कहानी - पुराने मुहल्लों का प्यार
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
परवेज़ अहमद... शाहीन बाग गली नंबर सात में... फिरदौस मस्जिद के बगल में रहते थे... सिगरेट के खासे शौकीन थे... लेकिन उनके जैसा आदमी मैंने दूसरा नहीं देखा... इसलिए कि उनका कोई ब्रैंड नहीं था... हर दूसरे तीसरे दिन ब्रैंड बदलते रहते थे। कभी ये वाली पी रहे हैं, कभी उसपर दिल आ गया... ख़ैर बड़े मज़े के आदमी जिस महफिल में बैठ जाएं बस समझिए रौनक ही रौनक... क़िस्से बहुत सारे थे उनके पास... रहने वाले बाराबंकी के थे लेकिन दसियों साल से दिल्ली में रह रहे थे तो हम कि जगह मैं बोलने लगे थे। हम उनके साथ शाहीन बाग में रहा करते थे... ये करीब 2014-15 के आसपास की बात है... महीना था फरवरी का और इसलिए पूरे शहर में इश्क़ का माहौल नशे की तरह छाया हुआ था। गिफ़्ट की दुकानों पर लाल-सफेद गुब्बारे शर्माते हुए लहरा रहे थे। दोपहर के वक्त मैं किसी काम से गली में आया हुआ था कि क्या देखता हूं कि परवेज़ भाई चूड़ीदार पहने हुए तेज़ी से चले आ रहे हैं... मैंने हाथ से कहां का इशारा किया... मेरा मतलब था कि इतनी जल्दी दफ्तर से कैसे आ गए... वो तो शाम को पांच बजे आते थे। बोले हां, कुछ काम आ गया था। कहीं जाना है... आता हूं थोड़ी देर में। कहते हुए आगे बढ़ गए..
परवेज़ भाई के जिगरी दोस्त थे मुस्तकीम भाई... मुस्तकीम गली में एक मोबाइल रिपेयरिंग और रिचार्ज की दुकान चलाते थे। फुर्सत के वक्त में परवेज़ मुस्तकीम मोबाइल में ही स्टूल पर बैठे रहते और अपने दोस्त मुस्तकीम से इधर उधर की बातें किया करते। पर आज वो उस मुस्तकीम मोबाइल पर नहीं रुके... मैं समझ गया कि कोई खास बात है... देखा तो वो किनारे वाली पानी वाले की दुकान पर रुके... और बात करने लगे। हमने भी कान लगा लिये कि क्या बात हो रही है। पान वाले का नाम था अच्छन... कत्थे से काली हो चुकी उंगलियां माथे तक उठाकर सलाम करते हुए बोला, क्या परवेज भाई... जल्दी निकल आए... परवेज़ भाई बोले, हां यार.. हाफ डे ले लिया... वो सिंह भाई रैली करवा रहे हैं न आज, उसी में जा रहे हैं
- अच्छा वो, प्यार मुहब्बत वाली... जिसमें पार्कों में बैठे प्रेमियों पर लट्ठ बजाते हैं?
- हां हां वही वाली... (बाकी की कहानी नीचे पढ़ें। या इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनने के लिए बिल्कुल नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें)
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(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें) अच्छा याद आया कि परवेज भाई के बारे में एक बात बताना तो हम आप लोगों को भूल ही गए... मसला ये था कि परवेज़ भाई वैसे तो बहुत खुले विचारों वाले आदमी थे... बड़े प्रोग्रेसिव और तरक्की पसंद लेकिन एक मामले में न जाने क्यों... बड़े दखियानूसी थे... और वो था वैलेनटैइंस डे।
परवेज़ भाई, जो पूरे साल हसते मुस्कुराते, चुटकुले बाज़ी और चुहल पसंद आदमी रहते थे फरवरी आते आते उनके अंदर अजीब किस्म की तब्दीली आ जाती थी... अचानक से आशिकों को देखते ही उनकी आंखों में खून उतर आता था... पाएं तो एक आध को पकड़कर बीच रास्ते में धुनइया करने लगें। आस पास के पार्कों में शाम को चक्कर लगाने लगते थे बाकायदा लाठी वाठी लेकर निकल जाते थे। कहीं कोई प्रेमी जोड़ा मिल गया तो फिर उसकी ख़ैर नहीं। हालांकि मैंने कई बार उन्हें समझा कि ये क्या हरकतें हैं.... परवेज़ भाई... ऐसा मत किया कीजिए... ये सब ज़ेब नहीं देता है... क्या लुच्चों की सी हरकतें हैं आपकी... पढ़े लिखे आदमी हैं आप...
