कटवा कर चचा लाइन में आगे बढ़ते अंदर पहुंचे... लोगों से पूछा – अरे भाई साहब ये... जन्नत है कि दोज़ख....
- दोज़ख है ये... नरक... एक आवाज़ आई तो चचा ने पलटकर देखा... एक आदमी लंगड़ाता चला आ रहा था... गाल भी लाल था जैसे कई चमाट पड़े हों... बोला... इक्वाइयी काउंटर गया था... एक सवाल पूछने पर दो लप्पड़ और एक घुटने पर दो लाठी मारते हैं... कंफर्म करके आ रहा हूं
दोज़ख... चचा के चेहरे पर गुस्सा आ गई। ये... ये क्या बात हुई... मतलब... हमने सारी ज़िंदगी अच्छे काम किये... आवारा कुत्तों को बिस्किट खिलाए, अंधों को सड़क पार करवाई, गांव में नाली खड़ंजा के झगड़ों में फैसला कराया... और सिला ये ... ये कि हमें दोज़ख में भेज दिया गया.. क्यों आखिर क्यों...
उन्होंने दूर तक देखने की कोशिश की। लेकिन सामने कुछ दूर पर बनी दीवार के उस पार कुछ नहीं दिख रहा था। इधर मैदान था जिसपर सूखी हुई घास थी। और दोनों तरफ कांटो वाले बबूल के पेड़ लगे थे। लोग हाथ में पर्ची लिए इधर उधर घूम रहे थे।
(बुज़ुर्ग मर्दाना आवाज़) “ये पता... तो यही बताया था... तभी एक आदमी ने चचा से कहा, गर्म तेल की कढ़ाही वाला चौक, कोड़े वाला मोहल्ला, दोज़ख ब्लॉक थ्री ... भाई साहब ये देखिए.. ये पता देखिएगा” वो बोले अमा हटो हम खुदी परेशान है... बताइये पूरी ज़िंदगी अच्छा काम किया.. और मरे तो दोज़ख में लाकर पटक दिया”
तभी ऐलान हुआ... यहां भीड़ मत लगाइये... आगे, मेन गेट की तरफ बढ़ते रहिए.. वरना तीन कोड़े पड़ेंगे”
अरे सुनिए... ऐ भाई साहब... ऐ भैय्या, चचा ने वहां से गुज़रते एक सिपाही जैसी वर्दी पहने शख्स को आवाज़ लगाई। हां बोलिए... उसने चमड़े का पट्टा घुमाते हुए बेरुखी से पूछा। चचा बोले, “ भैय्या, ये... मतलब आप एक बार रजिस्टर चेक कर लेते... कोई गलती तो नहीं है... मतलब हम दोज़ख में क्यों... उसने चचा के हाथ से कागज़ लिया ... बोला... कोई गलती नहीं हैं.. बिल्कुल सही है… इसमें लिखा है कि आपको चुगलीबाज़ी, इधर की उधर लगाने के गुनाह मे यहां भेजा गया है। ये पकड़िये... “
ओह तो ये बात थी... चचा को अब समझ आई। पर अब क्या ही हो सकता था। ख़ैर... फिर ऐलान हुआ... मोहतरम हज़रात... गेट का रास्ता छोड़ दें... अपनी अपनी तशरीफें आगे ले जाएं... वरना तशरीफ में तकलीफ पैदा कर दी जाएगी... चल आगे
ख़ैर चचा अंदर पहुंचे तो देखा एक जगह थी जहां पर लोगों को सज़ा दी जा रही थी... एक सात फिट का आदमी खड़ा था... जो बहुत ही चौड़ा, सफेद चोंगा सा पहने था और उसकी बड़ी-बड़ी मूंछे थीं... उसने गला खंखारा
वेलकम टू दा लगाई बुझाई एंड चुगलखोरी पनिशमिंट सेंटर ... ये सेंटर इस पूरी दोज़ख का बड़ा ही प्रस्टीजियस सेंटर है... हमारा इतिहास बहुत गौरवशाली है। आप सब लोग जो यहां आए हैं वो इसलिए आए हैं ... क्योंकि आप लोग लगाई-बुझाई करते थे... चुगलखोरी करते थे... खानदानों में लड़ाइयां लगवाते थे... मुहल्ले में इधर की बात उधर करते थे। तो अब आप लोगों को सज़ा देने का टाइम शुरु होता है ... कहते ही उस आदमी ने फिर पलट कर उस बालकनी की तरफ देखा
और पलट कर पीछे की तरफ एक बालकनी पर खड़ी स्टाफ की एक फीमेल कर्मचारी जिसने गुलाबी फ्रॉक पहन रखा था, उसके कंधे पर बैज लगा था नगमा... उस गुलाबी फ्रॉक वाली नगमा के सामने भी कुछ लोग बैठे थे।
सफेद चोगा वाले आदमी ने कहा,
 
जहां वो गुलाबी फ्रॉक वाली नगमा खड़ी थी। नगमा के हाथ में चाय की केतली जैसा कुछ था। तो उन दोनों की नज़रें मिलीं और दोनों शर्मा गए... चचा ताड़ गए कि कुछ तो है...
