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मां भी वही कहती थी, जो कलाम कहते थे

मां को पता था कि वो अब इस संसार से चली जाएगी. लेकिन मां विचलित नहीं थी. उसे मृत्यु का खौफ नहीं था.

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APJ Abdul Kalam
APJ Abdul Kalam

मां को पता था कि वो अब इस संसार से चली जाएगी. लेकिन मां विचलित नहीं थी. उसे मृत्यु का ख़ौफ नहीं था. मां मुझे समझाती थी कि मौत के बाद का संसार किसी को नहीं पता, लेकिन मैंने ऐसा महसूस किया है कि यह घर वापसी की तरह है.

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मृत्यु घर वापसी?

मां कहती थी कि यह इतना अटल सत्य है कि इस विषय पर इससे बेहतर सकारात्मक सोच हो ही नहीं सकती. मैं पूछता था कि मां, अगर यह घर वापसी ही है, तो फिर किसी की जुदाई पर आदमी इतना विचलित क्यों होता है. लोग घर वापसी से डरते क्यों हैं?

मां का इस संबंध में बहुत स्पष्ट जवाब था कि ज़िंदगी के सफर में आदमी कई अनजान लोगों से मिलता है, ये मुलाकात एक रिश्ता में तब्दील होता है. रिश्ता ही माया है. माया ही विचलित होने का कारण है. और रही बात घर वापसी से डरने की, तो डरना उसे चाहिए, जिसने कुछ गलत किया हो.

“मां गलत क्या है?”
“जिसे मन कह दे कि गलत है, वही गलत है.”

***

मुझे कई बार डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने का मौका मिला. कलाम साहब कहते थे कि हर आदमी की एक जिम्मेदारी होती है. जब वो जिम्मेदारी पूरी हो जाती है, तो आदमी अपने घर लौट जाता है. मैंने कलाम से पूछा था कि इस उम्र में आप इतनी यात्रा करते हैं, इतने शैक्षणिक संस्थानों में लेक्चर देते हैं, लोगों को विज्ञान से जोड़ते हैं, थकते नहीं?

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कलाम ने कहा था, “जिस दिन यह शरीर थक जाएगा, अपने आप गिर जाएगा. फिर उसमें उठने की ताकत नहीं रहेगी और मैं घर लौट जाऊंगा.”

“आप इतने बड़े वैज्ञानिक रहे हैं, देश के राष्ट्रपति रहे हैं, आपके पास किसी चीज की कमी नहीं. फिर इतनी तकलीफ खुद को क्यों देते हैं?”

“मेरा कुछ भी नहीं है. न मेरा कोई परिवार है, न मेरे पास कोई संपत्ति है. यह देश मेरा है, यहां के लोग मेरे हैं. मैं लोगों को सिर्फ उनका दिया लौटा रहा हूं और फिर मैं जिस तरह आया था, उसी तरह एक दिन चला जाऊंगा. वह मेरी घर वापसी होगी.”

***

कल मेरी मुलाकात तबू से हुई.

तबू फिल्मी कलाकार हैं. मैंने कल लिखा था कि तबू शायद इकलौती ऐसी कलाकार हैं, जिनसे मैं अब तक नहीं मिला था. मैंने यह भी लिखा था कि फिल्म माचिस देखने के बाद मुझे वो अच्छी लगने लगी थीं और इस हद तक मैं उनसे मन ही मन जुड़ गया था कि मैं मिलने में संकोच करने लगा था. लेकिन कल अजय देवगन ने मेरा उनसे परिचय कराया. मैं यही चाहता था कि जब मैं तबू से मिलूं तो कोई मेरा उनसे परिचय कराए. कोई ऐसा व्यक्ति, जो मुझे जानता हो, तबू को भी जानता हो. और इस काम के लिए मुझे कई साल इंतज़ार करना पड़ा.

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***

तबू आम तौर पर फिल्मों के प्रमोशन में कहीं नहीं जातीं. जिस वक्त वो हमारे दफ्तर आई थीं, पंजाब के गुरुदासपुर में आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था. एक थाने में कुछ लोगों को बंधक बना लिया था. टीवी पर हर जगह यही खबर चल रही थी. तबू ने मुझसे मिलते ही पूछा कि मुठभेड़ खत्म हुई या नहीं.

मैं चौंका. यह पहला मौका था, जब किसी फिल्मी कलाकार को मैंने अपनी फिल्म के अलावा ऐसी खबरों पर चर्चा करते हुए सुना. तबू ने बताया कि जब फिल्म माचिस में वो शूटिंग कर रही थीं, तब पहली बार उन्होंने आतंकवाद को महसूस किया था. वो जानती हैं कि आतंकवाद क्या होता है.

मैं चुप था. फिर मैंने उनसे उनकी आने वाली फिल्म पर बात की.

***

मैंने तबू से कहा कि आप अकेली ऐसी हीरोइन हैं, जिससे मैं अब तक नहीं मिला था. तबू ने कहा कि मुझे पता है, आप मुझसे मिलना चाहते थे. इसलिए मैं तबीयत खराब होने के बाद भी यहां आई हूं.

“मैंने माचिस देखी थी, तब से आपका फैन हूं.”

“मुझे पता है.”

ओह! मैंने ज़रूर किसी से इस बात की चर्चा की होगी, और यकीनन उनके यहां आने से पहले उन्हें यह सब बता दिया गया है.

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जब तबू से मिल रहा था, तब कलाम साहब की खबर नहीं आई थी. मैंने तबू से पूछा कि जब आप आतंकवाद पर फिल्म में काम कर रही थीं, तो क्या आपको एक बार भी डर लगा?

“डर? मृत्यु से? वह तो घर वापसी है. मृत्यु से आदमी को नहीं डरना चाहिए. आदमी को डरना चाहिए उस काम से, जो उसे वहां जाने पर शर्मिंदा करे.”

***

अजीब इत्तेफाक था.

मां भी यही कहती थी. कलाम साहब ने भी यही कहा था. तबू ने भी यही कहा.

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