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युवा कवयित्री बाबुशा कोहली को नवलेखन पुरस्कार

युवा कथाकार उपासना को कहानी विधा के लिए उनकी पांडुलिपि 'एक जिंदगी एक एक स्क्रिप्ट भर' को और युवा कवयित्री बाबुशा कोहली को कविता विधा के लिए उनकी पांडुलिपि 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट' को नवलेखन पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की जाती है.

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Babusha Kohli
Babusha Kohli

युवा कथाकार उपासना को कहानी विधा के लिए उनकी पांडुलिपि 'एक जिंदगी एक एक स्क्रिप्ट भर' को और युवा कवयित्री बाबुशा कोहली को कविता विधा के लिए उनकी पांडुलिपि 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट' को नवलेखन पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की जाती है.

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यह पहला अवसर है जब दोनों ही विधाओं में महिलाओं को पुरस्कृत किया गया. पुरस्कार स्वरूप 50-50 हज़ार रुपये की राशि प्रदान की जायेगी और भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा इनके प्रथम संग्रहों का प्रकाशन किया जाएगा.

'नए सजन घर आये' (कहानी-संग्रह) जीतेन्द्र बिसारिया और 'कविता में उगी दूब' (कविता-संग्रह) दिलीप शाक्य को भी प्रकाशन हेतु अनुशंसित किया गया है.

यहां पढ़िए बाबुशा कोहली की दो कविताएं

श्वास-श्वास झंकार
वे दुबके पड़े रहते अपनी उबासियों में
पर उनकी कट्टर निराशाएं चमचमाती
और हम फटेहाल सड़कों पर नृत्य करते
हमारे पाँव की थाप से पृथ्वी थरथराती है

वे पीड़ा से बिलबिलाते हैं
कि जैसे उनकी आत्मा पर ठोंकी गयी हो गहरी कील
जिस पर टंगी है उनकी देह
हमारी आत्माओं में भी कम नहीं गरम चिमटे से पड़े चकत्ते
जले निशानों को पिरो कर हमने बाँध लिए अपने पाँव में घुँघरू

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अनंतकाल के गले पर फंसी सुबक हैं उनके भारी कदम
हम पानी में निरंतर फैलते अमीबा अपने भूत-भविष्य से बेख़बर
थिरकते झरने की लय पर

उनके पेट में कुलबुलाता है नृत्य
वे कस कर बांधते हैं कमरबंद
उनकी जम्हाइयों से बनी हवा की दीवार
सीलन भरी उनके सामने खड़ी

हम चिन्दीचोर - से नाचते हैं सड़क पर यूँ कि नाचता है आलम
नाचती है पृथ्वी गोल- गोल दरवेश सी
हम नृत्य से ढंक लेते हैं अपनी देह की नग्नता
हमारी आत्माएं नाचती हैं निर्वस्त्र

हमारे नृत्य पर करते हैं वे विलाप
हम कर सकते हैं उनके विलाप पर दो मिनट का मौन नृत्य
कि विलाप के नृत्य की मुद्राएं भी आती हैं हमें

हम रूमी की बौरायी सी चकरघिन्नियाँ हैं
नटराज की नाभि से फूटा झन-झन करता नाद हैं

दंड

ओ मेरे देश
यदि इस घोर विपत्ति काल में मेरे मुंह में छाले पड़ जाएं
और मैं कुछ कह न सकूँ तो तू मुझे दंड देना

मेरे गूंगेपन को इतिहास के चौराहों पर धिक्कारना

ओ मेरी मिट्टी,
मेरे फेफड़ों में भरी हवाओं
और मुझे सींचने वाले जल

इस कठिन समय में मेरे कंठ की तटस्थता पर थूकना

ओ मेरे मुक्त आकाश,
ओ विनम्र पेड़ और धधकती अग्नि शिखाओं,
जीभ में भर आए फोड़ों के लिए मुझे दंड देना

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फांसी से कम तो हरगिज़ नहीं !

इस चालाक चुप्पी के लिए मेरे शव को भी दंड देना
अपनी स्मृतियों में दिन रात कोड़े मारना - आजीवन

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