तो गुस्से में तमतमा जाते थे। कहते थे ... अरे... तो क्या तुम्हारे नज़दीक... हिदुस्तानी तहज़ीब कोई चीज़ है ही नहीं? ये हमारी तहज़ीब है... हैं... घर पे बता रहे हैं ट्यूशन पढ़ने जा रहे हैं... यहां कैफे में बैठके चाय बाज़ी हो रही है... ये... ये नौजवान है आज का... ऐसे होगी तरक्की?
- अरे भई तो आपको क्या दिक्कत है.. कोई कहीं बैठा हुआ है... किसी के साथ बैठा है.. आप से क्या मतलब…
- मतलब कैसे नहीं है... ये लड़के हमारी संस्कृति को बदनाम कर रहे हैं... और हम चुपचाप बैठे रहे... ये नहीं होने देंगे हम जमशेद भाई... ये.. ये हरगिज़ नहीं होगा...
ख़ैर, मुझे मैं चुप हो जाता था। और क्या करता। तो ख़ैर उस दिन भी परवेज़ भाई की तैयारी बिल्कुल चौकस थी... मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि प्लैन है क्या। पता चला कि मोहल्ले के कोई सिंह साहब हैं जिन्होंने एक रैली का इंतज़ाम किया है – जिसका नाम रखा है लट्ठ बजाओ रैली... प्लैन ये था कि सब सिंगल लड़के पहले रैली करेंगे। उसके बाद लट्ठ लेकर पार्कों में जाएंगे.. वहां झाड़ियों में जो दुआ-सलाम होती है.. उसे रोकेंगे। और नाके लगाएंगे कि ये मग़रिबी बदतमीज़ियां ... ये पश्चिमी संस्कृति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
परवेज़ भाई अच्छन पान वाले को ये सब बता ही रहे थे कि हम भी पहुंच गए दुकान पर... और गौर से सुनने लगे। पर इसी बीच पान वाले ने परवेज़ भाई से कहा, अरे रुको भाई... अरे हम तो दूसरे काम के लिए रोक रहे थे आपको। फिर आवाज़ धीरे करके परवेज़ भाई का हाथ दबाकर बोला। वो बरफ वाले की लड़की.. आफरीन.. पूछ रही थी आपकी। फिर दाएं बाएं देखकर बड़े राज़दाराना तरीके से आंख मार के बोले, बोली कि आएं तो भेज देना।
अपनी इकतरफ़ा और पुरानी मुहब्बत आफ़रीन का नाम सुनते ही परवेज़ भाई के चेहरे का रंग अचानक खिल गया। आदमी कितना भी प्रेम विरोधी हो लेकिन जब वो लड़की आपको बुलाए जिसे आप एक ज़माने से देखकर शायरी कर रहे हों.... जिसका नाम कापी की आखिरी पन्ने पर लिखकर अपने नाम के हर्फ काट-काट के फ्लेम्स खेल रहे हों... जिस मोहल्ले की किस शादी में क्या पहना था... आप को सब याद हो... और ये भी कि वो कब आपको देख कर पहली बार मुस्कुराई थी... तो भैय्या... आदमी कितना भी फौलाद की औलाद हो... पिघल तो जाता ही है।
जैसे ही पान वाले अच्छन ने आफरीन के बारे में ये बताया.... परवेज़ भाई मोम की तरह पिघल गए।
- क्या... क्या बात कर रहे हो अच्छन मियां... सही में ऐसा कहा आफरीन ने
- लो कर लो बात... और क्या मैं झूठ बोल रहा हूं आपसे ... खुद बोलीं हैं आकर कि परवेज़ आएं तो कह देना... आफरीन याद कर रही थीं... समझ रहे हो ... याद कर रही थीं...
- अबे तुम खेल तो नहीं रहे हो... हमसे खेलना नहीं... झूठ निकली बात तो ये जो बाल्टी में पान भिगोए के रखो हो... इसी में तुमको भिगो देंगे...
- अरे कसम से कह रहे हैं परवेज़ भाई... जल्दी जाइये, छज्जे पे खड़ी हैं।
उस पल परवेज़ भाई जितनी तेज़ चले उतना तब भी नहीं चले थे जब मुहल्ले में मुफ्त बिरयानी बटी थी। हम भी उनके पीछे पीछे हो लिये.... हमने चाल थोड़ी तेज़ की और परवेज़ भाई के पास जाकर कहा... क्या भई किधर....