वो आदमी आगे बोला... तो एक सज़ा तो ये है... कहते हुए उसने अपना चोगा थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपने जूते उतारे... जूते उतारते ही उसके मोज़ों से निकलने वाली खतरनाक महक से तीन सौ मीटर तक खड़े लोगों के नाक के बाल झुलसने लगे... उसने अपना मोज़ा उतारा और लाइन से खड़े लोगों के पास आया... बोला, एक एक करके ये मोज़ा आप लोगों को सुंघाया जाएगा... और आप को पूरी सांस भर के इसे सूंघना है। सब बेचारे घबरा के एक दूसरे को देखने लगे... कुछ लोगों ने तो मौत की भीख मांग डाली... इसके बाद वो आदमी बोला... या तो आप लोग एक काम कर सकते हैं... हमारी संस्था आपको इसमें एक ऑप्शन भी देती है... वो देखिए वहां एक बालकनी है... या तो आप इस मोज़े वाली सज़ा को झेल लें... और या तो... उधर बालकनी पर जाएं और वहां मेरी सहयोगी नगमा हैं... या तो आप मोज़े सूंघ लीजिए... या फिर उनके पास जाकर एक कॉनट्रैक्ट पर साइन करें जिसके तहत आपको हर सुबह शाम ग्रीन टी पीनी पड़ेगी।
ग्रीन टी का नाम सुनते ही... लोग मोज़ा सूंघने को तैयार हो गए।
एक बूढ़ी औरत चचा के कोहनी मारकर बोली.... आए हटाओ वहां... कौन पिये ग्रीन टी... हमाई सहेली के कहने पर पूरी जिंदगी यही बदज़ायका पीते रहे... ना वज़न घटा ना कुछ... अब मरने के बाद फिर वही.... नई भैय्या... लाओ मोज़ा लाओ....
लेकिन चचा के दिमाग में कुछ और चल रहा था... बोले... अरे वो सब छोड़िये... आप ने कुछ गौर किया... ये जो सबको मोज़ा सुंघा रहा है... बार बार पलट के वो सहयोगी नगमा देख रहा है... हमें तो लग रहा है इन दोनों का कुछ चल्ला है... का लगता है आपको
वो बूढ़ी औरत बोली, अरे मजा आ गया भैय्या... बड़े दिनों के बाद किसी ने किसी की बात बताई है... जब से मरे हैं... कोई खबर फैला ही नहीं पाए.... सही कह रहे हो आप... हमको भी यही लगा... ये देखो... देखो कैसे देख रही है इसे... ये शर्म देखो चेहरे पर.... और किसी के बारे में कुछ खबर है क्या आपके पास....
