नवाब साहब का घोड़ा
कहानी - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
हमारे मोहल्ले में एक नवाब साहब रहते थे... सच मुच के नवाब नहीं थे वो.. पेशे से पीतल के बर्तनों के कारोबारी थे.. बड़े कारोबारी थे... माल-मिल्कियत अच्छी खासी थी... कहा जाता था कि उनका शिजरा यानि फैमिली ट्री अवध के नवाब आसिफुद्दौला, जिन्होंने इमामबाड़ा बनवाया था... उनसे जाकर मिलता है। बड़े फख्र से बताते थे कि आसिफुद्दौला उनके पर-दादा के दादा थे। इसलिए घर ज़रा मेनटेन भी रखते थे, खुद भी शान शौकत वाले कपड़े पहनते, कभी पैदल चलते उन्हें किसी ने देखा नहीं... लंबी कार थी उसी में आते जाते थे.. घर में खूब आरइशें थी, सजवाट रहती थी... दालान में मोटा सा कश्मीरी कालीन पड़ा रहता था, डाइनिंग टेबल पर चांदी की प्लेटें होती थीं.. घर में तीन चार नौकर थे... एक कांच की अलमारी बाहरी कमरे में दिखती थी जिसके अंदर आसिफुद्दौला के ज़माने के बर्तन सजे रहते थे और कुछ उसी दौर का दूसरा घरेलू सामान.. जैसे लोटा, एक मर्तबान, बच्चों के खिलौने वगैरह-वगैरह थे। और एक चीज़ और थी वो था उनका घोड़ा.... (बाकी की कहानी नीचे पढ़ें। या इसी कहानी को अपने फोन पर SPOTIFY या APPLE PODCAST पर सुनने के लिए ठीक नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और जमशेद कमर सिद्दीक़ी से सुनें, जिन्होंने इस कहानी को लिखा भी है)
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सफेद रंग का चिकने बालों वाला घोड़ा उनके दालान में हमेशा खड़ा रहता था... जिसे देखने लोग दूसरे मुहल्लों से आया करते थे... खूबसूरत घोड़ा था... बिल्कुल चिकने बाल, बादल जैसा सफेद, गर्दन पर लहलहाते हलके सुनहरे बाल, घनी पूंछ... घोड़े के बारे में ये फर्माया जाता था कि ये नवाबी आसिफुद्दौला के अपने घोड़े का वंशज है... और अपनी नस्ल का आखिरी घोड़ा... हर सुबह उसे दो लोग बड़ी कसरत से नहलाते और उसके पूरे बदन पर मालिश होती... बालों में कंघी फिराई जाती और पैरों के तलवों की सफाई की जाती...
उस घोड़े का नाम भी कुछ था... दिलफरीद...हां... यही नाम था.... तो क़िस्सा ये था भाई साहब कि घोड़े को देखने के लिए जो भीड़ लगती थी... वो उसकी खूबसूरती के लिए नहीं लगती थी... कि लोग निहारने आ रहे हैं... बल्कि इसलिए लगती थी कि भाई साहब उस घोड़े के बारे में एक बात मशहूर थी... और वो ये कि जिस आदमी ने उस नवाब साहब के सफेद घोड़े की पूंछ का बाल सुंघ लिया... चालीस दिन में उस आदमी को मनचाहा प्यार मिल जाता था।
यही वजह थी कि नवाब साहब के घर के बाहर इतवार इतवार भीड़ लगी रहती थी कुंआरे लोगों की... सामने वाले बरामदे से लेकर पूरी गली में एक मजमा से लग जाता था। नंबरों के टोकन बंटते थे। लोग एक एक करके बरामदे में आते... घोड़े के पीछे खड़े होते और फिर अपनी मुंह उसकी पूंछ के पास सटाकर सूंघते... फिर कुछ मुंह बिदकाते... महक रहा है यार कुछ... पीछे से शोर आता...
