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हॉरर कहानी | उस घर में कौन था? | स्टोरीबॉक्स विद जमशेद

मुझे ये क्यों लग रहा था कि मैं उस घर में अकेला नहीं हूं. कोई और भी है जो मेरे आसपास खड़ा मुझे देख रहा है. बिजली तेज़ से कौंधी और तभी मैंने वो देखा जो मैं अपनी मौत तक कभी नहीं भूल पाऊंगा. सुनिए स्टोरीबॉक्स में हॉरर कहानी 'उस घर में कौन था?'

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कहानी - उस घर में कौन था?
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी

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दिल्ली के पहाड़ गंज की गलियों से गुज़रते हुए मैं दोनों तरफ की दुकानों को हैरानी से देख रहा था... कितना शोर, कितने लोग, रिक्शे, सड़क तक बढ़ आई दुकानें... चलने तक की जगह नहीं... अच्छा ये बात आज की नहीं है, ये बात है शायद 15 साल पहले की... और यकीन मानिये तब भी यही हाल था। मैं कंधे पर एक बैग टांगे सड़क पर फोन करने का बूथ ढूंढ रहा था ताकि भोपाल में अपने घर फोन कर के बता दूं कि दिल्ली पहुंच गया हूं।

 “हां सर कोई होटल जाएंगे.. आइये सस्ता दिलवा देंगे” एक रिक्शे वाले ने मुझसे कहा तो मैंने ना में सर हिला दिया। और आगे बढ़ गया।

मैं असल में दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती अपने एक दूर के मामा को देखने आया था। अब एक दिन के लिए होटल लेने से अच्छा था कि मैं अपने किसी दोस्त के घर पर रुक जाऊं। पैसा बचाने की यही तो कला है, कौन होटल पर खर्च करे। लेकिन किसके घर पर ... मैंने दिमाग पर ज़ोर डाला तो एक एंडी याद आया.... मैं मुस्कुराया और जेब से डायरी निकाल कर उसका नंबर निकाला और पीसीओ की तरफ बढ़ गया। (इसके आगे की कहानी पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें। और अगर इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से सुनना हो तो ठीक नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें) 

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(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें) 

एंडी हमारे कॉलेज के दिनों का साथी था। वो होता है ना हर फ्रैंड सर्किल में एक लड़का, जिसकी सब बुलिंग करते हैं। भोंदू सा था वो। वज़न थोड़ा सा बढ़ा हुआ, चेहरा गोल, आंखे बड़ी-बड़ी जिनपर भवें सिर्फ नाम की थी, उसे बोलने में भी कुछ दिक्कत होती थी। आवाज़ भी साफ़ नहीं निकलती थी। भोपाल में उन दिनों हम लोग जब भी स्कूल बंक करते तो बहाना यही होता था कि एंडी के घर में किसी की मौत हो गई है। उसका लंचबॉक्स खुलता तो सब बच्चे खा लेते...सड़क पर क्रिकेट खेलते वक्त जितनी बार भी बॉल नाली में जाती, बॉल निकालने का काम एंडी का ही होता था। ख़ामोश रहता था वो। अब सुना था कि उसने मोटर पार्ट्स की दुकान खोल ली थी। 

मैंने एक पीसीओ से उसे कॉल किया।
हैलो
हैलो एंडी...
 मैं हंसा पहचानो तो कौन बोल रहा हूं।
कौन... 
हल्की घबराई हुई आवाज़ आई। फिर बोला... जमशेद तुम?
मुझे हैरानी हुई जब एंडी मेरी आवाज़ पहचान गया। यार याददाश्त तो अच्छी है तुम्हारी। इधर धर की बातचीत के बाद मैंने उसे बताया कि मैं उसके शहर में हूं तो वो बोला... अरे यार ... बैड लक। मैं तो दुकान के काम से मानेसर जा रहा हूं, सुबह लौटूंगा...
- अरे यार 
मैंने मायूसी से कहा...
कोई बात नहीं, एंडी बोला तुम ऐसा करो ना भाई। मेरे घर चले जाओ... चाभी तुम्हें वहीं मिल जाएगी... जाकर आराम करो... सुबह मैं आ ही जाऊंगा...

