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वामपंथियों की साहित्यिक वर्णव्यवस्था का प्रतिकार है मुझे मिला राष्ट्रीय पुरस्कारः अनंत विजय

फिल्म क्रिटिक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार स्वर्ण कमल पाने वाले लेखक अनंत विजय ने इस पुरस्कार को स्वीकारने के बाद साहित्य आजतक से कहा कि एक खास विचारधारा के लोगों ने जिस तरह से फिल्मी लेखन को हेय दृष्टि से देखा और लेखन में वर्ण व्यवस्था बनाई, उसी का प्रतिकार है मुझे मिला यह पुरस्कार.

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उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से सर्वश्रेष्ठ क्रिटिक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ग्रहण करते अनंत
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से सर्वश्रेष्ठ क्रिटिक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ग्रहण करते अनंत

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नई दिल्लीः वामपंथी विचारधारा के लेखकों को हमेशा निशाने पर रखने वाले लेखक अनंत विजय को आज उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म क्रिटिक के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा. साहित्य आजतक ने अनंत विजय से इस पुरस्कार को मिलने पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उनकी त्वरित टिप्पणी थी कि एक खास विचारधारा के लोगों ने जिस तरह से फिल्मी लेखन को हेय दृष्टि से देखा, उसे वर्गीकृत किया, लेखन में वर्ण व्यवस्था बनाई, उसी का प्रतिकार है मुझे मिला यह राष्ट्रीय पुरस्कार.

फिल्म क्रिटिक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार स्वर्ण कमल पाने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए अनंत विजय ने कहा कि यह प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित होना गौरव की बात तो है, पर यह प्रसन्नता इसलिए भी ज्यादा है कि हिंदी को यह पुरस्कार सोलह साल बाद मिला है. यह पूछे जाने पर कि आखिर वामपंथ और वामपंथी लेखक ही उनके निशाने पर क्यों रहे हैं? पर अनंत विजय का जवाब था कि इन लेखकों की कथनी और करनी में बेहद अंतर है. उनकी गुटबाजी और दोहरेपन को उजागर करना ही मेरे लेखन का मकसद है. एक उम्दा आलोचक, समीक्षक और पत्रकार के रूप में साहित्य व फिल्म लेखन में वह किस क्षेत्र को अपने अनुकूल मानते हैं, के जवाब में उनका कहना है था कि दोनों के लेखन में केवल विधागत अंतर है.

याद रहे कि दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय अपने स्तंभों में समकालीन साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकारों पर मारक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं. एक संयोग है कि उनसे पहले हिंदी में यह पुरस्कार उन्हीं के शहर जमालपुर के रहने वाले फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम को मिला था.

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की घोषणा करते हुए फिल्म पुरस्कार की जुरी ने कहा है कि अनंत विजय उपाख्यानों से अलंकृत पर सरलता से समझ में आने वाले अपने उत्कृष्ट शोधपरक लेखन के लिए मशहूर  हैं. हिंदी सिनेमा की समकालीन सामाजिक-राजनीतिक बारीकियों की उनकी समझ उनके लेखों में स्पष्टतः परिलक्षित होती है. अनंत विजय को यह पुरस्कार मलयालम लेखक ब्लैस जॉनी के साथ मिला है.

अनंत विजय अपनी पुस्तक 'मार्क्सवाद का अर्धसत्य' को लेकर काफी समय से चर्चा में हैं. पत्रकारिता में लगभग ढाई दशक से सक्रिय अनंत विजय ने लगभग एक दशक से अधिक समय तक टीवी पत्रकारिता करने के बाद अखबारों की दुनिया में वापसी की थी. देशभर के हिंदी-अंग्रेजी अखबारों में नियमित लेखन के अलावा साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में स्तंभ लेखन में उन्हें महारथ हासिल है.

साहित्य, भाषा, फिल्म और राजनीति पर अब तक अनंत विजय की दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें प्रसंगवश, कोलाहल कलह में, मेरे पात्र, विधाओं का विन्यास, कहानी, बॉलीवुड सेल्फी, लोकतंत्र की कसौटी, कोलाहल में कविता, परिवर्तन की ओर, 21 वीं सदी की 21 कहानियां आदि प्रमुख हैं.
वह साल 2017 की नेशनल फिल्म अवॉर्ड (फिल्मों पर सर्वोत्तम लेखन) की जूरी के चेयरमैन रह चुके हैं. इसके अलावा नेशनल बुक ट्रस्ट की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य हैं.

अनंत विजय इसके अलावा जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रह चुके हैं. वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार की तकनीकी शब्दावली आयोग की पत्रकारिता और मुद्रण शब्दकोश अपडेशन कमेटी के सदस्य भी रहे हैं और जोहांसबर्ग में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान प्रकाशित पुस्तक के संपादन मंडल के सदस्य भी रह चुके हैं.

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