ऐ भैय्या ...जल्दी सूघों... और आगे बढ़ो.. लैन में खड़े हैं सुबेरे से... हम उन्नाव से आएं हैं
जल्दी से आदमी सूंघता और बढ़ जाता आगे... कभी कभी जब कोई सूंघ रहा होता था तो दिलफ़रीद घोड़ा पूंछ उठा देता था... फिर सूंघने वाला आदमी नुक्कड़ वाली दुकान पर खड़ा गरारे करता दिखाई देता था।
लेकिन नवाव साहब... अपने घोड़े को बहुत चाहते थे... बहुत ज़्यादा... दफ्तर से अपनी बेगम को दिन में दो बार फोन करते और दोनों बार दिलफ़रीद की खैरियत पूछते... इतवार को अपनी बेटी ज़रीन के साथ मिलकर अपने हाथ से नहलाते... ज़रीन कॉलेज में थी... वो भी घोड़े को उतना ही चाहती थी जितना नवाब साहब... हालांकि वो खुद बहुत खूबसूरत थीं और मुहल्ले के कई दिल सिर्फ ज़रीन के नाम पर धड़कते थे... और ज़रीन का दिल धड़कता था सिर्फ अपने घोड़े के लिए... जब नवाब साहब ने अपने घोड़े की पीठ पर बांधने वाली जींद इरान से मंगवाई थी... तो ज़रीन ने जींद पर कढ़ाई करके अपना नाम लिखा था।
अब हुआ यूं साहब कि मनचाहे प्यार की चाहत में हज़ारों लोगों की भीड़ लग जाती थी... और इस चक्कर में दिलफरीद बेचारा थक जाता था। सुबह से शाम तक ... अपनी पूछ के पीछे सूंघने के लिए लाइन लगाकर खड़े लोगों को निपटाते-निपटाते बेचारे के पैर थक जाते थे और ये थकान पूरे हफ्ते रहती थी.... एक दिन परेशान होकर नवाब साहब का घोड़ा दिलफरीद कहीं भाग गया....
अरे मेरा जिगर का टुकड़ा कहां गया... अरे... मेरा लख्ते जिगर... अरे कोई ढूंढकर लाओ...
उन्होंने पूरा मुहल्ला सर पर उठा लिया था.. पागल ही हो गए थे... कुर्ता फाड़ के दीवानों की तरह गलियों में घूमने लगे थे... दिलफरेब... दिलफरेब... चिल्लाते हुए... रोते रोते कहते मेरे बेटे जैसा था भाईसाहब.. रात को लाइट चली जाती थी तो मेरी चारपाई से अपना पिछवाड़ा सटा कर, अपनी पूंछ से, भाईसाब पूंछ से, पंखा झलता था.. यकीन मानेंगे
ख़ैर... बहुत खोजबीन हो गयी तो किसी दूसरे मुहल्ले में मिल भी गया। नवाब साहब को जैसे नई ज़िंदगी मिल गयी थी... कहने लगे कि आज से वो घोड़े को घर के अंदर आंगन में बांधेगे और अब ये किसी को नहीं दिखाया जाएगा... वो इतवार वाला पूंछ सुंघाई वाला प्रोग्राम भी बंद करो... सबके प्यार मुहब्बत का ठेका दिलफ़रेब ने नहीं ले रखा है...
तो उसी दिन से वो इतवारी वाला मामला बंद हो गया... अब आते जाते लोग नवाब साहब से कहते कि भई एक बार... हमाए साले साहब के बड़ा बेटा है.... एक लड़की उसके कॉलेज में है.. बहुत चाहता है उसको... मगर वो घांस ही नहीं डाल रही.... कहता है वो नहीं मिली तो नीले में कूद के जान दे देगा... एक बार.. सुंघवा देते तो...
नहीं भाई नहीं हो पाएगा... अब बंद हो गया है...
अच्छा एक बाल तोड़ कर आप ही... ले आते तो
खबरदार... बाल तोड़... तुम्हाए साले के लौंडे की दो टके की आशिकी के लिए हम अपने दिलफरीद का कीमती बाल तोड़ दें... होश में रहना... चलो निकलो यहां से
लोग मायूस होकर लौट जाते।
तो ये था मामला पूरा... अब हुआ यूं कि इसी मुहल्ले में रहते थे एक बब्लू मियां.... इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स का शूरूम था उनका... फ्रिज, टीवी, वशिंगमशीन और उस ज़माने में सीडी प्लेयर भी आए थे.. वो भी बेचते थे... नवाब साहब के यहां जितने भी एसी लगे थे ... सब बब्लू भाई ने लगाए थे... अपने लोग भेजकर और उन्हें डिस्काउंट भी दिया था कि कुछ उनके घर में आना जाना हो जाए... क्यों.... क्योंकि उनका और ज़रीन का कुछ कनेक्शन भिड़ गया था। मतलब ऐसा पक्का वाला नहीं, कि इज़हार इकरार हो चुका है... लेकिन आंखों आंखों में बात हो गयी थी। बब्लू जब कसी हुई जींस पहने हुए... सर पर चश्मा लगाकर मुहल्ले से निकलते... तो ज़रीन उन्हें देखकर शर्मा जाती थीं। कभी दरवाज़े पर खड़ी ज़रीन जो दिलफ़रीद घोड़े को खाना खिलाने आई होती... उसकी नज़र सड़क से जा रहे बब्लू से टकरा जाती तो दोनों शर्माते और बहाने से इधर उधर की बातें करने लगते...