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मैं खुश हो गया। थोड़ी ना-नुकुर की नौटंकी के बाद उसका एड्रेस लिया और उसके उसने बताया कि चाभी गमले के नीचे मिल जाएगी।
ठीक है फिर... मैं जाता हूं... मैंने कहा तो वो कुछ सोच कर बोला...
अच्छा सुनो....एक बात का ख्याल रखना....
मैंने कहा क्या....
बोला... आ... कुछ नहीं... जाओ...

वो क्या कहना चाहता था मुझे समझ नहीं आया... शायद कोई ज़रूरी बात थी.. पर फिर एंडी ने कही क्यों नहीं... क्या वो कुछ छुपा रहा था... ख़ैर.... मैं तो चल दिया।

उसके घऱ के रास्ते में मुझे याद आ रहा था कि कितना मज़ा आता था स्कूल के दिनों में। एंडी के पापा बरेली के कैथेडरल चर्च में पादरी थे और हम अक्सर उसके साथ चर्च जाया करते थे ताकि वहां आई लड़कियां देख सकें। वो हम दोस्तों की नीयत जानता था लेकिन कभी मना करने की हिम्मत नहीं कर पाया। डरता जो था हमसे। एंडी की मम्मी नहीं थी, वो उसकी पैदाइश के दौरान ही गुज़र गयीं थी। मैं एंडी और ग्रुप के दूसरे लोगों के पुराने क़िस्से यादें ज़हन में लिये टैक्सी में बैठा था। तभी मुझे कुछ कुछ और भी याद आया।

याद आया कि इम्तिहानों से थोड़ा पहले, एंडी अजीब तरह से बिहेव करने लगा था। उसे गुस्सा आने लगा था, हमने भी शायद अति कर दी थी।
एंडी यार... स्टॉफ रूम से सबकी बुक्स ले आना...
मैं नहीं लाऊंगा.... 
न्न्नहीं...ननन्ई लाऊंगा। मम्मी ने मम्म्ना किया है”।

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जब वो ये कहता तो हम सब एक दूसरे को देखते... क्योंकि उसकी मम्मी कई साल पहले एक हादसे में मर चुकी थीं। उसने बहुत पहले बताया था कि छ-सात साल उसके पुराने वाले घर में एक शाम जब उसकी मम्मी घर में अकेले थीं, किचन में खाना बना रही थीं तो सिलेंडर से गैस लीक होने लगी... उन्होंने संभालने की कोशिश की लेकिन तभी सिलेंडर ब्लास्ट हो गया... उनकी बॉडी के टुकड़े भी नहीं मिले थे। पर अब जब एंडी कहता था कि मम्मी ने फलां काम करने से मना किया ह... तो ज़ाहिर है वो हमें डरा ही रहा था। असल में वो भी अटेंशन चाहता था। तभी उसने ऐसी उलूल-जुलूल कहानियां बनानी शुरु कर दी थीं। ख़ैर, बारवीं तक उसका यही रवैय्या रहा था और फिर हम अलग अलग हो गए थे। आज इतने सालों बाद, एंडी से बात करके ऐसा लग रहा था कि मैं पुराने वक्त में लौट आया था।

ख़ैर मैं, एंडी के घर पहुंचा... मौसम खराब हो रहा था.... बादल घिरे हुए थे... और बार-बार बादल गरजते तो कौंधती हुई बिजली की रौशनी से गली चमक उठती।

चाभी वहीं मैट के नीचे मिल गयी। दरवाज़ा खोला... अंदर पहुंचा तो अंधेरा था, मैंने बैग कंधे पर संभालते हुए दाईं तरफ हाथ बढ़ाकर स्विच बोर्ड टटोला और बटन दबाते ही कमरा रौशन हो गया। आंखों के सामने एक तीन कमरों का घर था। जो हलका-हल्का महक रहा था। घर में दो बेडरूम के दरवाज़े, बीचो-बीच बने हॉल में खुलते थे। छत पर लोहे का जंगला था, जिसे प्लास्टिक शीट से ढक दिया गया था। मटमैले रंग की दीवारों पर पुरानी क्रिश्चियन पहनावे वाली औरतों की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरें थीं।

