scorecardresearch
 

सिर्फ मातम मनाकर मत, भूल जाइएगा ये कत्ल-ओ-गारत

सिर्फ मातम मनाकर मत, भूल जाइएगा ये कत्ल-ओ-गारत...

Advertisement
X

तुम्हारी नजर में ये माना कि
'पड़ोसी' वो हमारे दुश्मन जैसा है
मगर उसके दर्द में ये मौका 
मौन का मरहम लगाने का नहीं...
उन 'चेहरों' को बे-नकाब करने का है
जिनके 'मोहरे' मासूमों को कुचलने पर उतर आए हैं
 
सिर्फ मातम मनाकर मत
भूल जाइएगा ये कत्ल-ओ-गारत...
ये दर्द भी जब नहीं जोड़ पाया दिलों के तार
तो समझिए ये मौन
'खुदा के दुश्मनों' का हौसला बढ़ा जाएगा!
 

Advertisement

ये कविता हमारे सहयोगी कुमार विनोद ने लिखी है. अगर आप भी अपनी कोई कविता 'आज तक' पर छपवाना चाहते हैं तो उसे booksaajtak@gmail.com पर भेजें.

Advertisement
Advertisement