बोले, अरे जमशेद भाई अब क्या बताएं बस वो... अब किसी का दिल तो तोड़ नहीं सकते... मतलब हैं... अब आफरीन ने बेचारी ने बुलाया है तो...
हमने कहा, अरे वो तो ठीक है लेकिन सिंह साहब की रैली का क्या होगा....
बोले, अरे उनका क्या... जमशेद भाई मुझे लगता है कि वो जो आप हमसे कहा करते थे... कि भई कोई अपनी ज़ाती ज़िंदगी में क्या करता है... उससे हमें क्या मतलब हैं... बिल्कुल सही बात है... आप ... आप बिल्कुल सही थे... अरे भई... प्यार मुहब्बत के सिवा और क्या रखा है दुनिया में... हैं... मतलब... । इश्क मुहब्बत में तो खुदा बसते हैं... और नाउज़बिल्लाह हम खुदा के खिलाफ तो नहीं हो सकते.... अरे दुनिया में इंसान आया क्यों है... प्यार करने...
उस दिन हमें यकीन हुआ कि ये आदमी कितना बड़ा मुनाफिक है... मतलब कथनी-करन में कितना फर्क है इसके... देख रहे हैं आप लोग... अभी कुछ दिन पहले तक यही कहता था कि प्यार व्यार करना बदतमीज़ी है... छिछोरापन है.. मगरिबी तहज़ीब है... और अब देखो... कैसे कानों तक मुस्कुराहट फैलाए दौड़ा जा रहा है ... ये देखिए... ये .. ये आए शर्माना देखो देखो ज़रा... ओफ्फो... वाकई ... जो औरतों हम मर्दों के बारे में कहती हैं न कि सब आदमी एक जैसे लुच्चे होते हैं... बिल्कुल सही कहती हैं आप लोग... बिल्कुल... हम मर्दों का कोई भरोसा नहीं करना चाहिए आप लोगों को...
ख़ैर, तो नुक्कड़ पर पहुंचे तो मैं एक जगह ठहर गया। ये आफरीन के छज्जे के पास पहुंचे तो इन्होंने अपना दिल थाम लिया। आफ़रीन वाकई छज्जे पर थी। खूबसूरत लग रही थी वो... आफरीन और परवेज़ भाई की नज़रें मिलीं। ऐसा लगा जैसे आसमान फट गया... ज़मीन में दरार आ गयी... सूरज चांद एक साथ दिखने लगे और परिंदे गाने लगे।
वो मुस्कुराई, सरऊ भी मुस्कुराए। हम कोने वाली दुकान में खड़े ये सब आंख मट्क्का देख रहे थे। तभी छत पर खड़ी आफरीन ने एक प्लास्टिक की टोकरी, जिसमें डोरी बंधी थी, अपने छज्जे पर लटकाई। वो पीली टोकरी जैसे-जैसे नीचे आ रही थी, परवेज़ भाई का ब्लेड प्रेशर भी नीचे आ रहा था। जब टोकरी इनके हाथ की पहुंच तक आ गयी तो छज्जे पर खड़ी आफ़रीन ने इशारे से कहा... ये आप के लिए पर्ची है। उसमें जो था, देखकर हाथ कांपने लगे। एक शर्माया सा लाल गुलाब और एक लिफ़ाफा। हाय। उन्होंने कांपते हाथों से लिफाफा उठाया और ऊपर देखा तो आफरीन ने इशारा किया कि अपना मोबाइल नंबर पर्ची पर लिखकर इसी टोकरी में डाल दीजिए... परवेज़ भाई ने हड़बड़ाते हुए जेब से कागज़ की पर्ची निकाली अपना नंबर लिखा और पर्ची टोकरी में रख दी। आफरीने टोकरी ऊपर खींच ली...
परवेज़ भाई ने टोकरी से निकाला हुआ गुलाबी खत अब ग़ौर से देखा.... लिफाफे के ऊपर लिखा था –
लिखती हैं खून से स्याही न समझना,
चैहते हैं आपको बेवफ़ाई न समझना
वो कौन सा गाना होता है... ला ला ला... ल ल ... वही बजने लगा बैकग्राउंड में... और ऐसा लगा कि जैसे आसमान से हज़ारों गुलाबी दिल गिर रहे हो... स्लो मोशन में परवेज़ भाई सर उठाकर ऊपर देखने लगे... और फिर शाहरुख खान की तरह कुछ कदम उल्टे चले और फिर पलट के बालों में हाथ फेरते हुए जाने लगे... वो जल्दी से घर पहुंच जाना चाहते थे ताकि सुकून से घर में बैठ कर लिफाफे के अंदर का खत पढ़ सकें। मैं और वो साथ साथ घर लौटने लगे। तभी रास्ते में मुस्तकीम भाई की मोबाइल शॉप के पास एक लड़का मिला... स्कूटी से जा रहा था ... बोला... अरे परवेज़ भाई... स्लालेकुम... वो कोई बता रहा था कि आप रैली में जा रहे हैं.. वो क्या नाम है उसका लट्ठ बजाओ रैली.... हम भी चलें क्या...