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मैंने बाहरी दरवाज़ा बंद कर लिया। अपना बैग मेज़ पर रखकर घर का मुआयना करने लगा। हम्म... घर तो सही लिया है लड़के ने.... मैं बुदबुदाया और सोचने लगा कि एक अकेले बैचलर आदमी को इतने बड़े घर की क्या ज़रूरत। घर बेतरतीबी से उलझा हुआ था। मेज़ पर झूठी प्लेटें रखीं थी जिनपर लगा खाना सूख चुका था। कुछ खराब हो चुके फल, बंधी प्लस्टिक में ही बंधे-बंधे सड़ गए थे, शायद उन्हीं से पूरे घर में सड़ांध फैल गयी थी। मैंने फल का वो पैकेट उठाकर दाएं-बाएं देखा फिर साथ वाले किचन में जाकर खिड़की का पल्ला खींचा और फल का वो पैकेट बाहर उछाल दिया। बाहर से बादल गरजने की आवाज़ तेज़ हो गयी थी, बारिश भी तेज़ थी।

वापस बीच वाले कमरे में आया तो नज़र दो कुर्सियों पर पड़ी। एक पर कपड़ों का अंबार लगा हुआ था। और दूसरी पर कुछ... हाथ के बने ग्रीटिंग कार्ड्स थे। मैंने एक कार्ड उठाकर देखा... उसमें मोम वाले रंगों से आकृतिय़ां बनी थीं। जो पेंटिंग के लिहाज़ से बहुत अच्छी नहीं कही जा सकतीं। उस बुरी पेंटिंग में एक बच्चा था... हाफ पैंट पहने। दाईं तरफ शायद उसके पापा थे... उसका हाथ पकड़े हुए। बच्चे का बायां हाथ हवा में उठा था... और कुछ दूर पर कोई औरत बनी थी। हां वो औरत ही थी... क्योंकि उसके बाल बड़े बनाए गए थे।

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कुछ और ग्रीटिंग कार्ड्स भी थे... लेकिन मुझे लग रही थी भूख। मैं किचन में गया और कुछ जो ब्रेड-व्रेड मिला मैंने खाया... तब भूख कुछ कम हुई। मुश्किल से मुंह चलाते हुए किचन की छोटी सी खिड़की से बाहर चमकती बिजली दिख रहा था मैं। मौसम खराब था।

खैर उल्टा-सीधा थोड़ा बहुत खाकर... अब देखना था कि लेटा कहां जाए। उस सुनसान घर के उस हॉल से लगे दो कमरों में से किस में सोया जाए, ये तय करने लगा।

मैंने पहले एक कमरे की लाइट जलाई तो बादामी दीवारों वाला वो कमरा दमक उठा। किनारे एक उलझी चादर वाला बिस्तर लगा था। जिससे सटा हुआ एक टेबल लैंप था। जिसपर कुछ मोम कल, ब्लैंक कागज़ और एक किताब थीं, जिसके कवर पर लिखा था – What happens when you Die. छत पर झूमर और सामने खिड़की से सटी हुई अलमारी थी। बिस्तर के ठीक सामने वाली दीवार पर एक सीमेंट की लंबी सी रैक बनी थी। जैसे लोग अक्सर बनवा देते हैं कुछ सामान वगैरह रखने के लिए। मचान जैसी। उस पर कुछ पुराना सामान रखा हुआ था। और साड़ी जैसे एक लंबे से पर्दे से ढक दिया गया था। बाईं दीवार पर लकड़ी का बड़ा सा क्रास लगा था। कमरा देखकर लग रहा था एंडी वहीं सोता होगा। वो उसी का कमरा था। मैंने लाइट ऑफ़ कर दी... ताकि सुबह वो आए तो अपने कमरे में सो सके।