आज सब्ज़ी वाला नहीं आया... और मैं बाज़ार जा रहा था, आपको कोई सब्ज़ी तो नहीं मंगानी... बब्लू ज़रीन की आंखों में झांकते हुए कहते तो वो भी एकटक देखते हुए, रोमैंटिक अंदाज़ में जवाब देते - नहीं, कल वाले टिंडे है... दोनों चाहते थे एक दूसरे को... .लेकिन दिक्कत ये थी कि नवाब साहब बब्लू को अपने घर में घुसने तक नहीं देते थे... वजह ये थी कि जो तीन एसी बब्लू भाई ने लगाए थे... एक एक करके तीनों खराब हो गए... बब्लू ने कई बार ठीक करवाए लड़के भेजकर लेकिन नवाब साहब के मन से बब्लू उतर गए थे। किसी ने उनके कान भर दिये कि बब्लू ने उनकी शराफत का नाजाज़य फायदा उठाकर उन्हें ठग लिया। नया एसी कहकर अंदर सारे पुराने कंप्रेशर लगा दिए.... तब से बब्लू दिल से उतर गए थे वो नवाब साहब के... बाज़ार में कहीं बब्लू नवाब साहब से टकरा जाते तो उड़ता उड़ता सलाम अर्ज़ करते... नवाब साहब सलामवाले कुम.... नवाब साहब देखते और ठंडा सा वालेकुम कहके बढ़ जाते....
बब्लू भाई ने कोशिशें बहुत कीं... लेकिन बात बनी नहीं। अब बब्लू भाई जो थे वो दिलफरेब के उस करिश्में पर यकीन नहीं करते थे कि उसकी पूंछ का बाल सूंघ लो तो मनचाहा प्यार मिल जाएगा... लेकिन वो क्या है कि आदमी जब सारी उम्मीद खो चुका होता है.. तो सब ट्राइ करता है... तो बस फिर.. आगे आप समझ ही गए... बब्लू ने तय किया कि भले नवाब साहब के घर में घुस कर दिलफरेब की लात खा लें लेकिन इश्क के लिए ये टोटका भी कर के दिखाएंगे। तो क्या हुआ कि दिलफरेब घोड़ा अंदर बंधता है... वो रात को घर के अंदर कूदेंगे और घोड़े की पूंछ सूंघ कर आएंगे... देखा जाएगा जो होगा....
तो भाई.. प्लैन था तो खतरनाक.... पकड़े जाने पर तसल्लीबख्श कुटाई की गांरटी थी... पुलिस थाना अलग... लेकिन बब्लू भाई इराते के पक्के थे... अब उनकी नज़र सिर्फ और सिर्फ नबाव के घर पर थी। कभी-कबार बालकनी पर आकर ज़रीन मुस्कुरा देती तो जोश और बढ़ जाता। वो अपने शो रूम में बैठे, सोचते हुए अंदाज़ा लगाते – अम्म्, तो अगर, इधर वाले पाइप पर पैर रखा, और वो वाला सरिया पकड़ लिया, तो अमरूद के पेड़ की वो डाल से उतरकर... नहीं, नहीं, नहीं.. डाल तो टूट जाएगी.. वो दिनभर इसी तरह की जुगत में भिड़ाते रहते। आखिरकार कुछ हफ्तों बाद, उनका प्लैन तैयार हो गया। वो दिन भी आ गया जब प्लैन को अंजम देना तय हुआ। एक चौकीदार था उसको फ्रिज की लालच देकर अपने साथ मिला लिया गया कि जब मैं अंदर जाऊं तो तुम बाहर टहलते रहना... कोई खतरा होते ही सीटी बजाने लगना....
तो रात पौने तीन बजे जब पूरा मुहल्ला घोड़े बेचकर सोया था, तब बब्लू घोड़े की पूंछ सूंघने के लिए चल दिये। बब्लू भाई ने नवाब साहब के घर की दीवार पर चढ़ने लगे.... चढ़ना आसान रहा... क्योंकि पिछले पांच दिनों से वो शो रूम के बेसमेंट में प्रैक्टिस कर रहे थे... तो चढ़े दीवार पर... और आहिस्ता से अंदर उतर गए... घोड़ा दिलफऱेब तो बारामदे से अंदर जाकर घर के बीचों-बीच बने आंगन में बंधा होता था। ये दबे पांव अंदर गए। तो देखा तो चांदनी रात में साफ शफ्फाक... दिलफ़रीद बंधा हुआ था... ऐसा लग रहा था जैसे रात के अंधेरे में यमुना के किनारे ताजमहल ख़ड़ा हो.... बब्लू भाई दबे पांव दिलफरीद के पास पहुंचे... वो खड़ा थी। इन्होने उसका सर सहलाया – देखो भाई, तुम्हारी पूछ एक बार सूंघ कर हमाई ज़िंदगी बन जाएगी, नाउम्मीद न करना... पीछे जा रहे हैं.. हिलना नहीं भाई... प्लीज़... सुंघा दो पूंछ का बाल... फिर पीछे आकर खड़े हो गए... गर्दन आगे बढ़ा के दिलफरेब की पूंछ के पास अपनी नाक बढ़ाने लगे... कुछ कुछ महक रहा था तो मुंह बनाया हल्का... मगर फिर नाक और पास की... और पास... और पास... और तभी एक आवाज़ गूंजी....