परवेज़ भाई ने मेरी तरफ देखा और फिर कुछ सोचकर फ़लसफी अंदाज़ में उससे बोले, नहीं, मेरे ख़्याल से इतनी भी सख्ती ठीक नहीं है। अब प्यार-मुहब्बत नहीं बचा तो दुनिया खत्म नहीं हो जाएगी? जाओ... प्यार करो.... और इतना कहकर आगे बढ़ गए...
ख़ैर थोड़ी देर में घर पहुंचे... फ्रिज से बोतल निकाल कर दो घूंट गटके और लिफ़ाफ़ा फाड़कर खत निकाला... लिखा था – आज इश्क करने वालों की ईद का दिन है... इश्क़ के इकरार के लिए आज से अच्छा क्या दिन होगा... हम आपसे मुहब्बत करते हैं...
अभी परवेज़ भाई ने हमारे हाथ पकड़े और नाचने लगे... उस दिन मैंने परवेज़ भाई को इस तरह नाचते पहली बार देखा था। खुशी के मारे कुर्सी पर खडे हो गए... अलमारी में रखा सामान इतराते हुए नीचे गिराने लगे... मैं उन्हें देख रहा था कि वाकई इश्क इंसान को कितना बदल देता... पर तभी मोबाइल की घंटी से कमरा गूंज गया... परवेज़ भाई कुर्सी से नीचे उतरे... फोन निकाला... तो कोई अननोन नंबर था... रीसीव किया...
- हैलो
- आ... हैलो.. हम आफ़रीन बोल रहे हैं।
हाय.... चेहरे पर फिर मुस्कुराहट खिंच आई.... फौरन उन्होंने फोन स्पीकर पर डाला... मुझे सुनाने के लिए... वही लड़कों वाली छिछोरी हरकत.. मैं रसोई में बर्तन वापस लगाने लगा और मुस्कुरा के सुनने लगा.... वो बोले...
- जी फर्माइये... आप का ख़त मिल गया मुझे.... कसम से आपने दिल निकाल के रख दिया है...
- जी... बस जो लिखा है दिल से ही लिखा है... आप की मदद का भी शुक्रिया भाई...
- है... भाई...
मेरे हाथ से कूकर छूट गया अचानक कमरे में खामोशी छा गयी... मैं जल्दी से बावर्ची खाने से बाहर आ गया। देखा परवेज़ भाई फोन को हैरानी से देख रहे हैं... फोन से आफरीन की लरज़ती हुई आवाज़ आई.... भाई बस आपकी मदद चाहिए... ये खत आप अपने दोस्त मुस्तकीम को दे दीजिएगा... उन्हीं के लिए लिखा है... दे देंगे न आप
मेरी पीछे बिस्तर पर गिर गया और पेट पकड़ के मुंह पर हाथ रख के हंसने लगा... परवेज़ भाई का मुंह उस खिलौने की तरह लग रहा था जिसमें से अचानक हवा निकल जाती है...तो पिचक जाता है... उतना तो मैं आज तक नहीं हसा.... गज़ब रॉंग नंबर लग गया था.. इश्क के फोन में
परवेज़ भाई ने फोन कट किया... चार ऐसी नाशाइस्ता बातें मुस्तकीम मोबाइल वाले की खानदान के बारे में अर्ज़ की... जो मैं यहां बोल भी नहीं सकता... फोन गुस्से में बिस्तर पर फेंका.... बाथरूम गए... फिर बाहर आए तो आंखे लाल थीं....
तेज़ कदमों से चलते हुए फोन बिस्तर से उठाया.... किसी को फोन मिलाया और बोले....
हैलो.... सब लोग तैयारी कर लो... लट्ठ बजाओ रैली ... आज हो के रहेगी... कर लो तैयारी... सब आशिको की हड्डी पसली एक करना है... मिलो एक घंटे में सब लोग...
और ये कहते हुए वो रैली की तैयारी में अपनी लाठी को तेल पिलाने लगे।
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