चचा ने उस बूढ़ी औरत की तरफ गौर से देखा... दोनों बिल्कुल एक जैसे थे... दोनों को मज़ा आता था इधर की बातें उधर करने में... ऐसा लग रहा था कि दोस्त मिल गए। अब तो मामला सेट था... चचा और वो बूढ़ी औरत... जिसने बाद में अपना नाम बड़ी बी बताया था... दोनों में खूब जमने लगी... सुबह वाली शिफ्ट में जब उन्हें फटे हुए दूध की चाय पीने के साथ ग्यारह कोड़े खाने होते थे... तो दोनों साथ ही जाते थे। शिफ्ट करके जब दोनों पीठ सहलाते हुए लौटते तब भी... इधर की उधर लगाते हुए आते... बड़ी बी चचा से कहती
 “अरे सुनिए (कराहते हुए) आए बहुत मारा ... अच्छा उसको देखा था वो बड़े वाले जिन को... जो मार रहा था... उसके बारे में एक हूर बता रही थी कि बहुत धोखेबाज़ है... इसकी तीन गर्लफ्रैंड्स तो यहीं हैं और एक जन्नत में है... वो जो एक आदमी नहीं है जो तेल में तलता है सबको... हमको बता रहा था कि सर्दियों में ये दोज़ख की आग... चुपके से जन्नत भेजता है। 
इन बुराइयों से उनके जिस्म पर लगी चोटों का दर्द कम हो जाता था। हालांकि दोज़ख में सज़ा की शिफ्ट बड़ी सख्त थी। सुबह कोड़े मारे जाने के बाद। दोपहर के वक्त सभी दोज़खियों का पैर ऊपर करके, चार घंटे के लिए सर मिट्टी में घुसा दिया जाता था। फिर तीन घंटे के लिए उन्हें बहुत सारे प्याज़ काटने को दिये जाते थे। और फिर सबसे भयानक सज़ा ये थी कि सभी महिलाओं को अलग अलग केबिन में बंद करके खूब सारा मेकअप का सामान दिया जाता था.. लेकिन उस केबिन में आइना नहीं होता था।
बड़ी बी और नाज़ुक खाला की दोस्ती कुछ और लोगों से गयी। इंटरवेल में जब सबको खाने के लिए लाल मिर्च के पकौड़े बिना पानी के दिये जाते थे तो उनके दोस्तों में से कोई कहता... “वो सफेद दाढ़ी वाला फरिश्ता है न... अरे वही जो हमको बरफ़ पर लिटाकर तलवों में गुदगुदी करता है... बहुत काइंया है। घर का गुस्सा हमाए ऊपर उतारता है। वो खुद सुबह की शिफ्ट में आता है तो घर से पिटकर आता है... सुना है वो सुनहरे बाल वाली हूर है न... उसकी बीवी... घर में पैर दबवाती है रोज़ छ घंटा”
जगह और हालात कोई भी हो, लोग आहिस्ता-आहिस्ता जीना सीख ही लेता हैं। दोज़खी लोगों ने भी दोज़ख के हालात के साथ समझौता कर लिया था।
एक दिन जब चचा तीन घंटे ज़मीन में सर गाड़ के पैर ऊपर करने वाली शिफ्ट खत्म करके लौटे... तो एक कर्मचारी आया... ऐ... चलो...
कहां चलो
साहब बुला रहे हैं तुम्हें
क्यों...
कागज़ आया है तुमाए नाम का... बोल रहे हैं कि तुमाई सज़ा पूरी हो गई है। हाईकमान से ऑर्डर आया है कि इनको तुम्हें जन्नत शिफ्ट किया जाएगा”
चचा बहुत खुश हो गए... नाचने लगे... दोस्त मुबारकबाद देने लगे। बड़ी बी बोलीं, “जाओ भैय्या, जाओ... बस हमें भूल न जाना...” चचा बड़ी बी के गले लग हए आंसतीन से आंसू पोंछते हुए बोले... “तुमको कैसे भूल सकते हैं... तुम्ही तो इस अजनबी जगह में लोगों की बुराई करने के लिए मेरा सहारा थी...  दुआ करेंगे कि तुम भी जल्दी आओ”
थोड़ी देर बाद, गर्म लावे का बना हुआ फेयरवेल केक उनके सामने लाया गया... जिसे चचा ने काटा ... ख़ैर इसके बाद चचा को दो सिपाही अपने साथ ले गए और जन्नत के गेट पर छोड़ दिया। एक फरिश्ता ने समझाया, “जाइये... काउंटर से आई कार्ड ले लीजिएगा.. और सीधे अंदर चले जाइयेगा... आगे दूध की नदी होगी वहां से लेफ्ट लेकर, शहद का तालाब मिलेगा उसी से राइट लेंगी तो सूखे मेवा का पहाड़ होगा.. बस वहीं से इंट्री हो जाएगी.. जाइये”
 चचा अंदर गए तो अंदर की शान ओ शौकत देखकर हैरान रह गयी... इधर चमकता हुआ आसमान साफ शफ्फाक आसमान... एक बड़ा सा डिस्प्ले लगा था जिस पर बता रहा था कि Air Quality Index ज़ीरो है... कांच जैसी साफ सुथरी सड़कें... दोनों तरफ फ्री में लगी शर्बत की छबीलें... शहद की नदियां...