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दूसरे कमरे की लाइट जलाई... लेकिन... लेकिन लाइट जलाते ही एक अजीब सी हड़बड़ाई हुई आहट सुनाई दी मुझे। मैं ठिठुर गया... कैसी आवाज़ थी ये। मैंने कमरे का मुआयना किया। वो बिल्कुल वैसा ही कमरा था। उलझा हुआ बिस्तर, अलमारी, ऊपर झूमर, सामने खिड़की, बिस्तर के सामने वाली दीवार पर मचान जैसी लंबी सी रैक... बिलकुल उसी कमरे की तरह... एक लंबे से कपड़े से ढकी हुई।

न जाने क्यों बार-बार उस कमरे को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि... कि वहां कोई नहीं रहता। थकान मेरे जिस्म को तोड़ रही थी। मैंने एक बार कमरे को फिर ठीक से देखा, बिस्तर ठीक किया, फैन चलाया और लाइट बंद करके लेट गया। बाहर बारिश होने लगी थी... और बिजली बार बार चमक उठती थी। तकिया सर के नीचे दबाई और आंख बंद कर ली।

वो अजनबी घर, अजनबी कमरा, अजनबी बिस्तर था। घुप्प अंधेरा, बिल्कुल सुनसान। सामने खिड़की थी। सड़क पर लगी ख़राब स्ट्रीट लाइट के बार-बार चमकने से वहां बिजली की तरह रौशनी चमक उठती थी। और फौरन कमरा फिर अंधेरे में डूब जाता।

आंख बंद करते ही मुझे अजीब ख्याल मन में आ रहे थे। एंडी तो यहां अकेले रहता है...?
अकेले रहता है तो ये दूसरा कमरा किसके लिए?
बिस्तर जिस तरह से उलझा था... लग क्यों नहीं रहा कि यहां कोई नहीं रहता

मैंने अपनी कलाई में बंधी रेडियम के कांटे वाली घड़ी में वक्त देखा... सवा बारह बज रहे थे। उस अंधेरे और मौत की तरह खामोश घर में अब मुझे घबराहट होने लगी थी। गुस्सा आ रहा था कि इससे अच्छा तो किसी होटल में ही रह जाता... मैंने करवट लेने की कोशिश की। नींद नहीं आ रही थी। और.. और जाने क्यों लग रहा था... जैसे कमरे में मेरे अलावा... कोई और भी है। किसी और के होने का एहसास हो जाता है.... मुझे हो रहा था।

कब्र जैसे अंधेरे कमरे में, सड़क पर लगी स्ट्रीट लाइट की रौशनी बार-बार चमक उठती। मैंने करवट ले कर आंखे फिर से बंद कर ली और सोने की कोशिश करने लगा। खामोशी इतनी थी कि मुझे अपनी सांसें भी सुनाई दे रही थी। करवट लेने पर कपड़ों की कसमसाहट कमरे में गूंज जाती।

मैंने फिर करवट लेने की कोशिश की... तभी रौशनी फिर चमकी और सामने बने मचान का वो पर्दा, पंखे की हवा से हिला.... मैंने जो देखा... मेरा दिल जैसे धड़कना भूल गया। मचान पर... कोई.. कोई था। उस हिलते हुए पर्दे के पीछे कोई था.. जो उकड़ू बैठा था।

मेरी गर्दन से होते हुए रीढ़ की हड्डी में सनसनाहट दौड़ने लगी। हलक अचानक सूखने लगा। कुछ था... कोई बैठा था वहां। पर्दे की आढ़ में उकड़ू बैठा हुआ। मेरे हाथ कांप रहे थे। चीखना चाहता था लेकिन घबराहट के मारे आवाज़ हलक में चिपक गई थी।

पर्दा हवा से बार-बार ऊपर उठ रहा था... लेकिन दिखाई सिर्फ तब देता जब स्ट्रीट लाइट की रौशनी चमकती। जिस्म यूं ठंडा हो रहा था जैसे मैं बर्फ़ की सल्ली पर लेटा हूं लेकिन पसीने की बूंदे माथे से कान की तरफ फिसल रही थीं।

रौशनी फिर चमकी और बुझ गयी... इस बार मैंने देखा.... साफ़-साफ़ देखा... कोई था... नहीं... कोई थी। हां... मचान पर पर्दे के पीछे उकड़ू बैठी कोई आकृति थी.. जिसके बाल कंधे पर बिखरे थे।

