वो चांद सितारों में क़ुरान के हर कलाम में बसता है
इंसान कभी हज़रत कभी ख़्वाजा जिसे कहता है
उस अल्लाह को भी इंसान की हैवानियत रुला गई,
बिलखती मांओं की आवाज, उसके सीने को दहला गई
वो घर से निकले छोटे कदम बाहर ही रह गए
आने थे वापस लेकिन, जन्नत को चल दिए
हां, हमें यकीन है उस परवरदिगार पर
उन हैवानों को न मिलेगा दोजख में भी घर
यह रचना हमारे सहयोगी सुवासित दत्त ने लिखी है. आप भी अपनी रचनाएं booksaajtak@gmail.com पर भेज सकते हैं.