चोर चोर चोर
बब्लू हड़बड़ा गए.... एक पल में पसीने से नहा गए... दिल बैठने लगा... भागना बाहर चाहते थे लेकिन पैर कांप रहे थे, फौरन दिलफरेब के पीछे ही छुप गए...
ऐ कौन है, कहां है.. चिल्लाते हुए लूंगी संभालते हुए नवाब साहब डंडा लिए, ऊपर जाती सीढ़ियों पर चढ़ने लगे, जहां से आवाज़ आ रही थी। ऊपर ही ज़रीन का कमरा था... उसी की आवाज़ थी। इधर बब्लू के आगे से घोड़ा हट गया, बब्लू फिर उसके पीछे छुपे तो फिर आगे-पीछे हो जाए.. वो एक जगह रुक ही नहीं रहा... मौका देखकर इन्होंने भागने का फैसला किया, ये पेड़ की तरफ भागे... चौकीदार की सीटी लगातार बज रही थी। तभी उन्हें बालकनी पर कोई आता हुआ नज़र आया।
बब्लू समझ गए कि बालकनी पर ज़रीन आ रही हैं, अब मामला इज़्जत का था। आव देखा न ताव... दीवार पर चढ़े और बाहर की तरफ छलांग लगा दी... एएएएएएए कहते हुए वो ज़मीन पर गिरे.... लेकिन गिरे तो नीचे ज़मीन नहीं थी... कोई और था... जो था, वो भी कराह रहा था। तभी बालकनी से आवाज़ आई... शब्बाश बब्लू, हां पकड़कर रखना, मैं आ रहा हूं ओह ये क्या हुआ... यानि.. यानि अंजाने में बब्लू भाई ने भागते हुए चोर को पकड़ लिया था। नज़र उठाकर देखा तो बालकनी पर खड़ी ज़रीन उन्हें फख्र से देखकर मुस्कुरा रही थी।
तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बब्लू, तुमने जान पर खेल कर इसको पकड़ा न होता तो ये भाग ही जाता... शब्बाश नीचे आकर चोर का कॉलर पकड़े हुए नवाब साहब ने कहा तो बब्लू सूजे हुए मुंह से बोले –
(तिरछे मुंह से) अरे भई ये तो.. ये तो मेरा फर्ज़ था... नवाब साहब
वैसे ये आया कैसे होगा अंदर... बोल, बोलता क्यों नहीं... तब तक मोहल्ले के और लोग भी आ गए... नवाब साहब ने उस मरियल से चोर की कनपटी बजाते हुए पूछा तो वो कुछ बोलने वाला ही था, लेकिन उससे पहले बब्लू बोले – अरे हम बताते हैं कैसे चढ़ा होगा.. ये..ये पहले तो इसने पकड़ा होगा अमरूद की वो डाल... हैं, फिर दीवार के सहारे से उस पाइप पर पैर रखकर, दीवार पर आया होगा और फिर गेट से नीचे... मेरे .. ख्याल.. से... तो.. ऐसे...ही.. आया होगा...
नवाब बोले, हम्म, शब्बाश, तुम्हारा ये एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा, मैं इसे पुलिस स्टेशन ले जाता हूं, तुम अंदर जाओ, ज़रीन से कह देता हूं वो तुम्हारे लिए डॉक्टर बुला देगी.. ज़रीन इन्हें अंदर ले जाओ...
और वो दिन था और आजकर दिन है... नवाब साहब और बब्लू भाई के रिश्तों में काफी मिठास आ गयी है.. अब तो बब्लू बेधड़क उनके घर चले जाते हैं... चाय नाश्ता करते हैं... और नवाब साहब अब धीरे-धीरे बब्लू भाई को पसंद करने लगे हैं। एसी बदल दिए गए हैं... मुहब्बत की पींगे लग रही हैं... अब देखिए... उम्मीद है कि बहुत जल्द नवाब साहब के घोड़े दिलफरीद की पूंछ का बाल सूंघना बब्लू भाई के लिए मुबारक साबित होने वाला है...
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