एक पल को मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा हार्ट फेल हो जाएगा। ख़ून नसों मे यूं बह रहा था जैसे चीरता हुआ कानों से निकल आएगा। दिल मुंह को आ गया था... वो कौन थी... जो सामने मचान पर घुटने मोड़े और पैर फैलाए बैठी थी। कोई साया... कोई आत्मा.. कोई प्रेत... मेरा सर घूम रहा था। भागना चाहता था लेकिन डर लग रहा था कि कहीं भागते ही वो.. वो जो भी है... मुझ पर हमला ना कर दे।

ख़ौफ़ इतना था कि मैं दुआ कर रहा था कि वो बाल फैलाए अकृति... कोई चोर हो। छीन ले सबकुछ मुझसे, ले जाए... बस जान बख्श दे।

लेकिन ठीक तभी हवा का झोंका आया.... जिससे मचान का पर्दा... अचानक हवा से उठा... कुछ और उठा... और फिर ... पूरा उठ गया। बाहर बिजली चमकी... और चमक से कमरा रौशन हुआ... एक सेकेंड के लिए... और उस सेंकेंड में जो मैंने देखा.... देखकर मैं.... कांप गया.... धड़कने धीमी पड़ने लगी थी। लग रहा था जैसे किसी ने मेरा दिल अपनी मुट्ठी में लेकर निचोड़ दिया हो। शायद... हार्ट अटैक इसी को कहते होंगे। उस पल जो मैंने देखा ... वो देखकर मुझे एंडी के बचपन की सारी बातें याद आने लगीं।

मैंने देखा कि एक काला सा साया था... जिसके कंधे पर बाल बिखरे थे लेकिन आंखे सफेद बल्ब की तरह चमकते हुए मुझे घूर रही थी। मैं नहीं समझा सकता कि वो क्या था... कोई परछाई.. कोई आकृति, कोई हवा... पता नही। लेकिन वो जो भी थी... रूंह कंपा देने के लिए काफी थी।

उसने हरकत की... वो हिली। मैं अब वहां नहीं रुक सकता था। मैं जिस लम्हें पर था शायद इसी को ज़िंदगी और मौत के बीच होना कहते होंगे। मैंने पूरी ताकत लगाई और बिस्तर से तेज़ी से उठा .... और भागकर कमरे का दरवाज़ा बाहर से खींच लिया।

वही हड़बड़ाहट की आवाज़ फिर सुनाई दी... जो कमरे में दाखिल होते हुए सुनी थी.. जिसे मैंने कबूतर की आवाज़ समझ ली थी।

हॉल की लाइट जलाई। पसीने से भीगा मेरा जिस्म ठंड से कांप रहा था। लग रहा था जैसे मेरा जिस्म बर्फ़ में तब्दील हो गया हो, और कहीं मैं बेहोश होकर ज़मीन पर गिरा... तो शायद टुकड़ों में बिखर जाऊं।  

मैं बेतहाशा बाहर भागने को हुआ, जल्दी से अपना बैग उठाने लगा तो नज़र उन पेंटिंग्स पर पड़ी... कुर्सी के किनारे एक पेंटिंग पड़ी थी। मैंने देखा तो उसमें एक कमरा बना था, जिसकी पीछे दो दरवाज़े थे। उड़ते बाल वाली औरत.... छुरी से केक काट रही थी। गोल चेहरे वाला बच्चा उसके बगल में खड़ा था। ग्रीटिंग पर लिखा था हैप्पी बर्थ डे मॉम एंड थैंक यू फॉर बींग अराउंड।

थोड़ी देर बाद... रात के तीन बजे.... तेज़ बारिश में भीगते हुए मैं सुनसान सड़क पर, बैग कंधे पर लादे, नंगे पैर भागता चला जा रहा था। बदहवास.. घबराया हुआ। और उस दिन मैंने तय कर लिया था कि चाहे कितना भी महंगा होटल हो.... कभी किसी अंजान के घर नहीं जाऊंगा।

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