सुनहरे बालों और नीली आंखों वाली एक खूबसूरत सी हूर गेट पर खड़ी थी उनका आई कार्ड लिए हुए। मुस्कुराते हुए बोली, Welcome to the heaven । आइये मेरे साथ।
चचा ने उसको ऊपर से नीचे तक देखा औऱ मुस्कुराकर बोलीं, थैंक्यू... उसके पीछे पीछे चलते हुए बोले... अरे बहुत अच्छा हुआ कि यहां आ गए... आप लोगों के बीच वरना वहां... वो बड़ी बी इतना बोर करती थीं... पूछो मत... सुनते-सुनते कान पक जाते थे। वो कहती थी कि तुम हूरों की आंखे नीली है नहीं, लेंस लगाती हो तुम लोग... ऐसा सट मे है क्या“
वो हूर मुस्कुराती रही, उसने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर बाद.. चचा को एक खूबसूरत और आलीशान मकान की चाबियां दे गईं। जिसकी बालकनी से समुंदर दिखाई देता था। इधर नल खोलिये तो दूध, दही, शहद... या जो भी आप चाहें... मतलब जो भी। समझ रहे हैं ना। कालीन वाले कमरे, ऊंची दीवारें, बड़े बड़े फानूस, गद्दे दार बिस्तर... अरे पूछिए मत... लेकिन भाई साहब... ये सब जो था ज़्यादा दिन खुश नहीं रख पाया चचा को... क्योंकि कुछ दिन इसमें मज़े किये... उसके बाद वो होने लगे बोर... बोर इसलिए क्योंकि जन्नत में कोई किसी की बुराई करता ही नहीं...
दोस्त इनके वहां भी बन गए... लेकिन जैसे ही ये किसी से कहें.... अरे सुनो.... वो वाला जो फरिश्ता नहीं है.... जो दूध से नहलाता है... हमको लगता है उसकी नज़र ठीक नहीं है...
उनके साथी, मुस्कुराते और उठ कर चले जाते... जन्नत इसीलिए तो जन्नत है क्योंकि वहां कोई ना बुरा सोचता है, ना बुरा कहता है... लोग एक-दूसरे के साथ मोहब्बत से पेश आ रहे होते थे, न कोई किसी की कमी ढूंढता था, न कोई किसी से जलन रखता था। कोई एक फिसलता तो दस उसे उठाने के लिए दौड़ते। चचा को एहसास होता कि जन्नत को जन्नत इसलिए नहीं कहते कि यहां दूध दही की नदिया हैं, चमकती आसमान है, आराइशें हैं, निएमतें हैं... बल्कि जन्नत तो जन्नत इसलिए है क्योंकि यहां किसी को किसी से जलन नहीं है। लोग एक दूसरे से मुहब्बत करते हैं।
पर चचा को ये सब बोरिंग लग रहा था। एक दिन उन्होंने जन्नत के एडमिन डिपार्टमेंट में एक एप्लिकेशन दी... बोले कि भई देखो... हमसे ये वादा किया गया था कि जन्नत में जो भी चाहो मिल जाता है... अब ये बताइये कि कि हमारी एक विश है कि हम यहां नहीं रहना चाहते... तो ये विश पूरी होगी या नहीं.... वहां से जवाब आया... बिल्कुल होगी... क्या चाहते हैं आप... सौ शब्दों में लिख कर भेजिए... इन्होंने खत का जावब सिर्फ सात शब्दों में लिखा - हमें वापस दोज़ख में भेज दिया जाए
जन्नत प्रशासन में हैरानी तो हुई लेकिन फिर क्योकि जन्नत का यही नियम है कि हर ख्वाहिश पूरी करनी होती है इसलिए फौरन चचा को वापस दोज़ख में भेज दिया गया।
तीन चार महीने के बाद... चचा फिर से दोज़ख के दरवाज़े पर खड़े हुए थे... और उन्हें लेने आई थीं... बड़ी बी और कुछ और पुराने साथी। सबकी आंखे नम थीं... सब रुआंसे थे... बोले... आइये आइये... आप का स्वागत है... चचा अंदर दाखिल हुए और बोले, अरे स्वागत वागत छोड़ो... ये सुनो... कहते हुए चचा ने उन लोगों के कंधे पर हाथ रखा और ये बताते हुए दोज़ख की तपती ज़मीन पर पैर रखते हुए आगे बढ़ गए.... सुनो... जन्नत में पता है क्या होता है... वहां पर एक आदमी है... एक नंबर का कामचोर... उसका एक लड़की से लफड़ा चला रहा है और वो.... अरे मैंने अपनी आंखों से देखा.....

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